सिविल कानून | CPC (Civil Procedure Code) की प्रक्रिया

सिविल कानून | सिविल कानून के मामले | CPC

आज के इस लेख में हम जानेंगे कि सिविल कानून क्या होता है, इसका दायरा क्या है और इसके अंतर्गत CPC (Civil Procedure Code) की प्रक्रिया कैसे चलाई जाती है।

तो आइये जानते है…….

सिविल कानून और CPC।

पॉलिटी में अक्सर CPC, IPC और CrPC की धारा सुनने को मिलता रहता है, लेकिन हम इसको सही तरीके से समझ नहीं पाते है और अगर समझ भी पाते है तो कही न कही थोड़ा-बहुत संदेह रहता ही है कि जो मै जानता हूँ वो जानकारी पूरी तरह से सही है या नहीं। कभी-कभी हम इस बात में भी भ्रमित हो जाते है कि धारा और अनुच्छेद कैसे अलग-अलग होते है। तो आइये आज इस भ्रम को दूर करते है।

सिविल कानून और CPC

संविधान का संक्षिप्त स्वरूप।

सिविल कानून और CPC के बारे में जानने से पहले हम थोड़ा सा पहले ये जानने की कोशिश करते है कि जैसे सिविल कानून तो बना है, पर यह मूलरूप से किसके अंतर्गत आता है। इसके अंतर्गत बनने वाले कानूनों में नियंत्रण किसका होता है, कौन ये कानून बना सकता है, कानून बनाने की सीमाए क्या होगी? तो इसे विधिवत समझने के लिए हम पहले संक्षिप्त रूप से संविधान को समझ लेते है।

जैसा की हम सभी जानते है कि हमारा संविधान पूर्ण रूप से 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, इसलिए 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। गणत्रंत्र से तात्पर्य जो राष्ट्र प्रमुख होंगे उनका चुनाव होगा, मतलब चुनाव द्वारा नियुक्त किए जायेंगे, वंशानुगत या खानदानी नहीं बनाए जाएंगे।

हमारे संविधान में प्रमुख-प्रमुख चीजे लिखी गयी है। जैसे देश कैसे चलेगा, केंद्र और राज्य सरकार किस प्रकार से कार्य करेंगी, इनके शासन करने की सीमाए क्या होगी। जैसे रेल्वे है, पोस्ट ऑफिस है आदि, इन पर केंद्र सरकार का पूर्ण रूप से नियंत्रण होगा।

संविधान में ही नागरिकता की चर्चा है कि कैसे कोई भारत की नागरिकता ले सकता है और कैसे कोई बिना नागरिकता लिए हुए भारत में रह सकता है, कौन भारत का नागरिक है? अधिकार और कानून से लेकर इसी प्रकार की प्रमुख सभी बातो का उल्लेख हमारे संविधान में है।

संविधान में जो पॉइंट्स दिए गए है उन्हें हम अनुच्छेद (Article) कहते है। हमारे संविधान में 395 अनुच्छेद है। इन  Articles में A,B,C,D,E……. करके इनमे कुछ अलग से जोड़ा जा सकता है, लेकिन नंबरिंग 395 से आगे बढ़ाकर 396 नहीं की जा सकती।

संविधान में ही इस बात का उल्लेख है कि संसद कानून बना सकती है, लेकिन संविधान में उल्लेखित नियमों का पालन करते हुए। जैसे संविधान के अनुसार भारत का प्रत्येक 18 वर्ष या इससे ऊपर का नागरिक वोट डाल सकता है। अब इसमें संसद किसी जाति, संप्रदाय, धर्म के आधार पर कानून बनाकर ये नहीं कह सकती कि फला जाति, संप्रदाय और धर्म का नागरिक वोट नहीं डाल सकता।

तो इस प्रकार से, समस्त विषयों की ही तरह मूल रूप से कानून का उल्लेख संविधान में किया गया, लेकिन बुक अलग से बनाई गयी, जिसमें विस्तृत रूप से समझाया गया और इसके पूरे नियम-कानून लिखे गए।

सिविल कानून।

पैसे से सम्बंधित मामलो को सिविल कानून में रखा गया है। इसमें मारपीट, गुंडागर्दी, डकैती, रेप, धमकी ये सब विषय नहीं आते है। इसे दीवानी मामला भी कहा जाता है। जैसे आपने सड़क दुर्घटना में किसी को चोटिल कर दिया और वह आपसे क्षतिपूर्ति मांगने लगे, तो ये सिविल कानून का मामला है।

इसके अलावा जैसे आप किसी की जमीन पर कब्जा कर ले और उसके कहने पर भी न छोड़े। व्यावसायिक और औद्योगिक क्षेत्र के लफड़े सिविल कानून के अंतर्गत प्रमुख रूप से आते है। इस प्रकार से आप समझ गए होंगे कि सिविल कानून के अंतर्गत वो सभी कानून आ जाते है जो अपराध कानून की श्रेणी में नहीं आते है।

CPC (Civil Procedure Code)।

अब इन्ही सिविल मामलो में मान लीजिये कि किसी ने सिविल लॉ तोड़ दिया। तो उस पर कौन सा मुकदमा लगाया जाएगा, किस प्रकार से मुकदमा चलाया जाएगा, कब गवाही के लिए बुलाया जाएगा, कब सबूत मांगा जाएगा, कब कहा जाएगा की अगली तारीख को आइयेगा, किस प्रकार से अर्थदंड लगाया जायेगा, कितनी राशि जुर्माना के रूप में वसूली जायेगी? तो इन सभी बातो का एक लिखित प्रोसीजर (प्रक्रिया) है। इसी प्रोसीजर को हम CPC कहते है?

तो कुलमिलाकर सिविल मुक़दमे के निपटारे के लिए जो नियम-कानून बनाए गए है, उन्हें CPC कहा जाता है। सिविल कानून के अंतर्गत दंड या जेल की सजा नहीं होती है, इसमें मुआवजा/जुर्माने का प्रावधान होता हैं। हां, लेकिन मुआवजा/जुर्माने की राशि अदा न करने पर जेल या दंड की सजा दी जाती है। तब मामला बदल जाता है।

यह भी पढ़े: क्रिमिनल कानून | भारतीय दंड संहिता (IPC) | दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)

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