आज के इस महत्वपूर्ण लेख में हम जीव तथा एक पारिस्थितिक तंत्र (Eco-system) के अंतर्गत खाद्य श्रृंखला (Food Chain) में जीवों के वर्गीकरण के बारें में जानेंगे।
तो आइए जानते हैं……
जीव किसे कहते है?
विज्ञान की भाषा में हमारे आसपास या चारों तरफ मौजूद समस्त चीजें जिनसे हम घिरे हुए है, यही समस्त चीजें मिलकर पर्यावरण का निर्माण करती है। जैसे- हमारा घर, दुकान, बाग, बगीचे, मैदान, पठार, पर्वत, नदियाँ, समुद्र, महासागर, हवा, मिट्टी, सूर्य का प्रकाश, पौधे, जीव-जंतु आदि। पर्यावरण में ही सब कुछ निहित है। पारिस्थितिक तंत्र पर्यावरण का ही हिस्सा है। पारिस्थितक तंत्र को दो घटकों में विभाजित किया जाता है: जैविक घटक (जीवीय भाग) और अजैविक घटक (अजीवीय भाग)।
एक पारिस्थितिक तंत्र के अंतर्गत, जिनमें पुनरुत्पादन (Reproduction) या पुनः उत्पादन करने की क्षमता होती है, उसे जीव कहा जाता है। पारिस्थितिक तंत्र में जीवीय भाग की सबसे छोटी और महत्वपूर्ण इकाई होती है जीव। सबसे पहले जीव न्यूक्लिक अम्ल व प्रोटीन से मिलकर बने न्यूक्लियोप्रोटीन अणु थे, जो अपनी प्रतिकृतियां तैयार कर सकते थे। इन्हीं से विभिन्न प्रकार के एक कोशिकीय व बहुकोशिकीय जीव बने, जो हमारे जीवीय पारिस्थितिकीय तंत्र का भाग हैं।
जीवों का वर्गीकरण तथा एक खाद्य श्रृंखला के अंतर्गत उनका आपस में संबंध
उपभोक्ता की श्रेणी के अंतर्गत जीवों में वर्गीकरण तो होता है, लेकिन एक खाद्य श्रृंखला और खाद्य जाल के अंतर्गत सभी जीव अपने भोजन के लिए एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। वो कैसे, तो आइये समझते हैं।
जीव दो प्रकार के होते हैं
- स्वपोषी (Autotrophic)
- परपोषी (Heterotrophic)
स्वपोषी (Autotrophic)।
स्वपोषी उन्हें कहा जाता है, जो अपना भोजन खुद बना लेते हैं। हम अपना भोजन खुद नहीं बनाते हैं, बल्कि उसे पकाकर खाते हैं। जैसे: चावल की फसल उगाए, पक जाने पर उसकी साफ़-सफाई करके घर में रख लिए और जब जरुरत हुई पकाकर खा लिए।
लेकिन पेड़-पौधों के पास ऐसी व्यवस्था नहीं होती, उनमें क्लोरोफिल होता है, जिसके माध्यम से, वो सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन खुद बना लेते हैं। इस प्रकार से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया के माध्यम से, जो अपना भोजन खुद बना लेते हैं, उन्हें स्वपोषी कहा जाता है। स्वपोषी के अंतर्गत सभी पेड़-पौधे आते हैं।
यूग्लीना (Euglena) एक ऐसा जीव है, जो स्वपोषी व परपोषी दोनों श्रेणी में आता है। यूग्लीना भोजन भी बना लेता है और दूसरी चीजों को भी खा लेता है। यूग्लीना एककोशिकीय प्रोटोजोआ संघ का एक बहुत ही छोटा जीव है। इसे पादप और जंतुओं के बीच का योजक कड़ी कहा जाता है।
यूग्लीना के शरीर के अंदर हरितलवक (Chloroplast) पाया जाता है, जिसकी वजह से ये दिन में सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन बना लेता है और रात में जमीन पर पड़ी हुई छोटी-छोटी चीजों को खाता है।
परपोषी (Heterotrophic)।
परपोषी उन्हें कहा जाता है, जो अपने भोजन के लिए दूसरे पर आश्रित होते हैं। पेड़-पौधों को छोड़कर समस्त जीव-प्राणी परपोषी श्रेणी में आते हैं, फिर चाहे वो शाकाहारी हों या मांसाहारी। परपोषी जीवों को 4 श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।
- सहजीविता (Symbiosis)
- सहभोजिता (Commensalism)
- परजीविता (Parasitism)
- मृतोपजीविता (Saprophytism)
सहजीविता (Symbiosis)
दो जीवों या पौधों के बीच का ऐसा सम्बन्ध, जिसमें दोनों जीवों या पौधों का फायदा हो। जैसे- भैंस और कौआ का सम्बन्ध। ऐसे ही भिन्न-भिन्न जानवरों और पक्षियों के बीच सम्बन्ध होता है। हमारा यहाँ पर भैंस से आशय जानवर से और कौआ से आशय पक्षी से है।
आपने देखा होगा, जब इन जानवरों जैसे- गाय, भैंस, गेंडा इसी प्रकार के अन्य जानवरों के कान में खोंट (कान के अंदर जो मैल जम जाती है) जम जाता है, तो पक्षी जैसे- कौआ, चिड़िया आदि। ये जानवरों के कान में अपनी चोंच डालकर उसे खा लेते हैं।
खोंट में प्रोटीन पाया जाता है, जो जानवरों को खाने में काफी टेस्टी लगता है। इसके अलावा जानवरों के शरीर में पड़े हुए छोटे-छोटे कीड़ों को भी ये पक्षी खा लेते हैं। इस प्रकार से दोनों जीवों का फायदा हो जाता है। एक जीव के शरीर की साफ़ई हो जाती है, तो वहीं दूसरे जीव का पेट भर जाता है। तो इस प्रकार के दोनों जीवों को सहजीवी तथा इन दोनों जीवों के बीच के सम्बन्ध को सहजीविता कहा जाता है।
इसी प्रकार से वनस्पतियों और छोटे पौधों की बात करें, तो लाइकेन में शैवाल और कवक के बीच सहजीवी सम्बन्ध पाया जाता है। कवक एक छोटा पौधा होता है। शैवाल के पास रहने की जगह नहीं होती, तो कवक, शैवाल को अपने ऊपर रहने की जगह दे देता है। इसके अलावा शैवाल की सुरक्षा करने के साथ-साथ कवक, शैवाल के लिए मिट्टी से जल व खनिज लवण उपलब्ध कराता है। इसके बदले में शैवाल, कवक के लिए भोजन की व्यवस्था करता है।
सहभोजिता (Commensalism)।
दो अलग-अलग जाति के पौधों या जीवों के बीच ऐसा सम्बन्ध, जिसमें एक जाति के पौधे व जीव को तो फायदा हो, लेकिन दूसरे जाति के जीव व पौधे को न तो कोई नुकसान हो और न ही फायदा, तो इन दोनों जीवों या पौधों को सहभोजी कहा जाता है तथा इनके बीच के सम्बन्ध को सहभोजिता कहा जाता है। आम की शाखा पर उगने वाला ऑर्किड और व्हेल मछली की पीठ पर रहने वाला बार्नेकल सहभोजिता के अच्छे उदाहरण हैं। इसके अलावा भी कई उदाहरण हैं।
ऊपर चित्र को देखिये इसमें एपिफाइट्स का पौधा एक पेड़ के तने पर उगा हुआ है। तो इस बड़े वाले पेड़ को इस एपिफाइट्स पौधे के उग जाने से न तो कोई नुकसान हो रहा है और न ही फायदा, लेकिन इस एपिफाइट्स के पौधे को फायदा हो रहा है। वो फ़ायदा ये है कि इसे बड़े वाले पौधे से उसे शारीरिक सहायता (रहने का स्थान) मिल रही है। एपिफाइट्स पौधों की ख़ास बात यह होती है कि ये मेजबान (जिस पेड़ पर उगते है) पौधों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
एपिफाइट्स पौधों की विशेषताएँ।
- ये अन्य पौधों पर उगते हैं।
- ये पौधे जमीन को कभी नही छूते हैं।
- इन्हे बढ़ने व इनके विकास के लिए मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है।
- इन्हे पेड़ के तने, शाखाओं, टहनियों और पत्तियों पर देखा जा सकता है।
- ये जिस पेड़ पर उगते है, उसे कभी भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
- ये जिस पेड़ पर उगते है, उससे कोई पोषक तत्व नहीं प्राप्त करते हैं।
- ये पोषक तत्वों के लिए गिरने वाली बारिश और हवा पर निर्भर रहते हैं।
- ये भौतिक (शारीरिक) सहायता के लिए जिस पेड़ पर उगते है, उस पर निर्भर रहते हैं।
- ये आमतौर पर वर्षा वनों में पाए जाते हैं।
- ये पृथ्वी पर सबसे जटिल पारिस्थितिक तंत्र बनाते हैं।
परजीविता (Parasitism)।
दो जीवों या पौधों के बीच ऐसा सम्बन्ध, जिसमें एक जीव या पौधे को तो फायदा हो, लेकिन दूसरे को नुकसान हो, तो इन नुकसान पहुँचाने वाले जीवों को परजीवी तथा इन दोनों जीवों के बीच के सम्बन्ध को परजीविता कहा जाता है। सिर में रहने वालीं जुएं (जूँ) परजीवी का अच्छा उदाहरण हैं।
जूँ, छः पैरों वाला परजीवी प्राणी है। यह सिर में बालों के बीच रहकर खून चूसता है। इससे जुएं को तो फायदा हो रहा है, लेकिन जिसका चूसता है, उसे नुकसान। परजीविता के अन्य कई उदाहरण है। जैसे- मच्छर, कोई भी बीमारी जैसे- कोरोनावॉयरस आदि।
मृतोपजीविता (Saprophytism)।
ऐसे जीव जो मरे या खत्म हो गए जीवों को खाते हैं, उन्हें मृतोपजीवी कहा जाता है तथा पोषण के लिए मरे हुए जीव और इन मरे हुए जीवों को खाने वाले जीवों के बीच जो सम्बन्ध बनता है, उसे मृतोपजीविता कहा जाता है। आपने अपने घर या आसपास ही देखा होगा कि किसी प्रकार का छोटा या बड़ा जीव मर जाता है, तो छोटे-मोटे कीड़े-मकौड़े उसे खाने तुरंत पहुँच जाते हैं।
जैसे मान लीजिए कि चूहा ही मर गया, तो अगर चूहा घर के अंदर या घर के बिल्कुल निकट में ही है, तो उसे छोटे-मोठे कीड़े-मकौड़े तुरंत खाने लगते हैं। बिल्कुल झुण्ड लग जाती है। खासतौर से चीटिंयों की। यदि मैदान साइड है, तो कौए, चील, गिद्ध इसे मिनटों में साफ़ कर देंते हैं। ऐसे ही मृतोपजीविता के अन्य कई उदाहरण हो सकते हैं।
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