आज के इस लेख में हम भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के बारे में जानेंगे कि इसका उद्विकास कैसे हुआ, क्या-क्या परिवर्तन करते हुए इसको अंतिम रूप दिया गया और इसको बनाने में किसका महत्वपूर्ण योगदान रहा?
तो आइये जानते है…..
भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा (NATIONAL FLAG OF INDIA)
राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की रुपरेखा (National flag outline)
- सबसे ऊपर – केसरिया रंग इसे अंग्रेजी में SAFFRON (सैफरन) भी कहा जाता है, यह देश की शक्ति और साहस का प्रतीक है।
- बीच में – सफ़ेद रंग, यह शांति और सत्य का प्रतीक है। सफेद पट्टी के बीचो-बीच अशोक चक्र को रखा गया है, इस चक्र का संदेश है ‘गति ही जीवन है और स्थिरता मृत्यु है।’ इस चक्र की चौबीस तीलिया दिन के चौबीस घंटे का प्रतीक है, अर्थात चक्र पूरे दिन गति का प्रतीक है।
- सबसे नीचे – हरा रंग यह उर्वरता, विकास और पवित्रता का प्रतीक है।
- हमारे राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे की लम्बाई और चौड़ाई का अनुपात 3:2 होता है।
ध्वज का विचार
देश में असहयोग आंदोलन की शुरुआत के समय भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) ने गांधी जी के प्रभाव में पहले राष्ट्रीय आंदोलन के लिए एक ध्वज का विचार प्रस्तुत किया। इससे पहले तक कांग्रेस के सम्मेलनों में इंग्लैण्ड का झंडा यूनियन जैक (UNION JACK) फहराया जाता था। गांधी जी के आगमन के पहले कांग्रेस इंग्लिश सरकार से मांग करती थी, टकराती नही थी।
हालांकि, राष्ट्रीय आंदोलन के लिए ध्वज का विचार महात्मा गांधी से पहले आ चुका था। गांधी जी से पहले भी कुछ संगठनो ने राष्ट्रध्वज की मांग की थी।
समय-समय पर ध्वज में परिवर्तन
पहला ध्वज सन 1906 में कलकत्ता के पारसी बागान ने डिजाइन किया था। क्रांतिकारी आंदोलन की अहम भीका जी कामा ने भी तीन रंग का एक झंडा बनाया था जिसके मध्य में वन्दे मातरम् लिखा रहता था। कुछ समय तक यह क्रांतिकारी आंदोलनों का झंडा रहा। लेकिन इनका ज्यादा महत्व नही होता था, खासतौर से राष्ट्रीय स्तर पर। यहाँ तक कि इन ध्वजों का राष्ट्रध्वज के उद्विकास में भी कोई योगदान नहीं रहा। क्योकि, इस प्रकार के झंडे केवल छोटे-छोटे संगठनों तथा किसी क्षेत्र विशेष के लिए हुआ करते थे।
राष्ट्रीय स्तर पर आंदोलन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ही चलाया था, इसलिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का झंडा ही राष्ट्रध्वज के उद्विकास में सहायक हुआ। गांधी जी ने विचार प्रस्तुत किया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक झंडा होना चाहिए जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के हर वार्षिक सम्मलेन में फहराया जाना चाहिए।
तब 1921 में पिंगली वेंकैया ने एक ध्वज बनाकर 1921 के कांग्रेस के विजयवाड़ा सम्मलेन में गांधी जी को प्रस्तुत किया। पिंगली वेंकैया के ध्वज में दो ही रंग थे हरा और लाल। इन दोनों रंगों के बीच में एक चरखा बना हुआ था, ये दो रंग दो समुदायों से जुड़े हुए थे हिन्दू और मुस्लिम।
बाद में शेष समुदायों को जोड़ने के लिए इसमें सफ़ेद रंग को जोड़ा गया और सफेद रंग की पट्टी के बीच में ही चरखे को आर्थिक स्वायत्ता के रूप में जोड़ा गया, इस प्रकार से बन गया तिरंगा। इसे स्वराज ध्वज का नाम दिया गया। इस ध्वज को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी अपने सम्मेलनों का ध्वज अपनाया। इस प्रकार से स्वराज ध्वज काफी दिनों तक चला।
लेकिन जब देश स्वतंत्र हो रहा था तब हमें राष्ट्रध्वज की आवश्यकता महसूस हुई। देखिये, स्वराज ध्वज या किसी पार्टी विशेष के ध्वज और राष्ट्रध्वज में अंतर होता है, इसलिए संविधान सभा में चर्चा के उपरान्त 22 जुलाई सन 1947 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ध्वज या स्वराज ध्वज में थोड़ा सा परिवर्तन करके राष्ट्रध्वज के रूप में अपना लिया गया। क्या परिवर्तन किया गया आइये जान लेते है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ध्वज में परिवर्तन करके बनाया गया भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC – Indian National Congress) के ध्वज में चरखे के स्थान पर गहरे नीले (NAVY BLUE) अशोक चक्र को अपनाया गया। इस चक्र का संदेश है ‘गति ही जीवन है और स्थिरता मृत्यु है।’ इस चक्र की चौबीस तीलिया दिन के चौबीस घंटे का प्रतीक है अर्थात चक्र पूरे दिन गति का प्रतीक है।
इस प्रकार से बन कर तैयार हुआ भारत का राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा। उम्मीद करता हूँ कि आपको भारत के राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का उद्विकास का क्रम समझ में आया होगा।
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