लॉयर, बैरिस्टर, एडवोकेट इत्यादि न्यायिक शब्दावलियों में अंतर

भारतीय न्यायपालिका से सम्बंधित महत्वपूर्ण शब्दावलियों में अंतर

आज के इस लेख में हम लॉयर, बैरिस्टर, एडवोकेट इत्यादि न्यायिक शब्दावलियों के बीच अंतर को विधिवत समझेंगे, साथ ही भारतीय न्यायपालिका से सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण शब्दावलियों के बारे में भी जानेंगे।

तो आइये जानते है……

भारतीय न्यायपालिका से सम्बंधित महत्वपूर्ण शब्दावलियाँ।

सामान्यतः काले कोट में जब हम किसी को देखते है तो हमें ऐसा लगता है कि अरे ये तो वकील साहब है लेकिन हर काले कोट वाला वकील नहीं होता। इन काले कोट वालों में से कुछ वकील (Lawyer) कुछ अधिवक्ता (Advocate) और कुछ विधिवक्ता (Barrister) और भी कई तरह के न्यायिक अधिकारी होते है। इन सब का काम भी अलग-अलग होता है, इस वजह से इन सब का नाम भी अलग-अलग है।

इन सब का नाम तो हमनें सुन रखा है लेकिन वास्तविक में जानते नहीं है कि किस काले कोट में कौन सा न्यायिक व्यक्ति या अधिकारी है। इनके नाम का मतलब क्या है और इनका काम क्या है। तो आइये आज के इस लेख में हम

  • वकील (Lawyer)
  • विधिवक्ता (Barrister)
  • अधिवक्ता (Advocate)
  • वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate)
  • AOR – Advocate On Record
  • महाधिवक्ता (Advocate General)
  • महान्यायवादी (Attorney General)
  • महान्यायभिकर्ता (Solicitor General)
  • लोक अभियोजक (Public Prosecutor)
  • सरकारी अभिवाचक (Government Pleader)

इन सभी के बारे में विस्तृत रूप से जानते है।

वकील (Lawyer)।

मूल रूप से हम वकील उसे कहते है जिसने Law (लॉ- विधि, नियम, कानून) की पढ़ाई की हो और लॉ के क्षेत्र में डिग्री हासिल की हो, यानी कि जिसने 3 या 5 साल के LLB (Bachelor of Laws) के कोर्स को पूरा किया है। LLB Degree Job (विधि स्नातक) प्राप्त करते ही सम्बंधित व्यक्ति को वकील की उपाधि मिल जाती है।

लॉयर
वकील (Lawyer) ड्रेस कोड

लॉयर बनने के लिए विधि स्नातक (LLB) की डिग्री आवश्यक है। विधि स्नातक यानी कानून के जानकार को हम लॉयर कहते है। लॉयर का ड्रेस कोड आप ऊपर के चित्र में देख सकते है

लोगों के मन में हमेशा एक सवाल उठता है की क्या लॉयर किसी ग्राहक (Client) का कोर्ट में प्रतिनिधित्व (Represent) कर सकता है। कोर्ट की भाषा में ग्राहक को मुवक्किल कहते है। दरअसल, कोई भी लॉयर अपने क्लाइंट को कोर्ट में रिप्रजेंट नहीं कर सकता न ही उसके किसी मुद्दे में कोर्ट में जाकर बहस कर सकता। यानी कि लॉयर किसी के अधिकार के लिए नहीं लड़ सकता।

एक लॉयर अपने क्लाइंट को कानूनी सलाह या वैधानिक सलाह (Legal Advice) दे सकता है या लीगल डाक्यूमेंट्स तैयार कर के दे सकता है।

और जब एक लॉयर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI- Bar Council Of India) का एग्जाम पास कर बार काउन्सिल ऑफ इंडिया का सर्टिफिकेट प्राप्त कर लेता है तो ऐसे में वो बार काउन्सिल में खुद को इनरोल (Enroll) करके अधिवक्ता (Advocate) की उपाधि हासिल कर सकता है, जिसके बाद वो कोर्ट में अपने क्लाइंट का पक्ष भी रख सकता है।

विधिवक्ता (Barrister)।

बैरिस्टर शब्द उनके लिए यूज़ किया जाता है जिन्होंने अपनी कानून की पढ़ाई इंग्लैण्ड में पूरी की हो। जो लोग लॉ की डिग्री भारत से प्राप्त करते है उन्हें लॉयर कहा जाता है और जो लोग लॉ की पढ़ाई ब्रिटेन से करते है उन्हें बैरिस्टर कहा जाता है। दोनों का मतलब एक ही होता है। लॉयर की तरह बैरिस्टर भी किसी क्लाइंट को कोर्ट में रिप्रजेंट नहीं कर सकता है।

बैरिस्टर
बैरिस्टर (Barrister) ड्रेस कोड

जैसे महात्मा गांधी कानून की पढ़ाई के लिए इंग्लैण्ड गए और फिर वहा से बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। अगर इन्होने भारत में पढ़ाई की होती तो इन्हे लॉयर कहा जाता।

अधिवक्ता (Advocate)।

अधिवक्ता का मतलब होता है आधिकारिक वक्ता जिसके पास कानूनी तौर यह अधिकार होता है कि वह कोर्ट में क्लाइंट की तरफ से उसका पक्ष रख सकता है और उसके समर्थन के लिए कोर्ट में बहस भी कर सकता है। एडवोकेट वो होता है जो लॉ की डिग्री हासिल कर ली हो और BCI – Bar Council Of India में इनरोल हो।

एडवोकेट
अधिवक्ता ड्रेस कोड

एडवोकेट के पास कोर्ट में प्रैक्टिस करने का लायसेंस होता है, जिसके बाद कोर्ट में वो अपने किसी भी क्लाइंट का पक्ष रख सकता है। इस प्रकार हर एडवोकेट एक लॉयर हो सकता है लेकिन हर लॉयर, एडवोकेट नहीं हो सकता। ऐसा भी कहा जा सकता है कि एडवोकेट बनने के लिए पहले लॉयर बनना आवश्यक है।

अधिवक्ता (Advocate) तीन तरह के होते है।

  1. अधिवक्ता (Advocate)
  2. वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate)
  3. AOR – Advocate On Record

अधिवक्ता (Advocate)

अधिवक्ता के बारे में तो हम सभी ऊपर पढ़ चुके है कि लॉ की डिग्री हासिल करने वाला वह व्यक्ति जो BCI – Bar Council Of India में इनरोल हो अधिवक्ता कहलाता है। अधिवक्ता के पास कोर्ट में प्रैक्टिस करने और अपने किसी भी क्लाइंट का पक्ष रखने का अधिकार होता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate)

वरिष्ठ अधिवक्ता की उपाधि सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के द्वारा दी जाती है और यह उपाधि किसी अधिवक्ता की योग्यता को देखते हुए दी जाती है। वरिष्ठ अधिवक्ता की उपाधि उन अधिवक्ता को दी जाती है जो कानून की अच्छी जानकारी रखता हो और भारत के संविधान का एक अच्छा जानकार हो। वरिष्ठ अधिवक्ता होने के लिए उम्र कम से कम 45 वर्ष होना चाहिए और 10 से 20 वर्ष का प्रैक्टिस अनुभव होना चाहिए।

इसके अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता होने के लिए विशिष्ट योग्यता भी देखी जाती है जैसे कि अधिवक्ता अपने प्रैक्टिस के दौरान कितने मामलों में शामिल हुआ और उनमें से कितने फैसले उनके पक्ष या विपक्ष में आए। एक अधिवक्ता जब वरिष्ठ अधिवक्ता बन जाता है तो उसका ड्रेस कोड पूरी तरह से बदल जाता है और यहाँ तक कि उनकी फीस भी बढ़ जाती है।

एक वरिष्ठ अधिवक्ता वकालतनामा नहीं दर्ज कर सकता और बिना AOR की अनुमति के किसी बहस में शामिल हो सकता। किसी अधीनस्थ न्यायालय या न्यायधिकरण में बिना किसी अधिवक्ता के पेश नहीं हो सकता। यह सीधा किसी क्लाइंट के मुक़दमे पर बहस में शामिल नहीं हो सकता।

AOR – Advocate On Record

जैसा कि हम सभी जानते है कि सभी न्यायालय के अपने कुछ नियम होते है ऐसे में Advocate On Record में नामांकित Advocate ही उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में वकालतनामा दायर कर सकता है या किसी भी प्रकार का रिकॉर्ड पेश कर सकता है और यह Advocate किसी पार्टी या क्लाइंट की तरफ से भी सुप्रीम कोर्ट में पेश हो सकता है।

Advocate On Record की उपाधि के लिए सुप्रीम कोर्ट के विशेष एग्जाम को पास करना जरुरी होता है। Advocate On Record के लिए 5 साल का प्रैक्टिस अनुभव होना जरुरी है, जिसमें से 01 साल उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में किसी AOR के अंडर में रहकर प्रैक्टिस की हो और जिस AOR के अंडर रहकर उन्होंने प्रैक्टिस की हो उसे भी 10 साल या उससे भी ज्यादा का अनुभव होना जरुरी है। इसके बाद AOR की उपाधि मिलती है।

इनके अलावा भी कई शब्द है जिनमें लोगों को कन्फ्यूजन होता है। जैसे-

  • महाधिवक्ता (Advocate General)
  • महान्यायवादी (Attorney General)
  • महान्यायभिकर्ता (Solicitor General)

तो आइये इनके बारे में भी जान लेते है।

महाधिवक्ता (Advocate General)।

किसी राज्य के सबसे बड़े लॉ ऑफिसर को Advocate General कहते है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 165 के अनुसार केवल किसी राज्य के राजयपाल ही Advocate General की नियुक्ति कर सकते है। Advocate General राज्य सरकार को कानूनी सलाह (Legal Advice) देने का काम करता है और साथ ही कोर्ट में ये राज्य को Represent भी कर सकते है।

इसके अलावा Advocate General को विधानसभा और विधान परिषद् की कार्यवाही में बोलने और सदन में बहस करने का भी अधिकार है। राजयपाल कभी भी Advocate General को उसके पद से हटा सकता है। Advocate General के पास मतदान करने का कोई अधिकार नहीं होता है।

महान्यायवादी (Attorney General)।

संविधान के अनुच्छेद 76 के अनुसार महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। महान्यायवादी केंद्र सरकार को Represent करते है। न्यायालय में केंद्र सरकार का पक्ष रखते है। महान्यायवादी का काम केंद्र सरकार को कानूनी तौर पर Legal Advice देना होता है। इसके अलावा कानूनी प्रक्रियाओं की उन जिम्मेदारियों को भी निभाता है जो राष्ट्रपति द्वारा उसके पास भेजी जाती है।

महान्यायवादी को देश का पहला कानूनी अधिकारी भी कहा जाता है। महान्यायवादी देश के किसी भी न्यायालय में पेश हो सकते है लेकिन सरकार के खिलाफ नहीं। महान्यायवादी का काम-काज देखने के लिए उनके सहयोगी के रूप में Solicitor General की एक टीम भी होती है। वर्तमान में देश के महान्यायवादी के.के. वेणुगोपाल है, जो 2017 से इस पद पर बने हुए हैं।

कुलमिलाकर ऐसा समझे कि महान्यायवादी केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में वकील होता है, जो केंद्र सरकार के हर कानूनी मामलों को सुप्रीम कोर्ट में हैंडल करता है।

महान्यायभिकर्ता (Solicitor General)

जैसा की हमने जाना कि महान्यायवादी की मदद के लिए केंद्र सरकार की सलाह पर 4 सॉलिसिटर जनरल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। तो सॉलिसिटर जनरल उन एडवोकेट्स को बनाया जाता है जो सुप्रीम कोर्ट में न्यायधीश बनने के योग्य होते है। सॉलिसिटर जनरल, अटॉर्नी जनरल के अधीन काम करते है और उनके दिए हुए निर्देशों का पालन करते है।

सॉलिसिटर जनरल सरकार के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को भी कोर्ट में रिप्रजेंट कर सकते है। सॉलिसिटर जनरल के पास यह अधिकार होता है कि वह देश के किसी भी कोर्ट में पेश हो सकता है।

इनके अलावा भी दो शब्द है जो कभी-कभी सुनने को मिलते है।

  • लोक अभियोजक (Public Prosecutor)
  • सरकारी अभिवाचक (Government Pleader)

तो आइये इनके बारे में भी जान लेते है।

लोक अभियोजक (Public Prosecutor)।

जब भी कोई आपराधिक मामला सामने आता है तो उसका असर समाज में भी पड़ता है। जब किसी क्राइम की वजह से कोई व्यक्ति पीढ़ित होता है उससे समाज में बार-बार डर और अविश्वास बढ़ता है। ऐसे समय में जो क्राइम जिस स्टेट से होता है उसे उस स्टेट से जोड़कर देखा जाता है। किसी पीढ़ित को न्याय दिलाना और स्टेट की गरिमा को बनाए रखने की जिम्मेदारी उस राज्य की होती है।

ऐसे में जब कोई आपराधिक मामला सामने आता है तो Public Prosecutor राज्य की तरफ से स्थानीय न्यायालय में पीढ़ित का पक्ष रखता है। Public Prosecutor को हम अपनी भाषा में लोक अभियोजक (Lok Abhiyojak) भी कहते है जो सरकार की तरफ से स्टेट और वहा के लोगो को Represent करता है।

एक बार जब पुलिस की फाइनल रिपोर्ट तैयार हो जाती है और वह कोर्ट में चार्जशीट दायर कर देती है तो ऐसे समय में Public Prosecutor का काम होता है कि वह कोर्ट में सभी दस्तावेजों को सबमिट करे और बिना किसी का पक्ष लिए पीढ़ित को न्याय दिलाए। लोक अभियोजक होने के लिए लॉ की डिग्री और BCI में पंजीकृत होना आवश्यक होता है।

सरकारी अभिवाचक (Government Pleader)।

जहा एक तरफ Public Prosecutor स्टेट की तरफ से क्रिमिनल मामलों को देखते है, वही Government Pleader सिविल मामलों में स्टेट की तरफ से पेश होते है। यह एक प्रकार के वकील (Advocate) ही होते है।

यह भी पढ़े: क्रिमिनल कानून | भारतीय दंड संहिता (IPC) | दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC)

यह भी पढ़े: सिविल कानून | CPC (Civil Procedure Code) की प्रक्रिया।

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