पारिस्थितिक तंत्र (Ecological System) | पारितंत्र (Ecosystem)

आज के इस लेख में हम पारितंत्र (Ecosystem) या पारिस्थितिक तंत्र (Ecological System) के बारें में जानेंगे। यह विज्ञान विषय का बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक है। 

तो आइये जानते है……..

पारितंत्र (Ecosystem) या पारिस्थितिक तंत्र (Ecological System )।

पर्यावरणहमारे आसपास या चारों तरफ मौजूद समस्त चीजें जिनसे हम घिरे हुए है, यही समस्त चीजें मिलकर पर्यावरण का निर्माण करती है। जैसे- हमारा घर, दुकान, बाग, बगीचे, मैदान, पठार, पर्वत, नदियाँ, समुद्र, महासागर, हवा, मिट्टी, सूर्य का प्रकाश, पौधे, जीव-जंतु आदि। पर्यावरण में ही सब कुछ निहित है। पारिस्थितिक तंत्र पर्यावरण का ही हिस्सा है। समस्त सजीव प्राणी जीवित रहने के लिए पर्यावरण पर निर्भर है। 
प्रकृति में प्रकृति में जैविक और अजैविक घटकों के आपस में क्रिया के फलस्वरूप एक तंत्र का निर्माण होता है जिसे पारितंत्र (Ecosystem) या पारिस्थितिक तंत्र (Ecological System) कहते है। सरल शब्दों में इसको ऐसे समझे कि एक क्षेत्र विशेष जहाँ जैविक और अजैविक घटक आपस में क्रिया करके जीवन संभव बनाए हुए है उसे पारितंत्र या पारिस्थितिक तंत्र कहते है।
 

जैविक घटक और अजैविक घटक की आपस में क्रिया को ऐसे समझे कि समस्त सजीव प्राणी जीवित रहने के लिए अपना भोजन और ऑक्सीजन पर्यावरण से प्राप्त करते है। पेड़ का उदाहरण ले तो पेड़, सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन बनाते है। तो यहाँ पर पेड़ जैविक घटक हुआ और सूर्य का प्रकाश अजैविक घटक। (जैविक और अजैविक घटक की क्रिया को आगे हम विस्तार से समझेंगे)

पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार।

पारिस्थितिक तंत्र दो प्रकार के होते है प्राकृतिक और मानव निर्मित। प्रकृति ने जो बनाए है वो प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र कहलाते है। ये दो प्रकार के होते है स्थलीय और जलीय। जैसे- वन, जंगल, मरुस्थल, स्थलीय और सागर, नदियाँ, महासागर ये जलीय। वही बगीचे, खेल के मैदान, मानव निर्मित तालाब आदि ये मानव निर्मित पारिस्थितिक तंत्र है।

पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार

पारिस्थितिक तंत्र की संरचना।

पारिस्थितिक तंत्र मूल रूप से दो घटकों से मिलकर बनता है। वास्तव में, इन्ही दोनों घटकों की आपस में क्रिया के फलस्वरूप पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण होता है। 

  1. जैविक घटक 
  2. अजैविक घटक
पारिस्थितिक तंत्र के घटक

1. जैविक घटक

विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे, सूक्ष्म जीव और जंतु जैविक घटक के अन्तर्गत आते है। एक पारिस्थितिक तंत्र में जंतु और पादप (वनस्पति और छोटे-बड़े पौधे) साथ-साथ रहते है। जो किसी न किसी प्रकार से आपस में सम्बंधित होते है। जैविक घटक को सजीव घटक भी कहा जाता है। पोषण के आधार पर जैविक घटकों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है।

  • उत्पादक 
  • उपभोक्ता 
  • अपघटक 
उत्पादक (Producer)। 

सभी उत्पादक प्रथम पोषण स्तर में आते है, ये स्वपोषी होते है, क्योंकि ये अपना भोजन खुद बना लेते है, ये सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में पानी और वायुमंडल की कार्बन डाइऑक्साइड के उपयोग से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन खुद बना लेते है। इस क्रिया के दौरान पेड़-पौधे ऑक्सीजन बाहर निकालते है। उत्पादक की श्रेणी में गेंहूँ, चावल, आम का पेड़, पीपल का पेड़ आदि समस्त पेड़-पौधे आते है।

उपभोक्ता (Consumer)।

समस्त उपभोक्ता परपोषी श्रेणी में आते है क्योंकि ये अपना भोजन खुद नहीं बनाते, ये अपने भोजन के लिए पेड़-पौधों या अन्य जीवों पर निर्भर रहते है। इसके अंतर्गत वो सभी सजीव प्राणी आते है जो अपने भोजन के लिए पेड़-पौधों या अन्य जीवों पर निर्भर रहते है। ये पेड़-पौधों द्वारा तैयार भोजन या अन्य जीवों का उपभोग करते है इसलिए इन्हे उपभोक्ता कहा जाता है। उपभोक्ताओं को मुख्यतः तीन श्रेणियों में रखा गया है।

  • प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumer)
  • द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumer)
  • तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumer)
प्राथमिक उपभोक्ता (शाकाहारी)। Primary Consumer (Vegetarian)

वो समस्त जीव-प्राणी जो शाकाहारी होते है, प्राथमिक उपभोक्ता की श्रेणी में आते है। ये अपने भोजन के लिए उत्पादक अर्थात पेड़-पौधों पर निर्भर रहते है। मतलब ये घास, फसल, अनाज, बाग़-बगीचे, पेड़–पौधों की पत्तिया, छोटे-छोटे पौधों को खाकर अपना जीवन व्यतीत करते है। जैसे- भैंस, गाय, बकरी, घोड़ा, हिरण, ऊँट, खरगोश, टिड्डा, हाथी, जिराफ, गधा आदि।

द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumer)।

ऐसे समस्त जीव जो अपने भोजन के लिए प्राथमिक उपभोक्ता यानि शाकाहारी जीवों पर निर्भर रहते है, उन्हें द्वितीयक उपभोक्ता कहा जाता है। ये मांसाहारी श्रेणी में आते है। जैसे- मेढ़क, छिपकली, लोमड़ी, शेर आदि।

तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumer)।

इस श्रेणी में भी मांसाहारी ही आते है। इस श्रेणी के उपभोक्ता अपने भोजन के लिए मांसाहारी जीव या द्वितीयक उपभोक्ता पर निर्भर रहते है। जैसे- सांप, गिद्ध, चील, बाज, शेर आदि।

पारीरस्थितिक तंत्र में कुछ ऐसे जीव होते है जो अपने भोजन के लिए उत्पादक, प्राथमिक उपभोक्ता (शाकाहारी), मांसाहारी जीवों पर निर्भर रहते है उन्हें सर्वाहारी या सर्वभक्षी कहा जाता है। जैसे कुत्ता, बिल्ली, भालू आदि। मनुष्य भी इसी श्रेणी में आता है। ये सर्वाहारी जीव गेंहूँ, चावल, खाने के साथ मांस भी खाते है इसलिए इन्हे सर्वाहारी कहा जाता है।

अपघटक (Decomposer)।

इसके अंतर्गत सूक्ष्मजीव आते है। जैसे- कवक जीवाणु, कीट, घुन, दीमक आदि। ये सूक्ष्मजीव विभिन्न श्रेणी के जीवों (पौधों और जंतुओं) के मृत शरीर में उपस्थित जटिल कार्बनिक यौगिकों को सरल यौगिकों में विघटित कर देते है, जिससे सरल यौगिक भूमि में पहुंचकर पुनः पौधों के उपयोग के लिए उपलब्ध हो जाते है। इस प्रकार से यह ऊर्जा स्थानान्तरण का चक्र चलता रहता है। ये सूक्ष्मजीव अपने भोजन के लिए मृत जीवों पर निर्भर रहते है इसलिए इन्हे मृतोपजीवी कहा जाता है। 

नोट:- कौआ, चील, बाज, गिद्ध इन्हे भी अपघटक माना जाता है। क्योंकि ये भी मरे हुए जीवों को खाते है और मरे हुए जीव इनका मुख्य भोजन हैं।

चील एक अपघटक

2. अजैविक घटक।

पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाले समस्त निर्जीव पदार्थ अजैविक घटक के अंतर्गत आते है। अजैविक घटकों को तीन भागो में बांटा गया है।

  • अकार्बनिक पदार्थ
  • कार्बनिक पदार्थ 
  • जलवायु सम्बन्धी कारक 
अकार्बनिक पदार्थ।

जल, खनिज लवण, गैसे जैसे- ऑक्सीजन, कॉर्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन आदि ये अकार्बनिक पदार्थ कहलाते है।  ये सभी अकार्बनिक पदार्थ पेड़-पौधों (स्वपोषी, जिन्हे उत्पादक कहा जाता है) को भोजन बनाने में काम आते है। पेड़-पौधे इन्हे वातावरण से प्राप्त करते है।

कार्बनिक पदार्थ।

मृत पौधों एवं जंतुओं से प्राप्त प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा आदि ये कार्बनिक पदार्थ कहलाते है। मृतोपजीवी जीव जैसे कवक और जीवाणु मरे हुए जीवों के शरीर में उपस्थित जटिल कार्बनिक यौगिकों को अकार्बनिक पदार्थ में बदल देते है और ये अकार्बनिक पदार्थ वापस से पेड़-पौधों के पास चले जाते है। इस प्रकार से विभिन्न कार्बनिक पदार्थ पारिस्थितिक तंत्र के जैविक और अजैविक घटकों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करते है, जिससे ऊर्जा का प्रवाह निरंतर जारी रहता है। 

जलवायु सम्बन्धी कारक।

प्रकाश, वर्षा, ताप, वायु, पाला, कोहरा, आर्द्रता आदि भौतिक कारक जलवायु सम्बन्धी कारक कहलाते है। पारिस्थितिक तंत्र में इन सभी का निरंतर प्रवाह में बने रहना आवश्यक है। हमें लगता है कि पारिस्थितिक तंत्र की संरचना का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यही है, इसी से समस्त जीव जीवित है और हमारे जीवमंडल पृथ्वी पर भोजन मौसम और तापमान का संतुलन बना हुआ है। 

पारिस्थितिक तंत्र की परिभाषा में एक कड़ी आई कि प्रकृति में जैविक और अजैविक घटकों के आपस में क्रिया के फलस्वरूप एक तंत्र का निर्माण होता है जिसे पारितंत्र (Ecosystem) या पारिस्थितिक तंत्र (Ecological System) कहते है। अब जैविक और अजैविक घटकों की आपसी क्रिया को एक बेहतरीन उदाहरण के माध्यम से समझते है।

पारिस्थितिक तंत्र में जैविक और अजैविक घटकों की क्रिया को हम एक अच्छे उदाहरण के माध्यम से समझते है।

पारिस्थितिक तंत्र में जैविक और अजैविक घटकों की आपसी क्रिया का तालाब एक अच्छा उदाहरण है, तो आइये इसको समझते है। किसी भी तालाब की तीन सतहें होती है। ऊपरी, मध्य व निचली सतह। तीनों सतहों में ऑक्सीजन, तापमान, प्रकाश की स्थिति तथा इनमें रहने वाले जैविक घटकों को प्रभावित करने वाले कारकों के आधार पर काफी अंतर होता है। यदि आपने कभी तालाब में डुबकी लगाई होगी तो जरूर महसूस किया होगा कि जल की ऊपरी और निचली सतह के तापमान में अंतर रहता है। 

तालाब एक पारिस्थितिक तंत्र का उदाहरण।
तालाब एक पारिस्थितिक तंत्र।

मान लीजिए एक तालाब है, तो तालाब का पानी, पानी में घुली हुई ऑक्सीजन, कार्बन डाईऑक्साइड, मिट्टी, पत्थर, खनिज आदि ये अजैविक घटक है, वही तालाब में रहने वाले छोटे से लेकर बड़े तक पौधों एवम जंतुओं की समस्त प्रजातियां जैविक घटक के अंतर्गत आती है। जिस तालाब में जितनी अधिक प्रजातियां होगी वह तालाब उतना ही सशक्त और स्वस्थ पारिस्थिक तंत्र होगा।

जब आप एक पारिस्थितिक तंत्र देखेंगे तो पायेंगे कि एक जीव दूसरे जीव को खाने तथा दूसरे जीव द्वारा खाए जाने कि एक श्रृंखला बनाते है। जैसे- ऊपर चित्र में देखिये छोटी मछलियां, फाइटोप्लैंकटन (अति सूक्ष्म पादप) जो उत्पादक की श्रेणी में आते है, उन्हें खाती है फिर इन छोटी मछलियों को बड़ी मछलियां खाती है। फिर इन बड़ी मछलियों को मगरमच्छ खा लेता है।

पारिस्थितिक तंत्र का मतलब यही है कि समस्त जीव अपने पोषण के लिए एक-दूसरे पर निर्भर है। इसी प्रक्रिया के तहत सभी का जीवन संभव है। इस प्रकार से आप देखेंगे कि एक श्रृंखला का निर्माण हो रहा है। इस प्रकार की श्रृंखलाओं को ही खाद्य श्रृंखला कहते है। मतलब एक खाद्य श्रृंखला के अंतर्गत हर बड़ा जीव अपने से छोटे जीव को खाता है और यही प्रक्रिया क्रमशः चलती रहती है।

तालाब में ही विभिन्न जीव जन्म लेते है, सांस लेते है, जीते है, पोषण लेते है व उत्सर्जन करते है, भ्रमण, विकास व जनन करते है, दूसरों जीवों को अपना भोजन बनाते है और फिर दूसरे जीव का भोजन बन जाते है और इसी तालाब में मर भी जाते है। तो यहाँ पर आप ये समझ गए होंगे कि कैसे जैविक और अजैविक घटक आपस में क्रिया करके एक तंत्र का निर्माण किए। इसी प्रकार के तंत्रों को पारिस्थितिक तंत्र कहते है।

पारिस्थितिक तंत्र के कार्य (Ecosystem Functions)।

  • पारिस्थितिक तंत्र एक ऐसा तंत्र है जो हमेशा क्रियाशील रहता है।
  • इसके क्रियाशील रहने की वजह से ही सभी पोषण स्तरों में ऊर्जा का प्रवाह निरंतर बना रहता है।
  • उत्पादक पेड़-पौधें, सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन बनाते है।
  • प्राथमिक उपभोक्ता, पेड़-पौधों से अपना भोजन प्राप्त करते है।
  • मांसाहारी जीव उत्पादक और प्राथमिक उपभोक्ता से अपना भोजन प्राप्त करते है।
  • अपघटक सभी श्रेणियों के मरे हुए जीवों से अपना भोजन प्राप्त करते है।

इस प्रकार से सजीव प्राणी आवश्यकतानुसार जलमंडल, स्थलमंडल और वायुमंडल से तत्वों को प्राप्त करते है और उपभोग के बाद एक समयांतराल में उसे पुनः मंडलों में मुक्त कर देते है। इससे क्या होता है कि निरंतर ऊर्जा का चक्र चलता रहता है और सभी प्राणी-जीवों को पोषण मिलता रहता है। पारिस्थितिक तंत्र के कार्य का सारांश यह है कि ऊर्जा का जो प्रवाह पेड़-पौधों से शुरू हुआ था वह आखिरी में अपघटकों के माध्यम से उसी में फिर से पहुँच जाता है। यह ऊर्जा का प्रवाह साइक्लिक होता है इसलिए पारिस्थितिक तंत्र में संतुलन बना रहता है।

पारिस्थितिक तंत्र का महत्व (Importance Of Ecosystem)।

पारिस्थितिक तंत्र का सबसे बड़ा महत्व यह है कि इसी की वजह से हमारे पर्यावरण में संतुलन बना हुआ है। संतुलन ऐसे बना हुआ है कि सभी जीव एक-दूसरे पर निर्भर है। जैसे- पेड़-पौधे उत्पादक का काम करते है, फिर इनका उपभोग प्राथमिक उपभोक्ता करते है और यह कड़ी अपघटक तक पहुँचती है। जरा सोचिये अगर पेड़-पौधे नही होंगे तो क्या होगा…… मतलब साफ़ है संतुलन बिगड़ जाएगा। पारिस्थितिक तंत्र में पाए जाने वाली खाद्य श्रृंखलाओं और खाद्य जाल की वजह से किसी भी जीव की न अधिकता हो पाती और न ही कमी। पारिस्थितिक तंत्र की खाद्य श्रृंखलाएं और खाद्य जाल पर्यावरण में स्थायित्व और संतुलन बनाए हुए है।

जनसँख्या वृद्धि, मानव स्थापना और भूमि वितरण का पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव।

सम्पूर्ण जीव-जगत का आधार भूमि एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। जैसे-जैसे जनसँख्या बढ़ रही है, वैसे-वैसे मानव के रहने और कृषि करने के लिए जमीन का बंटवारा बढ़ रहा है। मतलब प्रति व्यक्ति भू-भाग निरंतर कम हो रहा है। इसका सीधा असर बाग़-बगीचे, वन, जंगल पर पड़ रहा है। जमीन तो स्थायी है लेकिन जनसँख्या बढ़ने से मानव के रहने के लिए स्थान की ज्यादा आवश्यकता पड़ रही है।

बढ़ती जनसँख्या व विकास के नाम पर आवागमन हेतु चौड़ी सड़के, आवासीय कालोनियां, खेल के मैदान, अस्पताल, सिनेमाघर, विभिन्न विभागों हेतु भवन निर्माण, एयर पोर्ट, रेल्वे स्टेशन, बस अड्डे इनका तेजी से निर्माण हो रहा है। इसलिए दिन-प्रतिदिन बाग़-बागीचों, वन, जंगल का क्षेत्र कम हो रहा है जिसकी वजह से उत्पादक और विभिन्न जीवों में निरंतर कमी आ रही है। जंगल न होने की वजह से तो कई जीव विलुप्त हो गए, इस कारण हमारे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है।

विकास व लोगों के रहने के लिए जिस प्रकार से अंधाधुंध पेड़-पौधों की कटाई हो रही है उसका असर कृषि भूमि पर भी पड़ रहा है। लगातार पेड़-पौधों की कटाई की वजह से प्रति वर्ष लाखों हेक्टयर भूमि के ऊपरी सतह वर्षा के कारण बह जाते है इससे भूमि का उपजाऊपन कम होता जा रहा है। कुछ क्षेत्रों की उपजाऊ भूमि बंजर भूमि में परिवर्तित हो गयी है। इस बंजर भूमि का उपजाऊपन बढ़ाने के लिए मानव रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक दवाओं का उपयोग कर रहा है इससे भूमि का उपजाऊपन और कम हो रहा है।

यह भी पढ़े: खाद्य श्रृंखला (Food Chain) | खाद्य जाल (Food Web)

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