बजट से संबंधित प्रमुख शब्दावलियां, जो बजट को पढ़ना और समझना कर देंगी आसान

आज के इस लेख में हम बजट में प्रयोग होने वाले ऐसे शब्दों या शब्दावलियों (Terminologies – vocabulary) के बारे में जानेंगे, जो बजट से संबंधित जानकारियों को पढ़ने व समझने में उलझने पैदा करती हैं।

तो आइए जानते हैं……

विषय सूची

बजट से संबंधित शब्दावलियां – Budget related Terminologies

बजट कोई छोटी चीज नहीं होती। बजट किसी भी देश के 1 साल के खर्चे और आमदनी के विवरण के बारे में जानकारी देता है। इस वजह से बहुत सारे तथ्यों और शब्दावलियों का उल्लेख किया जाता है। जब हम Budget में उल्लेखित विवरणों को पढ़ने और समझने की कोशिश करते हैं, तो यह पाते हैं कि उसमें बहुत सारे ऐसे शब्द या शब्दावलियां हैं, जिनके बारे में हम जानते ही नहीं हैं। इस वजह से Budget को पढ़ने या समझने में बहुत सारी दिक्कतें आती हैं।

तो आइए अब हम उन शब्दावालियों के बारे में चर्चा कर लेते हैं, जो हमें बजट को पढ़ने व समझने में उलझने पैदा करती हैं।

एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट – वार्षिक वित्तीय विवरण

यूनियन बजट को एनुअल फाइनेंशियल स्टेटमेंट भी कहा जाता है। फाइनेंसियल स्टेटमेंट में सरकार के हर मंत्रालय के लिए आवंटित राशि का उल्लेख होता है। यह समझ लेना जरूरी है कि यूनियन फाइनेंशियल स्टेटमेंट में अगले वित्त वर्ष के खर्च का आवंटन होता है।

डिमांड फॉर ग्रांट – अनुदान की मांग

डिमांड फॉर ग्रांट में सरकार के अनुमानित खर्च का उल्लेख होता है। इसमें रिवेन्यू एक्सपेंडिचर, कैपिटल एक्सपेंडिचर और सरकार के अनुदान शामिल होते हैं। ये सभी अगले फाइनेंशियल ईयर के लिए होते हैं।

गवर्नमेंट बॉरोइंग – सरकार द्वारा लिया गया कर्ज

सरकार को हर साल बाजार से काफी पैसा उधार लेना पड़ता है। इसकी वजह यह है कि सरकार की इनकम के मुकाबले उसके खर्च ज्यादा होते हैं। दोनों के बीच के अंतर को पूरा करने के लिए सरकार मार्केट से कर्ज उठा लेती है। इसे गवर्नमेंट बॉरोइंग कहा जाता है। सरकार बजट में यह बता देती है कि वह अगले फाइनेंसियल ईयर में उधार से कितने पैसे जुटाएगी।

रेवेन्यू डेफिसिट – राजस्व घाटा

सरकार के रेवेन्यू एक्सपेंडिचर (सरकार के खर्चे) और रेवेन्यू रिसीट्स (सरकार की आमदनी) के बीच के अंतर को रेवेन्यू डेफिसिट कहा जाता है। इससे पता चलता है कि फाइनेंशियल ईयर में सरकार को रेवेन्यू के रूप में मिलने वाला फंड उसके एक्सपेंडिचर के मुकाबले कम है। कुलमिलाकर रेवेन्यू डेफिसिट का मतलब यह हुआ कि सरकार का एक्सपेंडिचर उसके रेवेन्यू से ज्यादा ही रहता है।

पिस्कल डेफिसिट – राजकोषीय घाटा

इस टर्म का इस्तेमाल बजट डाक्यूमेंट्स में सबसे ज्यादा होता है। सरकार के कुल खर्च और कुल रेवेन्यू के बीच के अंतर को फिस्कल डेफिसिट कहा जाता है। सरकार उधार के जरिए जो पैसे जुटाती है वह फिस्कल डेफिसिट में शामिल नहीं होता है। फिस्कल डेफिसिट की स्थिति तब पैदा होती है, जब सरकार का कुल खर्च उसके रेवेन्यू से ज्यादा होता है।

फाइनेंस बिल – वित्त विधेयक

बजट पेश होने के बाद संसद में सरकार फाइनेंस बिल पेश करती है, इसमें सरकार की कमाई का ब्यौरा होता है।

एप्रोप्रिएशन बिल – विनियोग विधेयक

फाइनेंस बिल के साथ ही एप्रोप्रिएशन बिल भी पेश किया जाता है, इसमें सरकार के खर्च का ब्यौरा रहता है।

बजट एस्टीमेट – बजट अनुमान

आने वाले वित्त वर्ष यानी फाइनेंशियल ईयर में सरकार जो कमाई और खर्च का अनुमान बताती है, उसे Budget एस्टीमेट कहा जाता है।

रिवाइज्ड एस्टीमेट – संशोधित अनुमान

पिछले वित्त वर्ष में सरकार ने कमाई और खर्च का जो अनुमान लगाया था, उसे फिर से संशोधित करके पेश करती है, तो उसे रिवाइज्ड एस्टीमेट कहते हैं।

एक्चुअल – वास्तविक

2 साल पहले सरकार ने असल में जितना कमाया और जितना खर्च किया उसे एक्चुअल कहते हैं।

टैक्स – कर

डायरेक्ट टैक्स: वह टैक्स जो सरकार आम आदमी से सीधे लेती है। जैसे- इनकम टैक्स, कॉर्पोरेट टैक्स, प्रॉपर्टी टैक्स आदि।

इनडायरेक्ट टैक्स: वह टैक्स जो आम आदमी से इनडायरेक्टली लिया जाता है। जैसे- एक्साइज ड्यूटी, कस्टम ड्यूटी, सर्विस टैक्स आदि।

इनकम टैक्स – आयकर

यह आपकी कमाई पर लगता है। इसके अलावा कहीं इन्वेस्टमेंट किया है और उस पर ब्याज मिल रहा है, तो उस पर भी इनकम टैक्स देना होता है।

कॉर्पोरेट टैक्स:

कंपनियों या फर्मों को अपनी कमाई पर सरकार को जो टैक्स देना होता है, उसे कॉर्पोरेट टैक्स कहा जाता है।

कस्टम ड्यूटी – सीमा शुल्क

जो भी सामान दूसरे देश से आ रहा है या फिर दूसरे देश जा रहा है, उस पर कस्टम ड्यूटी लगती है। यानी इंपोर्ट-एक्सपोर्ट पर कस्टम ड्यूटी लगती है।

एक्साइज ड्यूटी – उत्पाद शुल्क

देश के अंदर ही बनने वाले सामानों पर जो टैक्स लगता है, उसे एक्साइज ड्यूटी कहते हैं। इसे अब जीएसटी में शामिल कर लिया गया है, लेकिन पेट्रोल-डीजल और शराब पर अब अभी एक्साइज ड्यूटी लगती है।

फिस्कल सरप्लस – राजकोषीय मुनाफा

अगर सरकार की कमाई ज्यादा है और खर्च कम है, यानी सरकार फायदे में हैं, तो इसे फिस्कल सरप्लस कहा जाता हैं।

रेवेन्यू एक्सपेंडिचर – राजस्व व्यय

देश चलाने के लिए सरकार को जिस खर्च की जरूरत होती है, उसे रिवेन्यू एक्सपेंडिचर कहा जाता है। यह खर्च सब्सिडी देने, सैलरी देने, कर्ज देने और राज्य सरकारों को ग्रांट देने आदि में होता है।

कंसोलिडेटेड फंड – समेकित कोष

सरकार जो भी कमाती है, उसे कंसोलिडेटेड फंड में रखा जाता है। इससे पैसा निकालने के लिए संसद की मंजूरी जरूरी होती है।

कंटिन्जेन्सी फंड यानी आकस्मिक निधि

अचानक जरूरत पड़ने पर सरकार जिस फंड से पैसा निकालती है, उसे कंटिन्जेन्सी फंड कहते हैं। इससे पैसा निकालने के लिए संसद की मंजूरी जरूरी नहीं होती।

कैपिटल एक्सपेंडिचर यानी पूंजीगत व्यय

ऐसे खर्च, जिसके माध्यम से आने वाले भविष्य में सरकार को कमाई होगी, उसे कैपिटल एक्सपेंडिचर कहा जाता है। ऐसे खर्चे सरकार स्कूल, कॉलेज, सड़क, अस्पताल आदि के नव निर्माण में करती है।

साल्ट टर्म गेन – अल्पकालिक पूंजीगत लाभ

जब सरकार द्वारा शेयर बाजार में 1 साल से कम समय के लिए किसी शेयर में पैसे लगाकर उस पर मुनाफा कमाया जाता है, तो उसे शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन कहा जाता है।

लॉन्ग टर्म गेम यानी दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ

जब सरकार द्वारा शेयर बाजार में 1 साल से अधिक समय के लिए किसी शेयर में पैसे लगाकर उस पर मुनाफा कमाया जाता है, तो उसे लोंग टर्म कैपिटल गेन कहा जाता है।

डिसइन्वेस्टमेंट – विनिवेश

जब सरकार, सरकारी कंपनियों की कुछ हिस्सेदारी बेचकर कमाई करती है, तो उसे डिसइन्वेस्टमेंट कहा जाता हैं।

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