लॉयर और एडवोकेट में अंतर | दोनों की कार्यप्रणाली और योग्यताएँ

आज के इस लेख में हम लॉयर और एडवोकेट में अंतर के बारे में जानेंगे, साथ ही ये भी जानेंगे की लॉयर या एडवोकेट बनने के लिए क्या योग्यताएँ होनी चाहिए तथा इनकी कार्यप्रणाली किस प्रकार की होती है।

तो आइये जानते है……..

सामान्य नजरिए में लॉयर और एडवोकेट

सामान्यतः काले कोट में जब हम किसी को देखते है तो हमें ऐसा लगता है कि अरे ये तो वकील साहब है, लेकिन हर काले कोट वाला वकील नहीं होता। इन काले कोट वालों में से कुछ वकील (Lawyer) कुछ अधिवक्ता (Advocate) और कुछ विधिवक्ता (Barrister) और भी कई तरह के न्यायिक अधिकारी होते है। इन सब का काम भी अलग-अलग होता है, इस वजह से इन सब का नाम भी अलग-अलग है।

इन सब का नाम तो हमनें सुन रखा है लेकिन वास्तविक में जानते नहीं है कि किस काले कोट में कौन सा न्यायिक व्यक्ति या अधिकारी है। इनके नाम का मतलब क्या है और इनका काम क्या है। तो आइये आज के इस लेख में हम काले कोट वालों में से लॉयर और अधिवक्ता के बीच अंतर को समझते है।

वकील (Lawyer)

मूल रूप से हम वकील उसे कहते है जिसने Law (लॉ- विधि, नियम, कानून) की पढ़ाई की हो और लॉ के क्षेत्र में डिग्री हासिल की हो, यानी कि जिसने 3 या 5 साल के LLB (Bachelor of Laws) के कोर्स को पूरा किया है। LLB (विधि स्नातक) की डिग्री प्राप्त करते ही सम्बंधित व्यक्ति को वकील की उपाधि मिल जाती है।

लॉयर बनने के लिए विधि स्नातक (LLB) की डिग्री आवश्यक है। विधि स्नातक यानी कानून के जानकार को हम लॉयर कहते है। लॉयर का ड्रेस कोड आप ऊपर के चित्र में देख सकते है।

लोगों के मन में हमेशा एक सवाल उठता है की क्या लॉयर किसी ग्राहक (Client) का कोर्ट में प्रतिनिधित्व (Represent) कर सकता है। कोर्ट की भाषा में ग्राहक को मुवक्किल कहते है। दरअसल, कोई भी लॉयर अपने क्लाइंट को कोर्ट में रिप्रजेंट नहीं कर सकता और न ही उसके किसी मुद्दे में कोर्ट में जाकर बहस कर सकता। यानी कि लॉयर किसी के अधिकार के लिए लड़ नहीं सकता।

एक लॉयर अपने क्लाइंट को कानूनी सलाह या वैधानिक सलाह (Legal Advice) दे सकता है या लीगल डाक्यूमेंट्स तैयार कर के दे सकता है।

और जब एक लॉयर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI- Bar Council Of India) का एग्जाम पास कर बार काउन्सिल ऑफ इंडिया का सर्टिफिकेट प्राप्त कर लेता है तो ऐसे में वो बार काउन्सिल में खुद को इनरोल (Enroll) करके अधिवक्ता (Advocate) की उपाधि हासिल कर सकता है, जिसके बाद वो कोर्ट में अपने क्लाइंट का पक्ष भी रख सकता है।

अधिवक्ता (Advocate)

अधिवक्ता का मतलब होता है आधिकारिक वक्ता, जिसके पास कानूनी तौर यह अधिकार होता है कि वह कोर्ट में क्लाइंट की तरफ से उसका पक्ष रख सकता है और उसके समर्थन के लिए कोर्ट में बहस भी कर सकता है। अधिवक्ता वो होता है जो लॉ की डिग्री हासिल कर ली हो और BCI – Bar Council Of India में इनरोल हो।

एडवोकेट

अधिवक्ता के पास कोर्ट में प्रैक्टिस करने का लायसेंस होता है, जिसके बाद कोर्ट में वो अपने किसी भी क्लाइंट का पक्ष रख सकता है। इस प्रकार सभी Advocate एक लॉयर होते है लेकिन हर लॉयर, एडवोकेट नहीं हो सकता। ऐसा भी कहा जा सकता है कि एडवोकेट बनने के लिए पहले लॉयर बनना आवश्यक है।

अधिवक्ता (Advocate) तीन तरह के होते है।

  1. अधिवक्ता (Advocate)
  2. वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate)
  3. AOR – Advocate On Record

अधिवक्ता (Advocate)

अधिवक्ता के बारे में तो हम सभी ऊपर पढ़ चुके है कि लॉ की डिग्री हासिल करने वाला वह व्यक्ति जो BCI – Bar Council Of India में इनरोल हो अधिवक्ता कहलाता है। अधिवक्ता के पास कोर्ट में प्रैक्टिस करने और अपने किसी भी क्लाइंट का पक्ष रखने का अधिकार होता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate)

वरिष्ठ अधिवक्ता की उपाधि सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट के द्वारा दी जाती है और यह उपाधि किसी अधिवक्ता की योग्यता को देखते हुए दी जाती है। वरिष्ठ अधिवक्ता की उपाधि उन अधिवक्ता को दी जाती है जो कानून की अच्छी जानकारी रखता हो और भारत के संविधान का एक अच्छा जानकार हो। वरिष्ठ अधिवक्ता होने के लिए उम्र कम से कम 45 वर्ष होना चाहिए और 10 से 20 वर्ष का प्रैक्टिस अनुभव होना चाहिए।

इसके अलावा वरिष्ठ अधिवक्ता होने के लिए विशिष्ट योग्यता भी देखी जाती है जैसे कि अधिवक्ता अपने प्रैक्टिस के दौरान कितने मामलों में शामिल हुआ और उनमें से कितने फैसले उनके पक्ष या विपक्ष में आए। एक अधिवक्ता जब वरिष्ठ अधिवक्ता बन जाता है तो उसका ड्रेस कोड पूरी तरह से बदल जाता है और यहाँ तक कि उनकी फीस भी बढ़ जाती है।

एक वरिष्ठ अधिवक्ता वकालतनामा नहीं दर्ज कर सकता और बिना AOR की अनुमति के किसी बहस में शामिल हो सकता। किसी अधीनस्थ न्यायालय या न्यायधिकरण में बिना किसी अधिवक्ता के पेश नहीं हो सकता। यह सीधा किसी क्लाइंट के मुक़दमे पर बहस में शामिल नहीं हो सकता।

AOR – Advocate On Record

जैसा कि हम सभी जानते है कि सभी न्यायालय के अपने कुछ नियम होते है ऐसे में Advocate On Record में नामांकित Advocate ही उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में वकालतनामा दायर कर सकता है या किसी भी प्रकार का रिकॉर्ड पेश कर सकता है और यह Advocate किसी पार्टी या क्लाइंट की तरफ से भी सुप्रीम कोर्ट में पेश हो सकता है।

Advocate On Record की उपाधि के लिए सुप्रीम कोर्ट के विशेष एग्जाम को पास करना जरुरी होता है। Advocate On Record के लिए 5 साल का प्रैक्टिस अनुभव होना जरुरी है, जिसमें से 01 साल उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में किसी AOR के अंडर में रहकर प्रैक्टिस की हो और जिस AOR के अंडर रहकर उन्होंने प्रैक्टिस की हो उसे भी 10 साल या उससे भी ज्यादा का अनुभव होना जरुरी है। इसके बाद AOR की उपाधि मिलती है।

इनके अलावा Advocate के रूप में एक शब्द और आता है, तो आइये उसके बारे में भी जान लेते है।

महाधिवक्ता (Advocate General)

किसी राज्य के सबसे बड़े लॉ ऑफिसर को Advocate General कहते है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 165 के अनुसार केवल किसी राज्य के राजयपाल ही Advocate General की नियुक्ति कर सकते है। Advocate General राज्य सरकार को कानूनी सलाह (Legal Advice) देने का काम करता है और साथ ही कोर्ट में ये राज्य को Represent भी कर सकते है।

इसके अलावा Advocate General को विधानसभा और विधान परिषद् की कार्यवाही में बोलने और सदन में बहस करने का भी अधिकार है। राजयपाल कभी भी Advocate General को उसके पद से हटा सकता है। Advocate General के पास मतदान करने का कोई अधिकार नहीं होता है।

यह भी पढ़े : लॉयर, बैरिस्टर और एडवोकेट में अंतर और उनकी कार्यप्रणाली

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