एडवोकेट | एडवोकेट का कार्य | एडवोकेट बनने के लिए योग्यताएँ

एडवोकेट | एडवोकेट का कार्य | एडवोकेट बनने के लिए योग्यताएँ | एडवोकेट के प्रकार

आज के इस लेख में जानेंगे कि एडवोकेट किसे कहते है। भारतीय कानून व्यवस्था में एडवोकेट का कार्य क्या होता है और एडवोकेट बनने के लिए क्या-क्या योग्यताएँ होनी चाहिए।

तो आइये जानते है…..

एडवोकेट किसे कहते है?

एडवोकेट (अधिवक्ता) उस कानून और संविधान के जानकार को कहते है जो कोर्ट में अपने क्लाइंट का पक्ष रख सके और अपने क्लाइंट के समर्थन के लिए कोर्ट में बहस कर सके। एडवोकेट को हिंदी में अधिवक्ता कहते है। अधिवक्ता का मतलब होता है आधिकारिक वक्ता।

एडवोकेट का कार्य।

  • Advocate का प्रथम कार्य होता है अपने क्लाइंट को कानूनी सलाह देना।
  • Advocate न्यायालय के समक्ष अपने क्लाइंट का पक्ष रखता है।
  • एडवोकेट अपने क्लाइंट के पक्ष में समर्थन के लिए बहस करता है, जिसे हम अपनी भाषा में केस लड़ना कहते है।
  • एडवोकेट के प्रकार के आधार पर सभी के कुछ अलग-अलग काम होते है।

एडवोकेट बनने के लिए योग्यताएँ।

  • ऐसा व्यक्ति जिसने लॉ की डिग्री हासिल कर ली हो और BCI – Bar Council Of India में इनरोल हो। वह एडवोकेट बन सकता है।
  • एडवोकेट बनते ही उसे कोर्ट में प्रैक्टिस करने का लायसेंस मिल जाता है।
  • कोई भी एडवोकेट, एडवोकेट बनने से पहले लॉयर बनता है यानी कि पहले विधि स्नातक की डिग्री हासिल करता है।
  • विधि स्नातक की डिग्री यानी कि 3 या 5 साल के LLB के कोर्स को करता है।
  • विधि स्नातक की डिग्री हासिल करते ही वह Jobs after LLB देखता है और इसके बाद वह लॉयर बन जाता है।
  • जब एक लॉयर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI- Bar Council Of India) का एग्जाम पास कर बार काउन्सिल ऑफ इंडिया का सर्टिफिकेट प्राप्त कर लेता है तो ऐसे में वो बार काउन्सिल में खुद को इनरोल (Enroll) करके अधिवक्ता (Advocate) की उपाधि हासिल करता है।
  • ऐसा भी कहा जा सकता है कि एडवोकेट बनने के लिए पहले लॉयर बनना आवश्यक है।

एडवोकेट के प्रकार।

अधिवक्ता (Advocate) तीन प्रकार के होते है।

  1. अधिवक्ता (Advocate)
  2. वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate)
  3. AOR – Advocate On Record

अधिवक्ता (Advocate)

अधिवक्ता के बारे में तो हम सभी ऊपर पढ़ चुके है कि लॉ की डिग्री हासिल करने वाला वह व्यक्ति जो BCI – Bar Council Of India में इनरोल हो अधिवक्ता कहलाता है। अधिवक्ता के पास कोर्ट में प्रैक्टिस करने और अपने किसी भी क्लाइंट का पक्ष रखने का अधिकार होता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate)

वरिष्ठ अधिवक्ता की उपाधि सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के द्वारा दी जाती है और यह उपाधि किसी अधिवक्ता की योग्यता को देखते हुए दी जाती है। वरिष्ठ अधिवक्ता की उपाधि उन अधिवक्ता को दी जाती है जो कानून की अच्छी जानकारी रखता हो और भारत के संविधान का एक अच्छा जानकार हो। वरिष्ठ अधिवक्ता होने के लिए उम्र कम से कम 45 वर्ष होना चाहिए और 10 से 20 वर्ष का प्रैक्टिस अनुभव होना चाहिए।

इसके अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता होने के लिए विशिष्ट योग्यता भी देखी जाती है जैसे कि अधिवक्ता अपने प्रैक्टिस के दौरान कितने मामलों में शामिल हुआ और उनमें से कितने फैसले उनके पक्ष या विपक्ष में आए। एक अधिवक्ता जब वरिष्ठ अधिवक्ता बन जाता है तो उसका ड्रेस कोड पूरी तरह से बदल जाता है और यहाँ तक कि उनकी फीस भी बढ़ जाती है।

एक वरिष्ठ अधिवक्ता वकालतनामा नहीं दर्ज कर सकता और बिना AOR की अनुमति के किसी बहस में शामिल हो सकता। किसी अधीनस्थ न्यायालय या न्यायधिकरण में बिना किसी अधिवक्ता के पेश नहीं हो सकता। यह सीधा किसी क्लाइंट के मुक़दमे पर बहस में शामिल नहीं हो सकता।

AOR – Advocate On Record

जैसा कि हम सभी जानते है कि सभी न्यायालय के अपने कुछ नियम होते है ऐसे में Advocate On Record में नामांकित Advocate ही उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में वकालतनामा दायर कर सकता है या किसी भी प्रकार का रिकॉर्ड पेश कर सकता है और यह Advocate किसी पार्टी या क्लाइंट की तरफ से भी सुप्रीम कोर्ट में पेश हो सकता है।

Advocate On Record की उपाधि के लिए सुप्रीम कोर्ट के विशेष एग्जाम को पास करना जरुरी होता है। Advocate On Record के लिए 5 साल का प्रैक्टिस अनुभव होना जरुरी है, जिसमें से 01 साल उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में किसी AOR के अंडर में रहकर प्रैक्टिस की हो और जिस AOR के अंडर रहकर उन्होंने प्रैक्टिस की हो उसे भी 10 साल या उससे भी ज्यादा का अनुभव होना जरुरी है। इसके बाद AOR की उपाधि मिलती है।

इनके अलावा एक और शब्द कभी-कभी सुनने को मिलता है, तो आइये उसके बारे में भी जान लेते है।

महाधिवक्ता (Advocate General)।

किसी राज्य के सबसे बड़े लॉ ऑफिसर को Advocate General कहते है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 165 के अनुसार केवल किसी राज्य के राजयपाल ही Advocate General की नियुक्ति कर सकते है। Advocate General राज्य सरकार को कानूनी सलाह (Legal Advice) देने का काम करता है और साथ ही कोर्ट में ये राज्य को Represent भी कर सकते है।

इसके अलावा Advocate General को विधानसभा और विधान परिषद् की कार्यवाही में बोलने और सदन में बहस करने का भी अधिकार है। राजयपाल कभी भी Advocate General को उसके पद से हटा सकता है। Advocate General के पास मतदान करने का कोई अधिकार नहीं होता है।

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इसके अलावा Advocate General को विधानसभा और विधान परिषद् की कार्यवाही में बोलने और सदन में बहस करने का भी अधिकार है। राजयपाल कभी भी Advocate General को उसके पद से हटा सकता है। Advocate General के पास मतदान करने का कोई अधिकार नहीं होता है।

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इसके अलावा Advocate General को विधानसभा और विधान परिषद् की कार्यवाही में बोलने और सदन में बहस करने का भी अधिकार है। राजयपाल कभी भी Advocate General को उसके पद से हटा सकता है। Advocate General के पास मतदान करने का कोई अधिकार नहीं होता है।

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इसके अलावा Advocate General को विधानसभा और विधान परिषद् की कार्यवाही में बोलने और सदन में बहस करने का भी अधिकार है। राजयपाल कभी भी Advocate General को उसके पद से हटा सकता है। Advocate General के पास मतदान करने का कोई अधिकार नहीं होता है।

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