पृथ्वी या समुद्र की सतह से ऊपर की ओर जाने पर तापमान में कमी क्यों होती है ?

ऊंचाई पर जाने पर तापमान में कमी क्यों होती जाती है?

आज के इस लेख में हम ये जानेंगे कि पृथ्वी या समुद्र की सतह से ऊपर की ओर जाने पर तापमान में कमी क्यों होती है और कितनी कमी होती है, क्या है इसकी मुख्य वजह?

तो आइये जानते है…..

समुद्र की सतह से ऊपर की ओर जाने में तापमान में कमी

समुद्र या पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर जाने पर कुछ अपवादों को छोड़कर निरंतर तापमान में कमी होती जाती है। सामान्यतः सोचे तो तापमान में वृद्धि होना चाहिए, क्योंकि समुद्र की सतह से हम जितना ही ऊपर जाएंगे उतना ही सूर्य के करीब होते जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं होता। ऐसा क्यों नहीं होता, इसके बारे में इस लेख में विस्तार से जानेंगे।  

सामान्य सोच में तापमान में अंतर की व्याख्या

अगर हम अपने तरीके से इस बात को सोचे कि ये कैसे हो सकता है कि हम समुद्र या पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर जाएंगे तो तापमान में कमी आएगी। सामान्यतः तो हम ऐसा सोचेंगे कि पृथ्वी की सतह से हम जितने ही ऊपर जाएंगे उतने ही सूर्य के करीब होते जाएंगे। इस हिसाब से तो तापमान में वृद्धि होना चाहिए।

ये बात सिद्ध करने के लिए हम इस बात का उदाहरण दे सकते है कि ठण्ड के महीने में जब हम आग तापने बैठते है तो आग के जितना ही समीप जाते है हमें उतनी ही गर्मी महसूस होती है, क्योंकि आग से हमें ऊष्मा मिल रही होती है।

इस हिसाब से जो बहुत ऊँचे-ऊँचे पहाड़ है वहां पर बहुत ज्यादा गर्मी होनी चाहिए। अगर बात करे माउंट एवरेस्ट की तो उसकी ऊंचाई है 8848 मीटर, तो वहां पर बहुत ज्यादा गर्मी होनी चाहिए, क्योंकि माउंट एवरेस्ट पृथ्वी की अपेक्षा सूर्य के ज्यादा नजदीक है, लेकिन होता ठीक उल्टा है। माउंट एवरेस्ट पर हमेशा बर्फ जमी रहती है, यहाँ तक की उसका तापमान भी माइनस में रहता है।

अब आपको अपना सोचना गलत लग रहा होगा, क्योंकि आपको उदाहरण मिल गया माउंट एवरेस्ट का। अब सोचिये ऐसा कैसे हो सकता है, तो इसे समझने के लिए हमें पृथ्वी के वातावरण को समझना पड़ेगा कि ये गर्म कैसे होता है साथ ही धीरे-धीरे ऊंचाई में जाने पर निरंतर तापमान में कमी क्यों आती जाती है। तो आपको बता दे कि ये पूरा खेल वातावरण से सम्बंधित है। तो आइये इसे समझते है।

विज्ञान की भाषा में तापमान में अंतर् की व्याख्या

सूर्य में नाभिकीय संलयन की क्रिया के द्वारा जो ऊर्जा पैदा होती है वह केवल विकिरण के माध्यम से ही पृथ्वी तक पहुँच सकती है, क्योंकि पृथ्वी और सूर्य के बीच की करोड़ो किलोमीटर की दूरी पूरी तरह खाली है। मतलब वहां वातावरण है ही नहीं, तो केवल विकिरण के माध्यम से सूर्य से पराबैगनी किरणें, एक्स किरणे, अवरक्त किरणें, दृश्य प्रकाश किरणें और भी बहुत सी किरणें पृथ्वी पर पहुँचती है।

दरअसल, ये किरणें सूर्य के प्रकाश के साथ वायुमंडल से होते हुए धरती की सतह तक पहुँचती है। हमारे वायुमंडल की एक प्रमुख विशेषता है ये है कि जब ये किरणे वायुमंडल को क्रॉस करती है तो वहां वातावरण में मौजूद हवा से इनमे से अधिकांशतः किरणें कोई अंतःक्रिया नहीं करती, इस वजह से वायुमंडल गर्म नहीं पड़ता है और ये किरणें आकर सीधे पृथ्वी की सतह से टकराती है।

टकराने के बाद कुछ किरणे परावर्तित (प्रकाश के परावर्तन के नियामनुसार) हो जाती है तथा कुछ किरणो को पृथ्वी की ऊपरी सतह अवशोषित कर लेती है। इन अवशोषित किरणों को पृथ्वी पुनः विकिरण के रूप में छोड़ती है। इन छोड़ी गयी किरणों में ज्यादातर हिस्से अवरक्त किरणों के होते है। यही अवरक्त किरणें पृथ्वी के आसपास के वातावरण की गैसों को गर्म कर देती है (अवरक्त किरणें वर्णक्रम का वह हिस्सा है जो गर्मी का एहसास दिलाता है)।

मतलब आप ये समझ गए होंगे कि वातारण की हवा, सूर्य की किरणों से टकराने की वजह से गर्म नहीं होती, बल्कि यह सूर्य की किरणें जो पृथ्वी की सतह से टकराई थी और वापस विकिरण के माध्यम से पृथ्वी की सतह के बाहर आई और बाहर आते ही आसपास की हवाओं से अंतःक्रिया कर ली उनके माध्यम से गर्म होती है। इसके बाद संवहन का नियम लागू हो जाता है। संवहन का मतलब ऊर्जा का हस्तांतरण।

तापमान में कमी

संवहन की धाराएँ बहने से हवा की ऊपरी परते भी धीरे-धीरे गर्म होने लगती है। इस प्रकार से ये गर्म हवाए ऊपर की ओर उठती है और इनका स्थान आसपास की ठण्ड हवाए ले लेती है। धरती की गर्म सतह से दूर जाते हुए ये हवाए निरंतर अपनी ऊष्मा खोती जाती है और धीरे-धीरे ठंडी होती जाती है। इस वजह से पृथ्वी या समुद्र की सतह से ऊपर की ओर जाने में तापमान में कमी होती जाती है।

तापमान में अंतर की व्याख्या को अपने शब्दों में समझते है

तापमान में कमी या अंतर की मुख्य वजह है हमारे आसपास का वातावरण। इसको सरल भाषा में समझने की कोशिश करते है। जैसे मान लीजिये कि हम समतल में है। समतल से हमारा आशय पृथ्वी से है। तो अगर पृथ्वी पर है तो आपके चारों तरफ कुछ-न-कुछ जरूर विद्यमान (मौजूद) है।

उदाहरण के लिए मान लीजिये कि हम अपने घर के पास सड़क में खड़े है तो एक दीवाल हमारे इस तरफ और एक दीवाल उस तरफ, नीचे सड़क है, ऊपर सूर्य की रोशनी। इसके अलावा भी बहुत कुछ विद्यमान है। मतलब सभी से हमें ऊष्मा मिल रही है।

और जैसे ही हम ऊपर की तरफ बढ़ते है तो धीरे-धीरे हमारे आसपास का वातावरण क्षीण होता जाता है। मतलब हमारे आस-पास के वातावरण में निरंतर कमी आती रहती है और ज्यादा ऊंचाई में जाने पर ऐसी स्थिति हो जाती है कि केवल हम और ऊपर सूर्य ही बचते है। ऊपर भी आपने देखा कि पृथ्वी और सूर्य के बीच करोड़ो किलोमीटर की दूरी में कुछ भी नहीं है।

इसलिए सूर्य के प्रकाश में मौजूद किरणें कही रूकती ही नहीं सीधे पृथ्वी की सतह से ही टकराती है। इस वजह से पृथ्वी या समुद्र की सतह से ऊपर की ओर जाने में तापमान में कमी होती जाती है। प्रति 165 मीटर की ऊंचाई में जाने पर 1 डिग्री सेंटीग्रेट की कमी होती है।

तापमान में कमी को उदाहरण के माध्यम से समझते है

बात करते है उत्तराखंड की। उत्तराखंड भारत का एक राज्य है जो सन 2000 में उत्तरप्रदेश से अलग होकर बना। उत्तराखंड का पश्चिमी भाग गढ़वाल है। इस भाग में बहुत बड़े-बड़े और ऊँचे-ऊँचे ग्लेशियर या हिमानी है। बर्फ के पहाड़ो को हिमानी या ग्लेशियर कहते है। तो इन हिमानियों में क्या होता है कि नीचे का तापमान ज्यादा होने की वजह से ये पिघलती है और इनके पिघलने की वजह से ही यहाँ कई नदियों का उद्गम हुआ है।

एक अन्य उदाहरण के माध्यम से समझते है जो हमारी सामान्य बोलचाल की भाषा में आता है। जैसा हमने ऊपर देखा कि तापमान हमारे आसपास के वातावरण पर निर्भर करता है। जहां पर वातावरण में सघनता रहेगी वहां का तापमान ज्यादा और जहा विरलता रहेगी वहां का तापमान कम होगा।

वातावरण की सघनता या विरलता को हम ऐसे समझे कि मान लीजिये एक कमरे में 6 लोग है और दूसरे कमरे में 3 लोग तो जिस कमरे में 6 लोग है तो वहां सघनता हो गयी और जिस कमरे में 3 लोग है तो वहां विरलता। इस वजह से जिस कमरे में 6 लोग है वहां का तापमान ज्यादा और जिस कमरे में 3 लोग है वहां का तापमान कम होगा।

इसी प्रकार पृथ्वी या समुद्र की सतह से ऊपर की ओर जाने में वातावरण में विरलता बढ़ती जाती है और विरलता बढ़ने के कारण तापमान में निरंतर कमी आती जाती है। इस वजह से पृथ्वी या समुन्द्र की सतह से ऊपर की ओर जाने में तापमान में कमी होती जाती है।

यह भी पढ़े: पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह | लिण्डमैन का 10% का नियम

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