Joshimath: किन कारणों की वजह से जोशीमठ धंस रहा है? साथ ही जोशीमठ क्यों है खास? जानिए यहां

जोशीमठ इलाके के घरों में दरारे क्यों आ रहीं हैं?

आज के इस लेख में हम जानेंगे कि उत्तराखंड स्थित प्रसिद्ध ‘जोशीमठ – Joshimath’ क्यों धंस रहा है? साथ ही ये भी जानेंगे कि जोशीमठ हम सभी के लिए इतना खास क्यों है ?

तो आइए जानते हैं…..

चर्चा में क्यों?

उत्तराखंड का जोशीमठ धंस रहा है, यहां अधिकांश घरों में दरारें आई हैं, इस वजह से ज्यादातर लोग डर के चलते घर के बाहर ही रह रहे हैं। किराएदार भी लैंडस्लाइड (भूस्खलन) के डर से घर छोड़ कर चले गए हैं। 4677 वर्ग किलोमीटर में फैले इस इलाके से कई परिवारों को वहां से हटाया गया है और बाकियों को हटाने का काम जारी है। उत्तराखंड सरकार ने यह सब देखते हुए जोशीमठ वाले क्षेत्र को आपदा प्रभावित क्षेत्र घोषित कर दिया है, साथ ही जोशीमठ और आसपास के इलाकों में कंस्ट्रक्शन बैन कर दिया है।

यहां तक कि प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने जोशीमठ को लेकर एक हाई लेवल मीटिंग की। केंद्र ने तुरंत लोगों को शिफ्ट करने का एक्शन प्लान तैयार किया है। केंद्र सरकार की 2 एक्सपर्ट टीमें जोशीमठ भेजी गई, जो हालत का जायजा लेंगी, इनमें जल शक्ति मंत्रालय की टीम भी शामिल है। प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि वह रिलीफ कैंप में चले जाएं। कई लोगों का तो हाल ऐसा है कि वह दूसरे शहरों में बसे अपने रिश्तेदारों के यहां रहने के लिए मजबूर हो गए हैं।

उत्तराखंड त्रासदी का गढ़

उत्तराखंड के बारे में कोई ना कोई आपदा या त्रासदी सुनने को मिलती रहती है। 2013 में उत्तराखंड में हुई तबाही के बारे में हम सभी ने सुना, देखा व जाना है। उस दौर को याद करते हैं, तो रूह कांप उठती है। वह बहुत ही डरावना, भयानक और दिल दहला देने वाला मंजर था। उत्तराखंड को लेकर एक बात मन में जरूर आती है कि आखिर उत्तराखंड में ही ऐसी भयानक त्रासदी क्यों आती है? इसके क्या कारण हो सकते हैं?

उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में त्रासदी आ चुकी है। अभी हाल ही में उत्तराखंड के जोशीमठ वाले क्षेत्रों के घरों और जमीनों में आ रही दरारों और जमीन धंसने की वजह से जोशीमठ सुर्खियों में है। तो आइए, आज हम जोशीमठ इलाके में आ रही दरारों और जमीन धंसने के कारणों के बारे में जानते हैं कि किन कारणों की वजह से ऐसा हो रहा है?

उत्तराखंड के जोशीमठ इलाके के घरों में आ रही दरारों और जमीन धंसने के कारण

उत्तराखंड के जोशीमठ इलाके के घरों में आ रही दरारों और जमीन धंसने के निम्न कारण हैं

उत्तराखंड का जोशीमठ – Joshimath ग्लेशियर के मलबे पर बसा हुआ है

हिमालय के ईको सेंसेटिव जोन (पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र) में मौजूद जोशीमठ- बद्रीनाथ, हेमकुंड और फूलों की घाटी तक जाने का प्रवेश द्वार माना जाता है। वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी ने अपने रिसर्च में कहा था- उत्तराखंड के ऊंचाई वाले इलाकों में पड़ने वाले अधिकतर गांव ग्लेशियर के मटेरियल पर बसे हैं। जहां आज लोगों की बसाहट है, वहां कभी ग्लेशियर थे। इन ग्लेशियरों के ऊपर लाखो टन चट्टानें और मिट्टी जम जाने के बाद ये ठोस दिखने लगे। इसका कारण यह है कि लाखों साल बाद ग्लेशियर की बर्फ पिघलती है और मिट्टी पहाड़ बन जाती है।

वाडिया इंस्टीट्यूट ने अपनी रिपोर्ट में पाया था कि मोरेन पहाड़ का एक वक्त के बाद खिसकना तय होता है, क्योंकि इनका निर्माण भी ऐसे होता है। हालांकि, लगातार ब्लास्ट और बेहिसाब कंस्ट्रक्शन ने इसमें और गति पैदा कर दी है। वहीं इसके वैज्ञानिकों ने कहा था कि जोशीमठ शहर के नीचे एक तरफ धौलीगंगा और दूसरी तरफ अलकनंदा नदी है और दोनों नदियों की वजह से लगातार पहाड़ का कटाव हो रहा है, जिस वजह से यह दिन प्रतिदिन और कमजोर होता जा रहा है।

लोकेशन, टोपोग्राफी और मौसम

जोशीमठ, पश्चिम और पूर्व में कर्मनासा और ढकनाला धाराओं और उत्तर और दक्षिण में धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों से घिरी एक पहाड़ी के मध्य ढाल में बसा हुआ है। उत्तराखंड स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (USDMA) के एक अध्ययन के अनुसार शहर भूस्खलन की संभावना वाले क्षेत्र में है और इसके धंसने की पहली घटना 1976 में मिश्रा आयोग की रिपोर्ट में दर्ज की गई थी। जोशीमठ शहर के आसपास का क्षेत्र ओवरबर्डन मटेरियल की मोटी लेयर से ढका हुआ है।

यूएसडीएमए के कार्यकारी निदेशक पीयूष रौतेला ने कहा- ओवरबर्डन मटेरियल शहर को डूबने के लिए अत्यधिक संवेदनशील बनाता है। अध्ययन में कहा गया है, जून 2013 और 8 फरवरी 2021 की बाढ़ की घटनाओं का भूस्खलनक्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, जिसमें 7 फरवरी 2021 से ऋषि गंगा की बाढ़ के बाद रविग्राम नाला और नौ गंगा नाला के साथ कटाव और फिसलन बढ़ गई हैं। इसका संदर्भ ग्लेशियर झील के फटने से है, जिसके कारण बाढ़ आई और परिणाम स्वरूप 204 लोगों की जान चली गई, जिनमें ज्यादातर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पर काम करने वाले प्रवासी थे।

अध्ययन में बताया गया कि 17 अक्टूबर 2021 को जोशीमठ में 24 घंटे में 190 मिलीमीटर बारिश दर्ज होने पर भूस्खलन क्षेत्र और कमजोर हो गया था। पिछली बार की घटना फरवरी 2021 के दौरान धौलीगंगा से आए मलबे में भरे पानी की भारी मात्रा में विष्णुप्रयाग में धौलीगंगा नदी के साथ इसके संगम के नीचे अलकनंदा के बाएं किनारे के साथ-साथ कटाव को भी बढ़ा दिया है। यूएसडीएमए की रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ शहर जिस ढलान पर है, उसकी स्थिरता पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।

अनुचित जल निकासी – Improper Water Drainage

यूएसडीएमए और विशेषज्ञों ने सतह से पानी के रिसाव में वृद्धि के कारणों की ओर इशारा किया, जो धंसने का एक संभावित कारण है। सबसे पहले सतह पर मानवजनित गतिविधियों ने प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को ब्लॉक कर दिया है, जिससे पानी को नए जल निकासी मार्गों को खोजने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

दूसरा जोशीमठ इलाके में सीवेज (गंदा पानी) और अपशिष्ट जल निपटान (वेस्टवॉटर डिस्पोजल सिस्टम) नहीं है। हेमंत ध्यानी ने कहा कि सीवेज ओवरबर्डन मिट्टी की कितनी ताकत को कम कर देता है, यह जोशीमठ के सुनील गांव के आसपास दिखाई दे रहा है, जहां पानी के पाइपों पर धंसने का असर दिखाई दे रहा है।

अनियोजित निर्माण – Unplanned Construction

जोशीमठ क्षेत्र में रह रहे लोगों का मानना है कि NTPC के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की वजह से ही यह बड़ी मुसीबत पैदा हुई है। चार धाम प्रोजेक्ट पर पर्यावरण और सुप्रीम कोर्ट से नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति (HPC) के सदस्य हेमंत ध्यानी ने कहा कि क्षेत्र की भूवैज्ञानिक संचालन (Geological Operability) से पूरी तरह अवगत होने के बावजूद जोशीमठ और तपोवन के आसपास हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है, जिसमें विष्णुगढ़ एचई योजना भी शामिल है।

उन्होंने बताया कि एक दशक पहले विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि अचानक और बड़े पैमाने पर सतह से पानी निकालने से क्षेत्र में जमीन धंसने की शुरुआत हो सकती है, लेकिन फिर भी कोई सुधारात्मक उपाय नहीं किए गए। इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि शहर डूब रहा है।

इन चल रही योजनाओं के तहत पहाड़ों को काटकर लंबी सुरंग बनाई जा रही है। 2 साल पहले शुरू हुए पावर प्रोजेक्ट के बाद से ही यहां जमीन पर दरारें पड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था। सरकारी परियोजनाओं के चलते पूरे शहर में टनल बनाने के लिए ब्लास्ट किए जा रहे हैं, जो खतरे की घंटी है।

यहां पर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट और मिश्रा आयोग की रिपोर्ट की बात हुई है, तो आइए इनके बारे में जान लेते हैं।

हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट – उत्तराखंड

31 दिसंबर 2002 को एनटीपीसी यानी कि नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन और उत्तराखंड सरकार के बीच एक समझौते पर बात हुई। इसके बाद 23 जून 2004 को इस समझौते पर हस्ताक्षर हुए। ये समझौता चमोली जिले की धौलीगंगा नदी पर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बनाने के लिए था। इसका नाम तपोवन विष्णुगढ़ हाइड्रो पावर प्लांट रखा गया। 14 फरवरी 2005 को तत्कालीन ऊर्जा मंत्री पीएम सईद और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा इसकी आधारशिला रखी गई।

यह पावर प्लांट अलकनंदा नदी के नीचे बन रहा है और इसमें 130 मेगावॉट के चार पेल्टन टर्बाइन जनरेटर शामिल हैं। धौलीगंगा नदी पर बैराज बन रहा है। कुल मिलाकर यह पावर प्लांट 520 मेगावॉट का हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट है। इसके बनने के बाद सालाना 2.5 टेरावॉट ऑवर (TWh) बिजली पैदा होने की उम्मीद है। इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 2978.5 करोड रुपए है।

हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की वजह से कैसे धंस रहा है जोशीमठ ?

एचएनबी गढ़वाल यूनिवर्सिटी में जियोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड प्रोफेसर वाईपी सुंदरियाल ने न्यूज़ एजेंसी से कहा कि सरकार ने 2013 की केदारनाथ बाढ़ और 2011 की ऋषि गंगा बाढ़ से सबक नहीं लिया है। उत्तराखंड के ज्यादातर इलाके भूकंप प्रभावित हैं।

सुंदरियाल ने सेंट्रल हिमालय बुक के हवाले से बताया कि जोशीमठ भूस्खलन से निकले मलबे पर बसा है। 1971 में भी कुछ घरों में दरारें आई थी। कैसा माहौल देखते हुए और इससे निपटने के लिए उस समय कहा गया था कि ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की जरूरत है और जोशीमठ क्षेत्र में ज्यादा विकास कार्य नहीं करना चाहिए, पर इन बातों का पालन नहीं किया गया।

सुंदरियाल ने कहा कि जोशीमठ का मौजूदा संकट इंसानों ने ही खड़ा किया है। आबादी कई गुना बढ़ गई है, जिस वजह से पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है। इसके अलावा बहुत तेजी से इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने आगे कहा कि हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के लिए सुरंग बनाई जा रही है और इसके लिए अधिक मात्रा में ब्लास्ट किए जा रहे हैं, जिस कारण मलवा निकल रहा है और घरों में दरारें पड़ रही हैं और घूम धंस रही है।

हाइड्रो पावर प्लांट

उत्तराखंड के चार धाम

  • गंगोत्री – उत्तरकाशी
  • यमुनोत्री – उत्तरकाशी
  • केदारनाथ – रुद्रप्रयाग
  • बद्रीनाथ – चमोली

क्यों खास है जोशीमठ

  • जोशीमठ का उत्तराखंड के पर्यटन और तीर्थाटन में महत्वपूर्ण स्थान है यह अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए व प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से भी जाना जाता है।
  • इतिहासकारों ने जोशीमठ को सातवीं से दसवीं सदी तक कत्यूरी राजवंश की राजधानी के बतौर स्वीकार किया है। आठवीं सदी में शंकराचार्य के यहां आगमन ने इसे सांस्कृतिक और धार्मिक तौर पर विशिष्टता प्रदान की।
  • हिंदुओं की 4 पीठों में से एक ज्योतिष पीठ और चार प्रमुख धामों में से प्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ धाम का भी ये पड़ाव है। सिक्खों का पवित्र धाम हेमकुंड इसके निकट है और इसी के निकट प्रसिद्ध फूलों की घाटी ने इस नगर को अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन क्षेत्र के तौर पर स्थापित किया है।
  • औली, गोरसों, नंदा देवी, क्वारीपास और बहुत से बेहतरीन ट्रैक्स रूट्स ने जोशीमठ को पर्यटन और तीर्थाटन के अनुपम केंद्र के रूप में पहचान दी है।
  • जोशीमठ, बद्रीनाथ धाम जाने का पहला पड़ाव भी है। बद्रीनाथ जाने से पहले जोशीमठ ही बीच में आता है। बद्रीनाथ धाम के कपाट जब बंद होते हैं, तो शीतकालीन पूजा जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में होती है।
  • सामरिक दृष्टि से भी जोशीमठ महत्वपूर्ण है, क्योंकि चीन सीमा से लगे लगे बॉर्डर को जाने वाला रास्ता जोशीमठ से होकर जाता है। इसके अलावा जोशीमठ में आइटीबीपी (ITBP) का भी एक कैंप है।
जोशीमठ

उत्तराखंड में अब तक हुईं प्राकृतिक आपदाएं

  • 1991 में उत्तरकाशी में भूकंप: अक्टूबर 1991 में उत्तरकाशी में 6.8 की तीव्रता का भूकंप आया था। इस भूकंप में 768 लोगों की मौत हो गई थी, हजारों घर तबाह हो गए थे। उस समय उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था।
  • 1998 माल्पा में लैंडस्लाइड: माल्पा पिथौरागढ़ जिले का छोटा सा गांव है। 1998 में यहां हुई लैंडस्लाइड्स में 255 लोगों की मौत हो गई थी, इनमें से 55 कैलाश सरोवर जा रहे तीर्थयात्री थे।
  • 1999 चमोली में भूकंप: 1999 में चमोली में आए भूकंप की तीव्रता 6.8 थी। इस घटना में 100 लोगों की मौत हो गई थी। पास के जिले रुद्रप्रयाग में भी काफी नुकसान हुआ था।
  • 2013 में केदारनाथ में बाढ़: जून 2013 में बादल फटने और ग्लेशियर टूटने की वजह से भीषण बाढ़ आई और भूस्खलन हुआ। इस भयानक त्रासदी में 5700 लोगों की मौत हुई और इस घटना के दौरान करीब 300000 लोग फंस गए थे।
  • 2021 में ऋषि गंगा में बाढ़: 2021 में ऋषि गंगा में बाढ़ आने की वजह से 204 लोगों की जान चली गई थी, इनमें ज्यादातर प्रवासी मजदूर शामिल थे।

यह भी पढ़ें:

भारतीय बजट का इतिहास: भारत का बजट सबसे पहले कब और किसके द्वारा पेश किया गया?

बजट से संबंधित प्रमुख शब्दावलियां, जो बजट को पढ़ना और समझना कर देंगी आसान

सम्बंधित लेख

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

लोकप्रिय