भारत में नागरिकता कैसे दी जाती है व कैसे छीनी जाती है ? जानें आसान भाषा में…

नागरिकता देने व लेने का प्रावधान | नागरिकता अधिनियम 1955

आज के इस लेख में नागरिकता अधिनियम 1955 के बारे में जानेंगे, जिसके नियम के तहत किसी को भारत की नागरिकता दी जाती है व वापस भी ली जाती है। सब कुछ जानेंगे विस्तार से…..

तो आइये जानते है…….

हमारे मूल संविधान में अनुच्छेद 5 से लेकर 11 तक नागरिकता से संबंधित नियमों का प्रावधान किया गया था और इसी में इस बात का उल्लेख किया गया था कि भारत की संसद समय के अनुसार और आवश्यकता के मुताबिक़ इसमें बदलाव कर सकती है, क्योंकि नागरिकता से संबंधित जो नियम और कानून उस समय बनाए गए थे, वो उस समय के हिसाब से थे। जाहिर सी बात है कोई चीज परफेक्ट नहीं होती वह समय के अनुसार बदलाव चाहती है, इसलिए भारतीय संविधान ने संसद को इसमें बदलाव करने की शक्ति दी है।

जैसा की आप सभी जानते है कि हमारा संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। इसके 05 साल बाद 1955 में सरकार को लगा कि नागरिकता से संबंधित जो नियम हैं न इसमें संशोधन की आवश्यकता है, तब संसद में पारित किया गया नागरिकता अधिनियम 1955. इसमें भी समय के साथ छोटे-छोटे परिवर्तन किए गए, लेकिन नागरिकता से संबंधित जो हमारा अधिनियम है वह यही है और नागरिकता से संबंधित जितने भी नियम कानून है सभी का इसमें उल्लेख किया गया है, तो आइये जानते है नागरिकता देने और वापस लेने संबंधित अधिनियम, नागरिकता अधिनियम 1955 के बारे में।

नागरिकता अधिनियम 1955 (Citizenship Act 1955)

नागरिकता अधिनियम 1955 में पांच प्रकार से नागरिकता देने और तीन प्रकार से नागरिकता वापस लेना का प्रावधान किया गया है, तो आइए जानते है कि नागरिकता अधिनियम 1955 के अंतर्गत किस प्रकार से नागरिकता देने और लेने का प्रावधान किया गया है।

नागरिकता अधिनियम 1955 के अंतर्गत किस आधार पर दी जाती है नागरिकता ?

नागरिकता अधिनियम 1955 के अंतर्गत 05 आधार पर दी जाती है नागरिकता।

1.जन्म के आधार पर

इस कानून के तहत भारत जन्मभूमि में जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक बन सकता है। मतलब अगर किसी का भी जन्म भारत में हुआ तो उसे भारत की नागरिकता मिल जायेगी। इस कानून पर जरा आप भी गौर करियेगा। जानकार लोग इसे बिना सोचे समझे बनाया गया कानून मानते है। वो कैसे? तो आइये इस पर चर्चा करते है।

इस कानून के आधार पर हर वो व्यक्ति जो भारत में पैदा हुआ है, भारत का नागरिक कहलाएगा। अब मान लीजिए की कोई पर्यटक भारत घूमने आया, इसी दौरान उसे बच्चा हो गया, तो इस हिसाब से वो जो बच्चा हुआ वो तो भारत का नागरिक बन गया। ऐसे तो सोचिए भारत में कितने पर्यटक प्रति वर्ष आते है। इस प्रकार के कानून का बहुत सारे उग्रवादी किस्म के लोग फायदा उठाने की सोचते रहते है।

यह कानून बना तो 1955 में, लेकिन सरकार की नींद खुली 31 साल बाद 1986 में। सरकार को लगा की ये क्या हो गया? ये तो बहुत ही फालतू टाइप का कानून बन गया। 1986 में इसमें संशोधन करते हुए यह कानून लाया गया की जिस बच्चे का जन्म हुआ है, उसके माता-पिता में से किसी एक का भारतीय नागरिक होना जरुरी है, तभी बच्चे को भारत की नागरिकता मिलेगी।

अंतर आपको समझ में आया होगा। पहले वाले में क्या था कि नागरिक किसी भी देश के हो अगर भारत आएं है और इस दौरान बच्चा हो गया तो वह भारत की नागरिकता हासिल कर सकता था। लेकिन 1986 में जो संशोधन किया गया उसका भी कुछ लोगों ने तोड़ निकाल लिया, इसलिए 2003 में इसमें एक संशोधन और किया गया।

ये तो 1986 में ही तय हो गया था की माता पिता में से किसी एक का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है, लेकिन 2003 में ये संशोधन किया गया कि दोनों की नागरिकता मान्य (Valid) होना चाहिए। मतलब धोखाधड़ी से प्राप्त की गयी नागरिकता मान्य नहीं होगी। इसको उदाहरण के माध्यम से समझेंगे तो बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।

अब जैसे मान लीजिये की पाकिस्तान का कोई नागरिक पढ़ने या घूमने के बहाने से जम्मू-कश्मीर में आता है और 6 महीने रहने के पश्चात किसी काश्मीरी लड़की से शादी करके बच्चा पैदा कर देता है, तो 1986 वाले कानून के अनुसार तो बच्चे को भारत की नागरिकता मिल जायेगी, क्योंकि लड़की भारत की नागरिक है, लेकिन 1986 वाले कानून में 2003 में जो संशोधन किया गया उसके अनुसार यहाँ पर जो पाकिस्तान का व्यक्ति आया और यहाँ रह के शादी करके बच्चा पैदा किया, उसकी नागरिकता को मान्य नहीं किया जाएगा, क्योंकि उसका आने का उद्देश्य कुछ और था और किया कुछ और।

2.वंश के आधार पर

जैसा की हम सभी को नागरिकता मिली हुई है वंश के आधार पर की हमारे पापा यहाँ पैदा हुए और हमारे पापा के पापा भी यही पैदा हुए। लेकिन 1955 में जो अधिनियम लाया गया था, उसमें ये कहा गया था की पिता के वंश के आधार पर नागरिकता मिलेगी।

अब जैसे सैफ अली खान और करीना कपूर खान का बच्चा इंग्लैण्ड में हुआ, लेकिन पिता सैफ अली खान भारतीय नागरिक है, इसलिए उनके बच्चे को भी भारतीय नागरिकता ही मिलेगी, लेकिन इस कानून में भेदभाव जैसा प्रतीत होता है और संविधान का कहना है की लड़की या लड़के में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।

इस कानून का विरोध करते हुए महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में केस कर दिया की केवल पिता बस को कैसे वंशज माना जा सकता है, बच्चा तो हमारा भी है। इसके बाद 1992 में इस कानून में संशोधन किया गया और कहा गया की वंश की गिनती माता-पिता दोनों से होगी। आइये इसको उदाहरण के माध्यम से समझते है।

जैसे सानिया मिर्जा भारतीय है और उसके पास भारत की ही नागरिकता है, क्योंकि उसने शादी के बाद भी अभी तक भारत की नागरिकता को छोड़ा नहीं है। सानिया मिर्जा ने शादी पाकिस्तानी मूल के क्रिकेटर शोएब मलिक से की हुई है। अब जैसे उनका बच्चा होगा, तो अगर 1955 वाले नागरिकता अधिनियम से देखेंगे तो पिता के वंश के आधार पर नागरिकता मिलेगी।

इस हिसाब से बच्चा पाकिस्तानी मूल का कहलायेगा, लेकिन 1992 में जो संशोधन किया गया उस हिसाब से माता-पिता दोनों को वंश के रूप में माना जाएगा। मतलब जब वह 18 साल का होगा, तो वह अपनी स्वेच्छा से पाकिस्तान या भारत दोनों में से किसी एक देश की नागरिकता ले सकता है।

3.पंजीकरण

इसको ऐसे समझते है, जैसे – मान लीजिये की कोई विदेशी नागरिक यहाँ किसी भी उद्देश्य से जैसे नौकरी ही करने आया और उसे भारत देश बहुत अच्छा लग गया और उसने यहाँ शादी कर ली। अब उसे लगा की भारत में ही रह जाना चाहिए, तो आप है तो विदेशी नागरिक, लेकिन आप भारत की नागरिकता लेना चाहते है। इसके लिए आपको मान्य तरीके से 7 साल तक भारत में रहना होगा, उसके बाद आप पंजीकरण (Resgistration) के माध्यम से नागरिकता के लिए आवेदन करेंगे।

आपका यह आवेदन गृह मंत्रालय के पास जाएगा। यह अधिकार गृह मंत्रालय के पास है की वह आपको नागरिकता देगा या नहीं। गृह मंत्रालय आपके आवेदन पर स्वतः संज्ञान लेते हुए विचार विमर्श करके आपको नागरिकता देगा।

4.देशीकरण

इसको ऐसे समझिए, जैसे – मान लीजिए आप भारत आए है और रह रहे है, न तो आप नौकरी किए हुए है और न ही शादी, फिर भी आप भारत की नागरिकता चाहते है, तो इस स्थिति में आपको तीन शर्तो को पूरा करना होगा।

  • पहली – आप कम-से-कम 10 साल भारत में रहे हो।
  • दूसरी – भारतीय संविधान की अनुसूची 8 में भारत की 22 मान्य भाषाओं में से कम-से-कम एक भाषा आप जानते हो।
  • तीसरी – कला या विज्ञान किसी एक में आपकी गहरी रूचि है और आप उसका ज्ञान भी रखते है।

जैसे पाकिस्तान के जो अदनान सामी है, वो पिछले 10 साल से ज्यादा समय से भारत में रह रहे है। हिंदी भाषा को बहुत से जानते व समझते है। तीसरा की वो बहुत अच्छे गायक व संगीतकार है। देश विरोधी किसी भी मामलों में मिले हुए नहीं पाए गए है, इसलिए उन्हें भारत की नागरिकता दे दी गयी है।

5.अर्जित भूमि

जैसे आप कही पर कब्जा कर लेते है या किसी स्थान को अपने में सम्मिलित कर लेते है, तो वहां के लोगों को भी देश की नागरिकता देनी पड़ेगी। जैसे – सिक्किम भारत का हिस्सा नहीं था। 16 मई 1975 को सिक्किम को भारत में मिला लिया गया, तो सिक्किम में रह रहे लोगों को भी भारत की नागरिकता देनी पड़ेगी।

नागरिकता अधिनियम 1955 के अंतर्गत किस आधार पर छीनी जाती है नागरिकता ?

नागरिकता अधिनियम 1955 में तीन इस प्रकार की विधियों या कानूनों का भी उल्लेख किया गया था, जिसके तहत किसी की नागरिकता को ख़त्म किया जा सकता है।

  • पहली – जैसे की आपके पास भारत की नागरिकता है और आप किसी अन्य देश की भी नागरिकता ले लेते है, तो भारत की नागरिकता खत्म हो जाएगी।
  • दूसरी – अगर आप किसी देश-विरोधी नीति में संलिप्त पाए गए या फिर मिले हुए है। जैसे – मान लीजिये की पाकिस्तान और भारत का युद्ध चल रहा है, इस दौरान आप भारत के नागरिक होते हुए भी पाकिस्तान का समर्थन कर रहे है या पाकिस्तान के समर्थन में भाषण बाजी कर रहे है, इसके अलावा संसद ने जिस बात की मनाही की हो और वो काम आप कर रहे हो, तो इस स्थिति में आपकी नागरिकता छीनी जा सकती है या फिर आपको नागरिकता से बर्खास्त किया जा सकता है।
  • तीसरी – जैसे की आप विदेशी नागरिक है, भारत आए और 7 साल बिना रहे फर्जी दस्तावेज बनवाकर नागरिकता हासिल कर लिए, तो इस स्थिति में पकड़े जाने पर आपको नागरिकता से वंचित किया जा सकता है और धोखाधड़ी का केस लगेगा अलग से। इसके अलावा अगर आप भारत के नागरिक है पिछले 07 साल से विदेश में रह रहे है तब भी आपको भारतीय नागरिकता से वंचित किया जा सकता है।

किसी व्यक्ति की नागरिकता खत्म हो जाने का मतलब ये बिल्कुल नहीं है की उसे देश से निकाल दिया जाएगा। आप रह सकते है, कमा-खा सकते है। जीवन जीने का अधिकार नहीं छीना जा सकता। हां, आप से दो तीन तरह के अधिकार छीन लिए जाएंगे। जैसे – राजनैतिक अधिकार, मतलब न तो आप चुनाव लड़ सकते और न ही वोट डाल सकते। कुछ कानूनी अधिकार, जैसे – बड़े पदों पर आप भर्ती नहीं हो सकते या ऐसा कहे की सरकारी नौकरी नहीं कर सकते, क्योंकि आपका आधार कार्ड ही नहीं बनेगा। इसी तरह से और भी कई चीजे हैं।

नोट: आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की नागरिकता लेने-देने से संबंधित विस्तृत जानकारियों का उल्लेख मूल संविधान में नहीं किया गया था, इसका पहली बार उल्लेख नागरिकता अधिनियम 1955 में किया गया

उम्मीद करता हूँ कि नागरिकता अधिनियम 1955 का ये कांसेप्ट आप सभी को समझ में आया होगा। प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टिकोण से नागरिकता अधिनियम 1955 बहुत ही महत्वपूर्ण है। अक्सर परीक्षा में पूछ लिया जाता है कि नागरिकता अधिनियम पहली बार कब लाया गया था, तो इसके नाम में ही इसका वर्ष छुपा हुआ है, नागरिकता अधिनियम 1955.

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