क्रिसमस क्यों मनाया जाता है? क्रिसमस का इतिहास और उसका महत्व

आज के इस लेख में हम जानेंगे कि क्रिसमस क्यों मनाया जाता है? साथ ही क्रिसमस (Christmas) के इतिहास और ईसाई धर्म में इसके महत्व के बारे में भी जानेंगे।

तो आइए जानते हैं…….

चर्चा में क्यों?

यूक्रेन और रसिया के बीच युद्ध की वजह से क्रिसमस का त्योहार मनाए जाने के दिन को लेकर मतभेद की स्थिति निर्मित हो गई। कुछ यूक्रेनियों ने रूस के विरोध स्वरूप क्रिसमस का त्योहार 25 दिसंबर को मनाए जाने का निर्णय लिया। आमतौर पर यूक्रेनवासी, रसिया की ही तरह 7 जनवरी को क्रिसमस का त्योहार मनाते हैं, लेकिन इस साल ऐसा नहीं हो रहा है या ज्यादातर यूक्रेनी लोग ऐसा नहीं कर रहे हैं। कुछ आर्थोडॉक्स यूक्रेनवासियों ने 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाने का फैसला किया है, जैसा कि विश्वभर के अधिकांशतः ईसाई करते हैं।

इसका संबंध युद्ध से है। दिसंबर महीने में प्रभु यीशु का जन्मोत्सव मनाने के विचार को यूक्रेन में हाल के समय तक पुरातनपंथी माना जाता था, लेकिन रूस के आक्रमण ने कई लोगों के दिलों-दिमाग को बदलकर रख दिया।

आप सभी के मन में एक सवाल आ रहा होगा कि ये सभी जब ईसाई ही हैं, यानी कि इनका धर्म एक समान है, फिर भी ये Christmas का त्योहार अलग-अलग दिन क्यों मनाते हैं। तो इसका बड़ा कारण यह है कि ईसाई धर्म तीन सम्प्रदायों में बंटा हुआ है। इस वजह से इनके बीच मतभेद है। पहले हम क्रिसमस के बारे में जान लेते हैं, उसके बाद ईसाई धर्म के सम्प्रदायों के बारे में जानेंगे।

क्रिसमस क्यों मनाया जाता है (Christmas kyon manaya jata hai) ?

क्रिसमस ईसाई धर्म के लोगों का सबसे प्रमुख त्योहार है, जिसे हर साल 25 दिसंबर के दिन क्रिसमस डे के रूप में मनाया जाता है। एक दिन पहले यानी कि 24 दिसंबर से ही इस त्योहार की धूमधाम शुरू हो जाती है। ईसाई धर्म के लोग इस दिन को यीशु मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं।

ईसाई धर्म के लोग क्रिसमस से एक दिन पहले यानी कि 24 दिसंबर से ही इस पर्व को मनाना शुरू कर देते हैं। 24 दिसंबर की आधी रात को लोग चर्च जाते हैं और यहां विशेष तौर पर पूजा यानी कि प्रार्थना की जाती है। ईसाई धर्म के लोग अपने प्रभु ईसा मसीह को याद करते हैं, फिर एक-दूसरे को क्रिसमस की बधाई देते हैं और तोहफे बांटते हैं।

क्रिसमस का इतिहास (History of Christmas)

क्रिसमस का इतिहास कुछ साल नहीं बल्कि कई शताब्दी पुराना है। कहा जाता है कि Christmas सबसे पहले रोम देश में मनाया गया था, लेकिन 25 दिसंबर के दिन को क्रिसमस से पहले रोम में सूर्यदेव के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता था। उस वक्त रोम के सम्राट सूर्यदेव को अपना मुख्य देवता मानते थे और सूर्यदेव की आराधना की जाती थी, लेकिन 330 ईसवी आते-आते रोम में ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार बहुत तेजी से बढ़ने लगा, नतीजतन रोम में अधिक संख्या में ईसाई धर्म के अनुयायी हो गए।

इसके बाद 336 ईसवी में ईसाई धर्म के अनुयायियों ने ईसा मसीह को सूर्यदेव का अवतार मान लिया और इसके बाद से 25 दिसंबर के दिन को ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में Christmas का त्योहार मनाए जाने की परंपरा की शुरुआत हुई। लोग इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाते हैं। यह त्योहार ईसाई धर्म के लोगो के लिए नया साल शुरू होने के समान होता है।

क्रिसमस का महत्व (Importance of Christmas)

एक समय Christmas का पर्व केवल पश्चिमी देश और ईसाई बहुल इलाकों में ही मनाया जाता था, लेकिन आज यह दुनियाभर में मनाया जाने वाला पर्व बन गया है। इस पर्व को लेकर ऐसी मान्यता है कि लोगों को पाप से मुक्त कराने और रोकने के लिए ईश्वर ने अपने बेटे को भेजा था और ईसा मसीह ने लोगों को पाप से मुक्त कराने से संघर्ष में स्वयं के प्राण त्याग दिए।

तीन सम्प्रदायों में बंटा हुआ है ईसाई धर्म

ईसाई धर्म तीन समुदायों कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट और आर्थोडॉक्स में बंटा हुआ है, लेकिन सभी का धार्मिक ग्रन्थ बाइबिल ही है।

कैथोलिक

1.2 बिलियन अनुयायियों के साथ ये ईसाई धर्म की सबसे बड़ी शाखा है, जिसे मानने वाले रोम की वेटिकन सिटी में पोप को अपना धार्मिक गुरु मानते हैं।

प्रोटेस्टेंट

ईसाई धर्म की यह दूसरी बड़ी शाखा है, जिसे मानने वाले लगभग 920 मिलियन हैं। इसे सोलहवीं सदी में सुधारवादी आंदोलन के दौरान बनाया गया था। ये रोमन कैथोलिक चर्च के कट्टर विरोधी हैं।

आर्थोडॉक्स

ईसाई धर्म की यह तीसरी बड़ी शाखा है। अनुयायियों की संख्या 270 मिलियन है। ये रोमन कैथोलिक चर्च के पोप को नहीं मानते, बल्कि इनकी अपनी परम्पराएं हैं। यहां चर्च के गुरु को पेट्रीआर्क या मेट्रोपॉलिटन कहा जाता है। रूस और यूक्रेन में आर्थोडॉक्स चर्च को ही मानते हैं।

यूक्रेन का आर्थोडॉक्स चर्च दो गुटों में बंटा

यूक्रेन का आर्थोडॉक्स चर्च दो गुटों में बंटा हुआ है, इनमें से एक आर्थोडॉक्स चर्च यूक्रेन यानी OCU है और दूसरा यूक्रेनियन आर्थोडॉक्स चर्च है, जिसे UOC कहा जाता है। साल 2018 में OCU से अलग होकर UOC बना था। UOC को रुसी समर्थक समझा जाता है, इन्हीं वजहों से यूक्रेन में बार-बार इस पर बैन लगाने की मांग होती रहती है।

जूलियन कैलेंडर फॉलो करते हैं रूस और यूक्रेन

दुनियाभर के ईसाई खासतौर से दो कैलेंडरों को फॉलो करते हैं, इनमें से एक ग्रेगोरियन कैलेंडर (Gregorian Calendar) और दूसरा जूलियन कैलेंडर है। फिलहाल, जो ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है, वो ग्रेगोरियन कैलेंडर है, लेकिन रूस और यूक्रेन दोनों देश आर्थोडॉक्स क्रिश्चयनिटी को मानते हैं, जिसके कारण ये जूलियन कैलेंडर का इस्तेमाल करते हैं

ग्रेगोरियन कैलेंडर की तुलना में जूलियन कैलेंडर काफी पुराना माना जाता है। इसी वजह से रूस और यूक्रेन 7 जनवरी को क्रिसमस यानी क्रिसमस डे मनाते हैं।

2017 में पहली बार यूक्रेन में 25 दिसंबर को हुई छुट्टी

यूक्रेन आर्थोडॉक्स चर्च के आर्चबिशप येवसट्रेटी जोरिया ने राजनेताओं को बताया कि हम लोगों को ऑप्शन दे रहे हैं कि वो क्रिसमस के लिए अपनी मर्जी के मुताबिक़ दिन चुन सकते हैं। 2017 से ही इस बदलाव की शुरुआत हो चुकी है, जब यूक्रेन में 25 दिसंबर को छुट्टी वाला दिन घोषित किया गया था। चर्च के कई लोगों ने अपील की थी कि हम रूस के जूलियन कैलेंडर को नहीं फॉलो करना चाहते हैं, जिसके बाद यह फैसला किया गया।

यूक्रेन में 7 जनवरी की बजाय इस साल 25 दिसंबर को ही क्रिसमस मनाया जा रहा है। इसकी एकलौती वजह ये है कि युद्ध के कारण यूक्रेन, रूस से अपने सभी संबंधो को तोड़ना चाहता है। दरअसल, रूस और यूक्रेन में आर्थोडॉक्स चर्च के नियमों के मुताबिक त्योहार मनाए जाते हैं, जिसके चलते दोनों देश 7 जनवरी को क्रिसमस मनाते हैं, राजनीतिज्ञों के मुताबिक यूक्रेन में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब क्रिसमस 25 दिसंबर को मनाया जा रहा हो। यूक्रेन के इस फैंसले के बाद दोनों देशों के चर्चों के बीच तनाव बढ़ेगा।

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