आज के इस लेख में हम जानेंगे कि इतिहास क्या है, इतिहास को कैसे परिभाषित करे, इतिहास के प्रारंभिक स्वरूप का निर्धारण कैसे हुआ तथा इतिहास को कैसे समझे?
तो आइये जानते है…..
इतिहास (History)।
लिखित दस्तावेजो में उपलब्ध विवरणों के आधार पर भूतकाल का अध्ययन ही इतिहास है। मतलब आज से पहले का जो पूरा समय बीत गया वह भूतकाल है और इस भूतकाल का वह हिस्सा जिसका लिखित रूप में विवरण उपलब्ध है और उपलब्ध विवरण का अध्ययन किया जा सकता है, तो वह इतिहास है। अर्थात वह काल जिसका विवरण देने के सम्बन्ध में लिखित दस्तावेज उपलब्ध है और उनका अध्ययन किया जा सकता है, तो वह इतिहास है।
इतिहास को कैसे परिभाषित करे (How to define history)!!!
दस्तावेज का मतलब केवल रामायण, महाभारत या हमारी किताबों से नही लगाया जा सकता है। ये दस्तावेज लिखित रूप में किसी भी प्रकार के हो सकते है। प्रारंभिक लेख पत्थरो, पकी हुई ईटो, खुदे हुए पत्थरो या किसी कठोर धातु पर मिले जिन्हे हम अभिलेख और शिलालेख कहते है। हमारा दस्तावेज से मतलब हर लिखित तथ्य से है चाहे वह किसी भी रूप में हो। कागज पर लिखे लेख तो हाल फिलहाल के है।इस प्रकार से लिपि का अविष्कार जब से हुआ होगा उस समय से दस्तावेज हमे अभिलेख या शिलालेख के रूप में मिलेंगे। इस आधार पर भूतकाल को मोटे तौर पर दो भागो में विभाजित किया जा सकता है।
लिपि के अविष्कार से पहले के काल को प्राकइतिहास (prehistory) कहते है और लिपि के अविष्कार के बाद के काल को इतिहास (history) कहते है।
इसके अलावा वह छोटा सा काल जिसके लिखित दस्तावेज तो उपलब्ध है, लेकिन हम उसे समझ नही पा रहे है, उसे प्रोटो-हिस्ट्री (proto-history) की श्रेणी में रखा गया है। विश्व में एक मात्र महत्वपूर्ण हड़प्पा-सभ्यता की प्रोटो-हिस्ट्री है। इसके अलावा भी है लेकिन वो ज्यादा महत्वपूर्ण नही है। तत्कालीन संस्कृति को समझने के लिए हड़प्पा सभ्यता की संस्कृति को समझना बहुत ही महत्वपूर्ण है।
प्रोटो-हिस्ट्री को छोड़ दिया जाय तो भूतकाल को मोटेतौर पर दो भागो में विभाजित किया जा सकता है।
- प्राकइतिहास (prehistory)
- इतिहास (history)
इतिहास के प्रारंभिक स्वरूप का निर्धारण (Determining the Early Form of History)।
भूतकाल के अध्ययन के लिए जिस जमाने के लिखित दस्तावेज उपलब्ध नही है कि अपेक्षा जिस जमाने के लिखित दस्तावेज उपलब्ध है उसका अध्ययन ज्यादा कठिन है। अब जैसे इस उदाहरण से समझे कि पृथ्वीराज रासो में चन्द्रवरदाई जी ने लिखा कि मै भी पृथ्वीराज के साथ लड़ाई में था।
उन्होंने ये भी लिखा कि मै तो उनके बगल में ही खड़ा था, मैंने ही पृथ्वीराज को बताया कि “चार बॉस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण ता ऊपर सुल्तान है मत चूके चौहान” और जैसे ही घंटा बजा तो मेरे बताए अनुसार पृथ्वीराज ने शब्दभेदी बाण चला दिया और बाण सीधा जा के मुहम्मद गोरी को लगा और वह धड़ाम से नीचे गिर गया।
इस भाषा को देखकर ऐसा लगता है जैसे चन्द्रवरदाई जी ने बिल्कुल फिक्स मापा रहा हो कि चार बॉस, चौबीस कदम और आठ ऊँगली। बाद में पता चला कि पृथ्वीराज के जमाने से 100 साल बाद चन्द्रवरदाई जी आए। तब आप खुद ही सोचिये कि इनको कैसे पता चला की पृथ्वीराज की लड़ाई में क्या हुआ था। इन्होने अपने आप ही इतिहास का पुनर्निर्माण कर दिया।
इतिहास को कैसे समझे (How to understand history)?
अब यहाँ पर तार्किक बात यह है कि पृथ्वीराज रासो में जो लिखा है या तो आप उसको सही मान लो या फिर पता लगाने की कोशिश करिए कि ये बात सही है या गलत। जब कोई आदमी सीधा-सीधा ये बोल रहा है कि मै तो वहा पर था ही, तो सभी यही सोचेंगे की सही ही बोल रहा है।
इस प्रकार से ऐसा कहा जा सकता है कि जिस जमाने के लिखित दस्तावेज उपलब्ध है उस जमाने के इतिहास को समझना ज्यादा कठिन है। ये दस्तावेज तब और भी गलत कहानी बताते है, जब ये दस्तावेज घटना हो जाने के कई साल बाद लिखे जाते है।
इसलिए जिस जमाने के लिखित दस्तावेज उपलब्ध नही है उस जमाने से सम्बंधित जब कोई भी वस्तु या औजार मिलता है तो हम अपनी कल्पनाशीलता (तार्किक क्षमता) का उपयोग करते है और ऐसा अंदाजा लगाते है कि इस वस्तु का मानव क्या करता रहा होगा, इसके क्या-क्या उपयोग हो सकते है। इस आधार पर जिसके पास जितनी तार्किक क्षमता होती है वह उतना ज्यादा अंदाजा लगाता है। इस प्रकार हम उस जमाने की संस्कृति को भी समझ पाते है।
लेकिन जिस जमाने के लिखित दस्तावेज उपलब्ध है, ये दस्तावेज हमें भ्रमित करते है। कुछ बातो को तो पढ़कर इंसान और भी ज्यादा भ्रमित हो जाता है। भूतकालीन संस्कृति का अध्ययन ही इतिहास है, संस्कृति में सब कुछ आता है। जैसे उस जमाने की जीवन शैली, रहन-सहन। संस्कृति मनुष्य की रचना है और पर्यावरण का मानव निर्मित भाग संस्कृति है।
इस प्रकार पर्यावरण को दो भागो में विभाजित किया जा सकता है।
- प्राकृतिक(natural)
- सांस्कृतिक(culture)
मानव ने जो कुछ भी बनाया वो सांस्कृतिक है। जैसे नदी, पहाड़ मानव ने नहीं बनाए तो वो प्राकृतिक है। लेकिन नदी के ऊपर बनाया गया बाँध तथा पहाड़ो पर खोदी गई सुरंग सांस्कृतिक है। दिखने में तो ये सब कुछ अलग-अलग दिखता है। जैसे नदी अलग, पहाड़ अलग, मानव का रहन-सहन अलग। कुलमिलाकर समग्र चीजे अलग-अलग समझ में आती है। लेकिन ये समस्त चीजे मिलकर ही संस्कृति का निर्माण करती है।
परन्तु आज के जमाने में ये समझना कठिन होगा, क्योंकि आज दुनिया बहुत छोटी हो गयी है। सभी की संस्कृति धीरे-धीरे एक जैसी होती जा रही है। आज हम अपने देश की संस्कृति की बात नही करते। आज हम विश्व संस्कृति की बात करते है। कुछ लोग आज भी है जो अपनी संस्कृति को बचा के रखना चाहते है। उनके अन्दर अपनी संस्कृति को लेकर बहुत ममत्व है, लेकिन संस्कृति में हो रहे बदलाव को कोई रोक नही सकता है। ना तो मै और ना ही आप।
किसी भी ऐतिहासिक वर्णन के लिए तीन चीजों का ज्ञान होना जरुरी है।
- लिपि(script)
- समय का ज्ञान
- होने वाली घटनाओ का कालक्रमिक वर्णन
इसके आगे का: लिपि का उद्विकास (Evolution of Script) | उद्विकास में सभ्यताओं का योगदान।