हिजाब पहनने की अनिवार्यता कब से लागू हुई ? हिजाब पहनने की अनिवार्यता लागू होने की कहानी

आज के इस लेख में हम ईरान में ‘हिजाब – Hijab’ के शुरू होने की कहानी के बारे में जानेंगे कि ईरान में हिजाब लगाना किस प्रकार से अनिवार्य हुआ, साथ ही हिजाब को लेकर प्रारंभिक मत क्या थे और इसे किस प्रकार से अनिवार्य कर दिया गया?

तो आइए जानते हैं……

पिछले कुछ दिनों से भारत और ईरान में हिजाब पहनने को लेकर विवाद सुनने को मिल रहा है और यह अब भी जारी है, खासतौर से ईरान में। तो इसी सिलसिले में आज हम हिजाब के बारे में जानेंगे कि हिजाब पहनने की अनिवार्यता की शुरुआत कैसे हुई? क्या ईरान में हमेशा से ही हिजाब पहनने के लिए इतने कठिन नियम थे?

हिजाब – Hijab पहनने की अनिवार्यता 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद लागू हुई

ईरान में वैसे तो हिजाब को 1979 में मेंडेटरी किया गया था, लेकिन इसी वर्ष 15 अगस्त को प्रेसिडेंट इब्राहिम रईसी ने एक ऑर्डर पर साइन किए और इसे ड्रेस कोड के तौर पर सख्ती से लागू करने को कहा। 1979 से पहले शाह पहलवी के शासन में महिलाओं के कपड़ो के मामले में ईरान काफी आजाद ख्याल का देश था।

हिजाब को लेकर प्रारंभिक मत से अनिवार्य होने तक की कहानी

  • 08 जनवरी 1936 को मोहम्मद रजा शाह पहलवी ने कश्फ-ए-हिजाब लागू किया। यानी कि अगर कोई महिला हिजाब पहनेंगी, तो पुलिस उसे उतार देगी।
  • 1941 में मोहम्मद रजा शाह पहलवी के बेटे मोहम्मद रजा ने शासन संभाला और कश्फ-ए-हिजाब पर रोक लगा दी। उन्होंने महिलाओं को अपनी पसंद की ड्रेस पहनने की अनुमति दी।
  • 1963 में मोहम्मद रजा ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया और संसद के लिए महिलाएं भी चुनीं जानें लगीं।
  • 1967 में ईरान के पर्सनल लॉ में फिर से सुधार किया गया, जिसमें महिलाओं को बराबरी का हक दिया गया।
  • लड़कियों की शादी की उम्र 13 से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई, साथ ही अबॉर्शन को कानूनी अधिकार दिलाया गया।
  • पढ़ाई में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया। 1970 के दशक तक ईरान की यूनिवर्सिटी में लड़कियों की हिस्सेदारी 30% थी।

1941 से मोहम्मद रजा ही सत्ता में थे, लेकिन उन्हें निरंतर धार्मिक नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ता था। इससे निपटने के लिए मोहम्मद रजा ने इस्लाम की भूमिका को कम करने, इस्लाम से पहले की ईरानी सभ्यता की उपलब्धियां गिनाने और ईरान को एक आधुनिक राष्ट्र बनाने के लिए कई कदम उठाए, जिससे मुल्लाह और चिढ़ गए और उन्हें अमेरिका का पिट्ठू कहने लगें। अयातुल्लाह अली खामेनेई भी मोहम्मद रजा के सुधारों के खिलाफ थे, इसीलिए अयातुल्लाह अली खामेनेई को गिरफ्तार कर देश से निकाल दिया गया था।

इन घटनाओं के बीच ईरान की जनता के बीच काफी असंतोष बढ़ा और साथ ही मोहम्मद रजा का दमन चक्र भी। इतना तक तो ठीक था, लेकिन जब सरकारी प्रेस में अयातुल्लाह अली खामेनेई के खिलाफ आपत्तिजनक कहानी छपी, तो लोग भड़क उठे। दिसंबर 1978 में करीब 20 लाख लोग मोहम्मद रजा के खिलाफ प्रदर्शन करने शाहयाद चौक में जमा हुए। मोहम्मद रजा ने सेना को इन प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने को कहा, लेकिन सेना ने इस बार प्रदर्शनकारियों पर कार्यवाही करने से मना कर दिया।

फिर प्रधानमंत्री डॉ. शापोर बख्तियार की मांग पर 16 जनवरी 1979 को मोहम्मद रजा और उनकी पत्नी ईरान छोड़कर चले गए। इसके बाद प्रधानमंत्री ने सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया और अयातुल्लाह अली खामेनेई को ईरान आने दिया। प्रधानमंत्री चुनाव कराना चाहते थे, लेकिन खामेनेई ने उनकी एक न चलने दी और खुद ही एक अंतरिम सरकार का गठन कर लिया।

इस प्रकार से 1979 में हुई इस्लामिक क्रांति ने मोहम्मद रजा को अपदस्थ कर, अयातुल्लाह अली खामेनेई के अधीन एक लोकप्रिय धार्मिक गणतंत्र की स्थापना की। इस प्रकार से ईरान इस्लामिक रिपब्लिक हो गया। शियाओं के धार्मिक नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई को ईरान का सुप्रीम लीडर बना दिया गया। यहीं से ईरान दुनिया में शिया इस्लाम का गढ़ बन गया। खामेनेई ने महिलाओं के अधिकार बहुत कम करते हुए हिजाब पूरी तरह से अनिवार्य कर दिया।

अयातुल्लाह अली खामेनेई ईरान के लिए क्यों है महत्वपूर्ण ?

ईरान में सबसे ताकतवर होते हैं सर्वोच्च नेता। किसी भी जरुरी मुद्दे पर उनका फैसला आखिरी माना जाता है और वहीं दुनिया के लिए ईरान की नीतियों और तरीकों का फैसला करते हैं। ईरान दुनिया का सबसे ताकतवर शिया देश है और ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई के नेतृत्व में मध्य-पूर्व के अंदर ईरान का प्रभाव बढ़ा है।

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