रॉलेट एक्ट 1919 | Rowlatt Act | रॉलेट एक्ट और जलियांवाला बाग हत्याकांड का संबंध

आज के इस लेख में हम रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act) के बारे में जानेंगे, जिसे काला कानून के नाम से भी जाना जाता है। साथ ही रॉलेट एक्ट और जलियांवाला बाग हत्याकांड का आपस में क्या संबंध है इसके बारे में भी जानेंगे।

तो आइये जानते है…….

रॉलेट एक्ट (Rowlatt Act)

रॉलेट एक्ट अंग्रेजों द्वारा लाया गया एक ऐसा कानून था जिसके तहत अंग्रेज किसी भी भारतीय को केवल संदेह में लेते हुए उस पर कोर्ट में बिना मुकदमा चलाए जेल भेज सकते थे और भी इस कानून में बहुत सारे प्रावधान थे। इसी एक्ट के चलते भारतीयों ने इसका विरोध किया था तो जालियांवाला बाग हत्याकांड जैसी हृदयविदारक घटना हुई। तो आइये अब इसे विस्तार से समझते है।

रॉलेट एक्ट क्यों लाया गया (Why was the Rowlatt Act introduced) ?

रॉलेट एक्ट की कहानी जुड़ी हुई है प्रथम विश्व युद्ध से। प्रथम विश्व युद्ध शुरू हुआ जुलाई 1914 में और ब्रिटेन प्रथम विश्व युद्ध में ज्यादा ही इन्वॉल्व था। ऐसे में अंग्रेज भारत में राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी गतिविधियों को रोकने के लिए एक एक्ट बनाया जिसका नाम था भारत रक्षा अधिनियम 1915 (Defence Of India Act 1915)। यह एक आपातकालीन आपराधिक कानून था।

भारत रक्षा अधिनियम 1915 का उद्देश्य (Objective of Defense of India Act 1915)

भारत रक्षा अधिनियम 1915 इस उद्देश्य से बनाया था कि ब्रिटिश भारत में राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी गतिविधियों पर लगाम लगाया जा सके क्यों कि अंग्रेज प्रथम विश्व युद्ध में व्यस्त थे और उन्हें डर था कि अगर भारत में राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी गतिविधिया तेज हुई तो हम दवाब में आ सकते है और हमारा नियंत्रण कम हो सकता है, इसलिए उन्होंने यह कठोर कानून बनाया।

इस कानून के अंतर्गत बहुत सारी शक्तियां कार्यपालिका को दे दी गयी और इस कानून का भारतीयों पर भारी मात्रा में इस्तेमाल भी किया गया। भारत रक्षा अधिनियम प्रथम विश्व युद्ध शुरू होने से लेकर ख़त्म होने के 6 महीने के बाद तक के लिए लागू किया गया था।

यह अवधि सुन भारतीयों को ऐसा लगा कि प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद अंग्रेज उन पर रियायत बरतेंगे और उन्हें आजाद कर देंगे या इस प्रकार के कठोर नियम हटा देंगे, इसलिए बहुत से भारतीय सैनिकों ने बिना विरोध चुपचाप अंग्रेजों के लिए प्रथम विश्व युद्ध में लड़ाई भी लड़ी खासतौर से पंजाब क्षेत्र के लोग।

तो नवंबर 1918 में प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हो गया, अब अंग्रेज ये सोच रहे थे कि अगले 6 महीने बाद भारत रक्षा अधिनियम 1915 हटा दिया जाएगा, उन्हें इस बात का डर था कि इस अधिनियम के समाप्त होते ही भारत में राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी गतिविधियों को रोकना बहुत मुश्किल हो जाएगा, इसलिए सर सिडनी रॉलेट की देख रेख में एक कमेटी बनाई गयी।

रॉलेट एक्ट कौन लाया ?

सर सिडनी रॉलेट कमेटी का उद्देश्य था भारत में राजनीतिक आतंकवाद का मूल्यांकन करना, मुख्यरूप से पंजाब और बंगाल में क्यों कि भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन विशेष रूप से जो सक्रिय थे वो काफी सफलता और लगातार गति हासिल कर रहे थे। इस कमेटी का एक उद्देश्य यह भी था कि रूस की बोल्शेविक और जर्मन सरकार के साथ इनके संबंधो का मूल्यांकन करे क्यों कि विशेष रूप से सक्रिय भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन भारी मात्रा में जर्मनी से सहायता प्राप्त कर रहे थे।

समिति के समक्ष प्रस्तुत किए गए सबूतों में इस बात के प्रमाण मिले कि जर्मन सरकार भारतीय क्रांतिकारी आंदोलनों की मदद कर रही है। वही रूस की बोल्शेविकों के बारे में कोई ख़ास साक्ष्य नहीं मिला। युवा आंदोलनकारियों का खतरा बढ़ता देख समिति ने पंजाब और बंगाल में भारत रक्षा अधिनियम 1915 को रॉलेट एक्ट के रूप में लागू करने की सिफारिश की।

भारत रक्षा अधिनियम 1915 को अनिश्चितकालीन समय तक के लिए पारित (लागू) करने को ही रॉलेट एक्ट कहा जाता है। रॉलेट एक्ट का आधिकारिक या सरकारी नाम ‘अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919’ (The Anarchical and Revolutionary Crime Act of 1919) है। रॉलेट एक्ट जब लागू किया गया उस समय भारत के वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड थे।

रॉलेट एक्ट का उद्देश्य (Objective of Rowlatt Act)

रॉलेट एक्ट का उद्देश्य ब्रिटिशर्स के खिलाफ किसी भी प्रकार की साजिश या षड्यंत्र (Conspiracy) को शुरू होने से पहले ही खत्म कर देना था। उद्देश्य साफ़ था कि ब्रिटिशर्स किसी भी प्रकार के राजनीतिक आंदोलन को शुरू होने से पहले ही दबा देना चाहते थे ताकि उनके खिलाफ किसी भी प्रकार की आवाज न उठ सके जिससे की भारतीय युवा जोश में आ जाए और उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने लगे।

रॉलेट एक्ट का प्रावधान (Provision of Rowlatt Act)

इस एक्ट के तहत पुलिस किसी भी जगह को बिना वारेंट के छान बीन कर सकती थी। मतलब पुलिस कही भी कितनी भी समय छापा मार सकती थी और किसी भी तरह के सन्देहातक तथ्य मिलते ही पुलिस उसे गिरफ्तार कर सकती थी। इसके अलावा शक के आधार पर लोगो को गिरफ्तार करके बिना किसी सुनवाई के दो साल तक के लिए जेल में बंद कर सकती थी।

इसी एक्ट के तहत स्पेशल कोर्ट बनाए गए जिसमें 3 जजेस की बेंच फैसला करती थी। यहाँ तुरंत फैसले किए जाते थे और अगर आप एक बार दोषी पाए गए तो इसकी दोबारा जांच के लिए कही अपील नहीं कर सकते थे। लोगों को सामूहिक रूप से इकठ्ठा होने में प्रतिबन्ध लगा दिया गया, यहाँ तक की किसी भी त्यौहार, सामूहिक समारोह या मेले इत्यादि में भी लोग इकठ्ठा नहीं हो सकते थे।

रॉलेट एक्ट का विरोध (Protest against Rowlatt Act)

सबसे पहले वायसराय की कार्य परिषद् के भारतीय सदस्यों ने रॉलेट एक्ट के विरोध में अपने पद से त्याग पत्र दे दिया। इनमें से प्रमुख थे मोहम्मद अली जिन्ना, मजहर उल हक़, मदन मोहन मालवीय और बी एन शर्मा। धीरे-धीरे लोगो के मन में रॉलेट एक्ट को लेकर गुस्सा बढ़ने लगा। तभी गांधी जी ने निर्णय लिया की वो रॉलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन करेंगे।

रॉलेट सत्याग्रह (Rowlatt Satyagraha)

रॉलेट सत्याग्रह गांधी जी ने प्रारम्भ किया। 24 फरवरी 1919 को गांधी जी ने मुंबई में एक सत्याग्रह सभा का आयोजन किया और सभी से अनुरोध किया कि आप सभी भी अपने-अपने राज्य में रॉलेट एक्ट के खिलाफ छोटे-छोटे आंदोलन करिए। इसी क्रम में 30 मार्च को दिल्ली में स्वामी श्रद्धानन्द ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया और इसी में उन्होंने एक और आंदोलन को जोड़ दिया ‘कर मत दो आंदोलन‘।

यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात ये है कि कर मत दो आंदोलन और कर मत दो का नारा में हमेशा कन्फ्यूजन हो जाता है। तो याद रखिए कि कर मत दो का नारा सरदार वल्लभ भाई पटेल ने दिया था और कर मत दो आंदोलन स्वामी श्रद्धानन्द ने शुरू किया था। इसके अलावा ‘प्रतिनिधि नहीं तो कर नहीं’ ये अमेरिकी क्रांति का नारा है।

इसके बाद जगह-जगह सत्याग्रह सभाएं की गयी। सब कुछ बढ़िया चलता देख गांधी जी ने 06 अप्रैल को पूरे देश में हड़ताल बुला ली। सब वैसे ही हो रहा था जैसे गांधी जी ने सोचा था, लेकिन इसके ठीक 2 दिन बाद गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया। यहाँ तक तो ठीक था लेकिन सत्याग्रह के सबसे बड़े केंद्र पंजाब में 09 अप्रैल को पंजाब के अमृतसर से दो प्रमुख नेताओं सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल को भी पुलिस गिरफ्तार कर ले गयी।

जैसे ही इन्हे गिरफ्तार किया गया ये खबर आग की तरह फैलने लगी। इस खबर के बाद अमृतसर में माहौल ख़राब होने में ज्यादा समय नहीं लगा। लोगो ने ब्रिटिशर्स की निशान वाली हर चीज को नुकसान पहुँचाना शुरू कर दिया, उनकी बिल्डिंग पर पत्थरबाजी हुई उनके झंडे जला दिए गए। इस प्रकार का माहौल देखते हुए पंजाब में 11 अप्रैल को मॉर्शल लॉ लगा दिया गया और पंजाब की जिम्मेदारी जनरल ओ डॉयर को दे दी गयी।

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre)

सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल की गिरफ्तारी का विरोध करने और उन्हें छुड़ाने के लिए 13 अप्रैल को वैशाखी के पर्व पर जलियाँवाला बाग़ और उसके आसपास के गाँव के लोग जलियाँवाला बाग़ में इकठ्ठा होना शुरू हुए और शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने लगे। उस समय भारत का वायसरॉय लॉर्ड चेम्सफोर्ड था और पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर ओ डॉयर था।

तो ओ डायर ने अमृतसर के ब्रिगेडियर (सेनापति) R डायर को आदेश दिया कि जालियांवाला बाग़ में जो लोग इकठ्ठा हुए है उन पर गोली चला दो। आपकी जानकारी के लिए बता दे कि इस जलियांवाले बाग़ में निकलने के लिए केवल एक ही गेट था। तो R डायर गोरखा रेजिमेंट की सेना के साथ जलियांवाला बाग़ पहुंचा और गेट पर खड़े होकर बोला की आप लोगो के पास 3 मिनट का समय है आप लोग यहाँ से निकल लीजिए नहीं तो अंजाम बुरा हो सकता है।

पर लोग वहां से निकले नहीं और लगातार विरोध प्रदर्शन जारी रहा। 3 मिनट समाप्त होते ही R डायर ने सेना को गोली चलाने का आदेश दे दिया। सेना द्वारा अंधाधुंध गोलियां चलाई गयी। इस जलियांवाले बाग़ नरसंहार में हजारो लोग मारे गए और बहुत से लोग घायल हुए थे। इस पूरे जलियांवाला बाग हत्याकांड में एक भारतीय गद्दार मिला हुआ था हंस राज। इसी ने आंदोलन और रणनीतियों की समस्त जानकारी ब्रिटिशर्स को उपलब्ध कराई और घटना हो जाने के बाद सरकारी गवाह भी बन गया।

इस घटना ने पूरे भारत को झकझोर कर रख दिया था क्यों कि इस घटना में बहुत से मासूम लोग भी मारे गए थे जो केवल शांतिपूर्वक विरोध कर रहे थे। इस प्रकार का हिंसा का माहौल देख गांधी जी ने 18 अप्रैल 1919 को आंदोलन को वापस ले लिया। हालांकि, इसके 3 साल बाद 1922 में दमनकारी कानून समिति (Repressive Laws Committee) की सलाह पर ब्रिटिशर्स ने रॉलेट एक्ट को खुद वापस ले लिया, उस समय भारत के वायसराय लॉर्ड रीडिंग थे।

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के बाद त्यागपत्र (Resignation after Jallianwala Bagh massacre)

जैसे प्रधानमंत्री के पास मंत्रि परिषद व मंत्री मंत्रि मंडल होता है ठीक वैसे ही उस समय वायसरॉय के पास कार्यकारी परिषद हुआ करती थी। इस परिषद् में शामिल शंकरण नायर ने इस्तीफ़ा दे दिया। इसके अलावा जमनालाल ने राय बहादुर, गाँधी जी ने कैसर-ए-हिन्द और रविंद्रनाथ टैगोर ने सर और नाइट हुड की उपाधि त्याग दी। इन सब के साथ ही भारत में जलियांवाला बाग़ हत्याकांड का भयानक विद्रोह होने लगा।

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड के बाद जांच आयोग (Commission of Inquiry after Jallianwala Bagh Massacre)

जलियांवाला बाग़ हत्याकांड का तेजी से विरोध होता देख ब्रिटिशर्स ने विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए विलियम हण्टर के नेतृत्व में एक जांच आयोग का गठन किया जिसे हण्टर आयोग 1919 कहा जाता है। इस आयोग में 3 भारतीय और 5 अंग्रेजों को मिलाकर कुल आठ सदस्य थे। इस आयोग ने अपनी जांच में 379 लोगो को इस घटना में मारे जाने की पुष्टि की तथा ओ डायर को निर्दोष घोषित कर दिया। हालांकि, मौत का आंकड़ा 1600 से ज्यादा का था।

इसके बाद अंग्रेजों ने ओ डायर को इंग्लैण्ड बुला लिया गया और जब वह इंग्लैण्ड पहुंचा तो उसको सम्मान स्वरूप तलवार भेंट किया गया। हण्टर आयोग के विपरीत कांग्रेस ने एक आयोग का गठन किया मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में। इस आयोग ने ओ डायर को दोषी साबित किया। आयोग ने कहा की डायर ने जल्दबाजी में निर्णय लिया जो कि पूरी तरह से गलत है, लेकिन मदन मोहन मालवीय आयोग की बात को किसी ने नहीं माना।

लेकिन बदले की आग तो आप सभी समझते है कितनी खतरनाक होती है। इसी बदले की आग में सुलग रहे अमृतसर के उधम सिंह ने ठान लिया था कि डायर तुम्हे भले ही हण्टर आयोग ने निर्दोष साबित कर दिया हो लेकिन तुम मुझसे नहीं बच पाओगे। 21 साल बाद 1940 में उधम सिंह लंदन गए। लंदन के कैक्सटन हाल (Caxton Hall) में ओ डायर था। 21 साल में उसका रंग रूप बदल गया था।

उधम सिंह वहां पहुंचकर वहां मौजूद लोगो से पूछे कि ओ डायर कौन है। जैसे ही पता चला तो उधम सिंह उनके पास जाकर पूछे की जलियांवाला हत्याकांड तुम्ही ने किया था न। वो ये देख भौचक्का रह गया इतने में ही उधम सिंह ने गोली मारकर उसकी हत्या कर दी। जब पुलिस वहां पहुंची तो उधम सिंह ने साफ़ शब्दों में कहा की मै जिस काम के लिए आया था मेरा वो काम हो गया आप मुझे गिरफ्तार कर लीजिये। अंततः उधम सिंह को फांसी की सजा दी गयी।

रॉलेट एक्ट को काला कानून क्यों कहा जाता है (Why is Rowlatt Act called Black Law) ?

इसे काला कानून इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस कानून के तहत पुलिस को अधिकार दिया गया था कि वह किसी व्यक्ति को संदेह के आधार पर गिरफ्तार करके जेल में बंद कर सकती थी। इसके अलावा गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को न दलील देने का अधिकार था न ही वकील करने का अधिकार और न ही अपील करने का अधिकार, इसलिए इसे काला कानून कहा जाता है। काला कानून इसे महात्मा गांधी ने कहा था। इसे बिना दलील, बिना वकील और बिना अपील का कानून भी कहा जाता है।

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