गौतम अदाणी ने इजरायल के जिस हाइफा पोर्ट के टेंडर को हासिल किया है, उसका हाइफा युद्ध से है संबंध, जिसमें हजारों भारतीय सैनिक हुए थे शहीद

Haifa Port | Haifa War 1918

आज के इस लेख में हम आज का जो हाइफा पोर्ट है उसका हाइफा युद्ध से क्या संबंध है उसके बारे में जानेंगे। यह महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि हाइफा का भारत से पुराना संबंध है।

तो आइये जानते है…..

चर्चा में क्यों ?

हाइफा पोर्ट चर्चा में इसलिए है क्योंकि गौतम अदाणी की कंपनी अदाणी पोर्ट्स ने इजराइल (Israel) के हाइफा बंदरगाह (Haifa Port) के निजीकरण के टेंडर को अपनी इजराइली पार्टनर कंपनी गैडोट (Gadot) के साथ मिलकर हासिल कर लिया है। अब इस बंदरगाह पर अगले 31 साल तक यानी 2054 तक अदाणी की कंपनी अदाणी पोर्ट्स का नियंत्रण रहेगा। हाइफा बंदरगाह की 70 फीसदी हिस्सेदारी अदाणी पोर्ट्स के पास रहेगी, बाकी की 30 फीसदी हिस्सेदारी गैडोट ग्रुप के पास रहेगी।

वैसे तो इस प्रकार की बहुत घटनाएँ और लेन-देन होते रहते है लेकिन आपको बता दे कि ये घटना खास है, वो इसलिए कि जिस हाइफा बंदरगाह को गौतम अदाणी जी ने आज ख़रीदा है उसका संबंध भारत से 1918 से है। संबंध ऐसा है कि 1918 में यहाँ पर हाइफा युद्ध हुआ था और इस युद्ध में भारतीय सैनिक भी शामिल हुए थे और युद्ध के दौरान बहुत से भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे।

तो आइये हाइफा युद्ध के बारे में जान लेते है जिससे हाइफा युद्ध और हाइफा बंदरगाह को एक दूसरे से जोड़ के रख सके।

हाइफा युद्ध (Haifa War)

जैसा की आप सभी जानते है कि प्रथम विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक चला था। 1918 में इजरायल के हाइफा क्षेत्र में रहने वालें यहूदियों की लड़ाई तुर्की में शासन करने वाले ओटोमन साम्राज्य से हो गयी। उस समय ओटोमन साम्राज्य के साथ जर्मनी भी था, तो तुर्की और जर्मनी की सेना ने मिलकर इजरायल के हाइफा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया। उस आक्रमण में यहूदियों की रक्षा की जिम्मेदारी ब्रिटिश सेना के द्वारा ली गयी थी।

चूँकि उस समय ब्रिटिशर्स भारत पर राज करते थे, तो वो भारतीयों को ही अपनी सेना में रखते थे। ऐसी स्थिति में ब्रिटिशर्स की ओर से भारतीय सैनिकों ने इस लड़ाई को यहूदियों की सुरक्षा के लिए लड़ा। इस युद्ध में भारतीय घुड़सवारी सेना (Cavalry) काफी प्रसिद्धी पाई। अंततः इस लड़ाई को अंग्रेज जीतने में तो कामयाब हुए लेकिन इस लड़ाई में लगभग एक हजार भारतीय सैनिक मारे गए।

इस प्रकार से हाइफा को तुर्की से बचा लिया गया। ब्रिटिशर्स की नजर में हाइफा की ये लड़ाई काफी सम्मानीय और साहसिक रही। इसलिए जो शहीद हुए उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा उचित सम्मान दिया गया। इसे बाद में इजरायल द्वारा भी काफी सराहा गया। कहते है कि इजरायल के आजाद होने की कहानी यही से शुरू हुई। इसलिए इजरायली प्रति वर्ष हाइफा में उन शहीद हुए भारतीय घुड़सवारों के सम्मान और उन्हें याद करते हुए कोई न कोई कार्यक्रम जरूर करते है।

विश्व की एकलौती ऐसी लड़ाई

इस युद्ध में मुख्य रूप से जोधपुर रियासत की सेना ने भाग लिया था। इस युद्ध में तुर्की और जर्मनी के सेना के पास बंदूके, तोप और मशीन गन थे, लेकिन भारतीय सैनिकों के पास केवल भाला और तलवार था। इस स्थिति को देखने के पश्चात् भी भारतीय सैनिक बंदूके, तोपों और मशीन गन के सामने अपनी छाती अड़ाकर अपनी परम्परागत युद्ध शैली से बड़ी बहादुरी से लड़ाई लड़ी और विजयी भी हुए।

अब आप सोच सकते है कि बंदूके, तोप और मशीन गन के सामने किस प्रकार से भारतीय सैनिक भाला और तलवार से लड़े होंगे। इसी वजह से पूरे विश्व में इस प्रकार की लड़ाई को एकलौती लड़ाई माना गया है। विपरीत परिस्थितियों में युद्ध लड़े जाने की वजह से ही इतने सैनिक मारे गए।

सेनापति मेजर दलपत सिंह का गजब का साहस

जोधपुर रियासत की सेना के सेनापति थे मेजर दलपत सिंह। अंग्रेजो ने दलपत सिंह को हाइफा को बचाने का आदेश दिया। आदेश मिलते ही दलपत सिंह ने अपनी सेना को दुश्मन पर टूट पड़ने के निर्देश दिए, जिसके बाद सेना दुश्मन को खत्म करने और हाइफा को बचाने के लिए आगे बढ़ी।

लेकिन तभी अंग्रेजो को यह पता चला की दुश्मन के पास बंदूके, मशीन गन और तोपे है, जबकि जोधपुर रियासत की सेना घोड़ो पर तलवार और भालो से लड़ने वाली थी। इस वजह से अंग्रेजो ने दलपत सिंह को सेना के साथ वापस लौटने का आदेश दिया, लेकिन सेनापति मेजर दलपत सिंह ने कहा की हमारे यहाँ वापस लौटने का कोई रिवाज नहीं है। हम रणबाँकुरे है, रणभूमि में उतरने के बाद या तो जीत हासिल करते है या फिर वीरगति को प्राप्त हो जाते है।

हाइफा पोर्ट कहा है?

हाइफा पोर्ट भूमध्य सागर के पूर्वी किनारे पर स्थित है। यह गहरे पानी वाला बंदरगाह है। यह इसराइल का दूसरा सबसे बड़ा बंदरगाह है। इसका निर्माण प्रथम विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश काल में साल 1922 में शुरू किया गया था, इसे बनने में 11 साल लगे। 1933 से इसे आधिकारिक रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है। यहां से मालवाहक और यात्री दोनों जहाजों का आना-जाना होता है। इसलिए यह बंदरगाह काफी महत्वपूर्ण है।

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