किन परिस्थितियों में बना भारत का संविधान, क्या है इसकी मूल अवधारणा ?

किन परिस्थितियों में बना भारत का संविधान | भारत के संविधान निर्माण की मूल अवधारणा |

आज के इस लेख में हम ये जानेंगे कि किन परिस्थितियों में बना भारत का संविधान। संविधान बनने की प्रक्रिया 1946 से ही कैसे शुरू हो गयी जबकि उस वक्त तो हम अंग्रेजो के गुलाम थे, साथ ही ये भी समझेंगे कि भले ही हम अंग्रेजो के गुलाम थे, लेकिन आजाद करने से पहले उन्होंने ही हमें संविधान बनाने की सलाह क्यों दी और संविधान का निर्माण करने में किस प्रकार से हमारी मदद की?

तो आइये समझते हैं……..

भारत के संविधान निर्माण की प्रक्रिया

आजादी से पहले स्वाधीनता दिवस की शुरुआत

आजाद तो हम 15 अगस्त 1947 को हुए, लेकिन देश में आजादी का मुद्दा बहुत पहले से गरमाया हुआ था, यहाँ तक कि दिसंबर 1929 में ही कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के दौरान, अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने रावी नदी के तट से पूर्ण स्वराज की घोषणा कर दी थी। घोषणा करते हुए उन्होंने कहा था कि अब हमें अंग्रेजों के सामने झुकने की जरुरत नहीं है, उन्हें अब हम एक इंच जमीन नहीं दे सकते, हमें पूर्ण स्वराज चाहिए।

कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन।

इसी घोषणा के दौरान आगे उन्होंने कहा कि अगले महीने के आखिरी रविवार को हम स्वाधीनता दिवस मनाएंगे और इसी तारीख को हर वर्ष स्वाधीनता दिवस के रूप में मनाएंगे। दिसंबर 1929 में लाहौर अधिवेशन था, तो इस हिसाब से अगला महीना जनवरी 1930 होगा और जनवरी में आखिरी रविवार 26 तारीख को था। इस प्रकार से 26 जनवरी 1930 को तिरंगा लहराकर पहली बार स्वाधीनता दिवस मनाया गया।

हालांकि, हमें अंग्रेजो से आजादी नहीं मिली थी फिर भी हमने अपने आपको स्वाधीन घोषित कर दिया था। इसे मिनी आजादी के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह से हर वर्ष 26 जनवरी को स्वाधीनता दिवस मनाया जाने लगा। हम आजाद जरूर नहीं हुए थे लेकिन अंदर से ऐसा लगने लगा था कि हम आजाद है। इस प्रकार का माहौल देख अंग्रेजों को यहाँ से लगने लगा था कि अब हमें भारत छोड़कर जाना ही पड़ेगा।

सत्ता हस्तांतरण और संविधान का निर्माण करवाने में ब्रिटेन ने हमारी मदद कैसे की?

                                     विंस्टन चर्चिल (Winston Churchill)                                                   

इसी कड़ी में हम लगातार अपनी स्वाधीनता पर जोर देते गए और ये बात जाकर जुड़ गयी द्वितीय विश्व युद्ध से। वास्तव में, जब द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था उस समय इंग्लैण्ड को बहुत क्षति हुई थी। जर्मनी ने लंदन में 15 दिन-रात लगातार बिना रुके हुए बम गिराया था। पूरी तरह से लंदन को धो डाला था, तो इंग्लैण्ड की जनता पूरी तरह से युद्ध से त्रस्त थी।

उस समय ब्रिटेन में Conservative पार्टी की सरकार थी और विंस्टन चर्चिल (Winston Churchill) प्रधानमंत्री थे। जल्द ही ब्रिटेन में चुनाव होने वाले थे। इस चुनाव में Conservative पार्टी के विपक्ष में लेबर पार्टी (Labour Party) थी, जिसके नेता थे क्लिमेंट रिचर्ड एटली (Clement Richard Attlee)।

क्लिमेंट रिचर्ड एटली (Clement Richard Attlee)। 

एटली ने कहा कि यदि हमारी सरकार आई तो हम भारत को आजाद कर देंगे, तो ये सुनकर भारतीयों ने भी चुनाव के दौरान उनका समर्थन किया। चुनाव में एटली साहब जीत गए। एटली जी की जब सरकार बनी तो वो भारतीयों को आजाद करने के पक्ष में आ गए।

किन परिस्थितियों में बना भारत का संविधान, इसकी मूल अवधारणा!!!

इस दौरान ये सोचा गया कि भारत को आजाद तो कर दिया जाएगा, लेकिन भारत के पास उसका खुद का कोई नियम कानून नहीं है, तो सामने ये बात आई कि हम तो भारत को आजाद करके इंग्लैण्ड वापस लौट आएंगे, लेकिन अचानक से इतने बड़े देश को ऐसे ही छोड़ देंगे तो क्या होगा इस देश का, कौन करेगा शासन, किस प्रकार से सरकार का चयन किया जाएगा, इतना बड़ा देश बिना नियम-कानून के कैसे चल पाएगा?

अभी तक तो हम अंग्रेजों के गुलाम थे इसलिए देश और सरकार चलाने का हमारे पास कोई अनुभव नहीं था। यहाँ पर पहली बार संविधान की जरुरत महसूस हुई। तो आजाद करने से पहले इन तमाम समस्याओं से निपटने के लिए 1946 में एटली साहब ने अपने 3 कैबिनेट मंत्री भारत भेजे, इस कैबिनेट का प्रमुख उद्देश्य था भारत में शांतिपूर्ण सत्ता का हस्तांतरण और संविधान बनाने में मदद करना।

कैबिनेट ने कहा कि आप अपना संविधान बना लीजिये, जब तक आपका संविधान नहीं बन जाता हम आपकी देख-भाल करेंगे, जब आपका संविधान लागू हो जाएगा तो हम चले जाएंगे। इस दौरान इन्होने ये भी कहा कि जब तक आपका संविधान बनता है उस समय तक के लिए आप अपनी अंतरिम सरकार बना लीजिये और सीखिए की सरकार कैसे चलाई जाती है।

इस तरह संविधान बनाते-बनाते हम सरकार चलाना भी सीख गए। इन तमाम वजहों की वजह से इसे कैबिनेट मिशन कहा जाता है।

इस कैबिनेट में 3 मंत्री थे और इसके लीडर थे लारेन्स साहब

KAL (इस शब्द से इसे आसानी से याद रखा जा सकता है)

K – सर स्टेफर्ड क्रिप्स

A – ए. वी. अलेक्जेंडर

L – लार्ड पैथिक लारेंस

कैबिनेट मिशन।

अब संविधान बनाने की बात आ गयी तो ये संविधान बनाएगा कौन। इसके लिए अप्रत्यक्ष रूप से सदस्यों का चयन किया गया। कुल सदस्यों की संख्या थी 389। इस 389 में 296 सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित किये गए तथा 93 सदस्य मनोनीत किये गए, इन मनोनीत सदस्यों में 14 राजस्थान से थे। संविधान सभा का एक सदस्य 10 लाख जनसंख्या पर चुना गया था।

अब जो चुनकर आए उन्हें संसद के सेन्ट्रल हॉल में रखा गया। आज भी यही परम्परा है, जब भी कोई राजनीतिक रूप से विदेशी मेहमान आता है या फिर कोई परम्परागत संसद में कार्यक्रम होता है, जैसे मान लीजिये शपथ ग्रहण ही है, तो उन्हें सेन्ट्रल हाल में ही बैठाया जाता है, तो सेन्ट्रल हाल में बैठकर संविधान लिखा गया।

संविधान बना कैसे (How to make constitution)?

तो सदस्यों का चयन करने के बाद संविधान बनाने के लिए अलग-अलग समितियों का गठन किया गया और इनको अलग-अलग जिम्मेदारियां सौंपी गई। कुल 13 समितियां बनाई गई जो संविधान बनाते समय सहमति से अपना निर्णय लेती थी। इन समितियों में जो सबसे प्रमुख समिति थी वह थी प्रारूप समिति (Drafting Committee)।

इस प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर जी थे। ये बहुत ही विद्वान थे, इन्होने सभी समितियों में तालमेल बनाते हुए कहा क्या गलत है सभी जगह सुधार करवाया। इन्होने संविधान बनने के दौरान अपनी बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, इसलिए इन्हे भारतीय संविधान का जनक (The Father Of Indian Constitution) कहा जाता है।

भारतीय संविधान का जनक (The Father Of Indian Constitution)

संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे। हालांकि, दो दिन के लिए सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थायी रूप से अध्यक्ष बनाया गया था। संविधान सभा के सलाहकार बी. एन. रॉव थे, ये भी बहुत विद्वान् थे। इनकी विद्वता का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते है कि म्यांमार का संविधान बनने में इन्होने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। रॉव साहब ने विदेशी संविधानों का अध्ययन करके जो भी उन्हें उचित लगा भारतीय संविधान बनने के दौरान अपनी सलाह दी। 

संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद

1946 में अप्रत्यक्ष रूप से चुने गए कुल सदस्यों की संख्या 389 थी, उस समय पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) पूरा भारत का हिस्सा था, ये 389 लोग मिलकर संविधान का निर्माण कर रहे थे, लेकिन अगले ही वर्ष भारत का विभाजन हो गया, जो लोग पूर्वी/पश्चिमी पाकिस्तान से चुनकर आए थे तो वो वापस अपने देश चले गए। इन गए हुए में सबसे प्रमुख थे लियाकत अली, उस समय की अंतरिम सरकार में ये वित्त मंत्री थे। 

लियाकत अली

1947 में विभाजन के पश्चात संविधान सभा के सदस्यों की संख्या घटकर 299 हो गयी। अंततः 24 जनवरी 1950 को संविधान को लागू करने से महज दो दिन पहले जब संविधान में हस्ताक्षर करने की बारी आई तो कुल सदस्यों की संख्या 284 बची थी। 15 लोगो का देहांत हो चुका था, इस 284 में 15 महिलाए थी, अब आप ये बात समझ सकते है कि उस समय भी महिलाओं की भागीदारी कितनी महत्वपूर्ण थी। हमारा मूल संविधान 13 किलोग्राम का है।

जब संविधान बना उस समय संविधान में

  • भाग – 22
  • अनुच्छेद -395
  • अनुसूचियाँ – 8

इनकी संख्या को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता, इनमें a,b,c,d,e,f…ऐसे करके जोड़ा जा सकता है, जैसे भाग की संख्या 22 है तो इनमे विषय के हिसाब से किसी में भी a,b,c,d,e,f…ऐसे करके जोड़ा जा सकता है, आगे बढ़ाकर 23 नहीं किया जा सकता। इस प्रकार भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान बना।

संविधान को बनने में 2 साल 11 महीने और 18 दिन (लगभग 3 साल) लगे। इन तमाम परिस्थितियों से गुजरते हुए आखिरकार 26 नवंबर 1949 को हमारा संविधान बनकर तैयार हो गया, लेकिन लागू हुआ 26 जनवरी 1950 को। ये 2 महीना बाद क्यों लागू हुआ इसके पीछे की एक दिलचस्प कहानी है। इसे पढ़ने के लिए नीचे दी हुई लिंक पर क्लिक करे।

यह भी पढ़े: भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को ही क्यों लागू किया गया?

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