भारतीय नागरिकता के नियम | कैसे हासिल की जा सकती है भारत की नागरिकता ?

भारतीय नागरिकता के प्रावधान

आज के इस लेख में हम भारतीय नागरिकता के बारे में जानेंगे की कैसे भारत की नागरिकता हासिल की जा सकती है, नागरिकता से संबंधित क्या नियम है और भारतीय संविधान में इनका कहां उल्लेख किया गया है और कैसे कोई भारत की नागरिकता से वंचित हो सकता है?

तो आइये जानते है……..

नागरिकता किसे कहते है (What is citizenship) ?

किसी भी देश में दो तरह के लोग रहते है, एक वहां का नागरिक, जिसके पास नागरिकता होगी और दूसरा वह जो बाहर या विदेश से आया हो। नागरिकता एक विशेष प्रकार का अधिकार है, जिसे संबंधित देश अपने देश में रह रहे लोगों को सर्टिफिकेट के रूप में देता है। जैसे – Voter ID Card नागरिकता का एक बहुत बड़ा प्रमाण होता है।

जो व्यक्ति जिस देश की नागरिकता रखता है वह देश उसे सभी प्रकार के अधिकार देता है। जैसे – राजनैतिक अधिकार, कानूनी अधिकार, कही भी नौकरी करने का अधिकार, चुनाव लड़ने व वोट डालने का अधिकार, लेकिन अगर आप उस देश के नागरिक नहीं है तो आपसे कुछ अधिकार छिन जाएंगे।

जैसे – आप टूरिस्ट है, VISA लेकर घूमने आए है, तो आप घूम सकते है, होटल में रुक सकते है या आपका कोई संबंधी यहां रह रहा है तो उसके यहां जा सकते है, इसके अलावा आपको कानूनी सुरक्षा मिलेगी, कोई आपके साथ मारपीट नहीं कर सकता।

इसके अलावा जो भारत का नागरिक नहीं है वह किसी भी बड़े पोस्ट पर नहीं आ सकता। जैसे – वह राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, सुप्रीम कोर्ट का जज आदि। इसके अलावा न तो वह चुनाव लड़ सकता और न ही वोट डाल सकता। मुख्य रूप से इसे ऐसे समझे की नागरिकता एक विशेष प्रकार का अधिकार देती है और जिसके पास नागरिकता नहीं होती उसे संबंधित नियम के तहत कुछ अधिकार दिए जाते है और कुछ अधिकार नहीं दिए जाते।

नागरिकता का वर्णन सबसे पहले अरस्तु ने किया था

भारतीय संविधान में नागरिकता का उल्लेख (Mention of citizenship in the Indian Constitution)

भारतीय संविधान के भाग-2 में अनुच्छेद 5 से लेकर 11 में नागरिकता का उल्लेख किया गया है। भारतीय नागरिकता से संबंधित जितने भी नियम-कानून है, सभी का इन्ही अनुच्छेदों में वर्णन किया गया है, तो आइये अब इन अनुच्छेदों के बारे में जान लेते है।

भारतीय नागरिकता से संबंधित नियम व कानून।

भारतीय नागरिकता से संबंधित नियम व कानून का उल्लेख भारतीय संविधान में अनुच्छेद 5 से लेकर 11 में किया गया है, तो आइये जानते है कि भारतीय नागरिकता से संबंधित किस प्रकार के नियम व कानून बनाए गए है।

अनुच्छेद – 5

यह अनुच्छेद संविधान के प्रारम्भ में भारतीय नागरिकता का उल्लेख करता है। जैसे की आप सभी जानते है की भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, तो यह अनुच्छेद आसपास के उस समय के भारतीय नागरिकता के प्रावधानों को बताता है। यह अनुच्छेद तीन प्रकार की शर्ते लागू करता है, तो आइये जानते है कि इस अनुच्छेद के हिसाब से कैसे कोई भारत का नागरिक कहलाएगा।

1. उसका जन्म भारत में हुआ हो

जिस किसी भी व्यक्ति का जन्म भारत में हुआ हो वह भारत का नागरिक कहलायेगा, फिलहाल चाहे वह भले ही भारत में मौजूद न हो। ऐसा इसलिए की उस समय भी कुछ भारतीय नागरिक अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चलाने के लिए भारत से बाहर थे। जैसे – कनाडा में आंदोलन चलाया गया था, सैन फ्रांसिस्को में भी लाला हर दयाल ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चलाया था। मतलब बहुत से नागरिक विदेशों में भी थे, तो उन्हें भी नागरिकता मिलेगी, क्योंकि उनका जन्म भारत में हुआ है।

2. उसके माता पिता का जन्म भारत में हुआ हो

इसको ऐसे समझिये, जैसे – मान लीजिये की उस समय बहुत से आंदोलन चल रहे थे और बहुत सारी लड़ाईया भी चल रही थी। कुछ लोग इसी सिलसिले में भारत से गए हुए थे। मान लीजिये की जहां पर वो गए और वहीं पर उनके बच्चे का जन्म हो गया हो। इस आधार पर जो ऊपर शर्त बताई गयी है उस हिसाब से तो वह भारत का नागरिक नहीं बन पायेगा। इसलिए नंबर-2 शर्त रखी गयी कि उसके माता-पिता का जन्म भारत में हुआ हो, इस हिसाब से उस विदेश में जन्मे बच्चे को भी भारत की नागरिकता मिलेगी।

3. संविधान लागू होने से 5 साल पहले से ही जो भारत में रह रहा हो

भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। इस हिसाब से 1945 या 1945 के पहले से जो भारत में रह रहा है उसे भारत की नागरिकता दी जायेगी। जैसे – डॉ. एनी बेसेंट, उनका जन्म तो लन्दन में हुआ था, लेकिन वो कई वर्ष तक भारत में रही थी और समाजसेवा का काम की, इसके अलावा भारतीय सवतंत्रता आंदोलन में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था, इसलिए वो भारत की नागरिक कहलाएंगी।

अनुच्छेद 5 कहता है कि ऊपर दी गयी तीनों शर्तों में से अगर कोई किसी एक को भी पूरा करता है, तो उसे भारत की नागरिकता दी जायेगी।

अनुच्छेद – 6

वर्तमान में इसका कोई विशेष औचित्य नहीं है, इसे उस समय के भारत-पाकिस्तान के विभाजन को ध्यान में रखकर बनाया गया था। 1947 के विभाजन के दौरान बहुत से लोग पाकिस्तान से भारत में आकर बस गए थे और बहुत से लोग भारत से जाकर पाकिस्तान में बस गए थे। इस प्रकार की स्थिति में बहुत ज्यादा मारकाट हो रही थी और अराजकता की स्थिति बनी हुई थी।

तो यह उन लोगों की नागरिकता के बारे में बताता है जो पाकिस्तान से भारत पलायन करके आए थे। ऐसे लोगों को दो हिस्सों में बांटा गया था। पहला ऐसे लोग जो 19 जुलाई 1948 से पहले भारत आ गए थे, दूसरा वो जो लोग 19 जुलाई 1948 के बाद भारत आए। अब आप सोचेंगे की यही तारीख क्यों, वो इसलिए की इसी तारीख को भारत-पाकिस्तान ने परमिट सिस्टम की शुरुआत की थी।

इस स्थिति में ये कहा गया की जो व्यक्ति 19 जुलाई 1948 से पहले भारत आ गया है उसे भारत का नागरिक माना जाएगा, यदि वो दो शर्तो को पूरा करता हो। पहली ये की उनके माता-पिता या किसी पूर्वज का जन्म भारत में हुआ हो। दूसरी ये की जब से उस व्यक्ति ने पाकिस्तान से पलायन किया है तब से वह भारत में ही है।

लेकिन जो 19 जुलाई 1948 के बाद जो भारत आए है उन पर परमिट नियम लगेगा। परमिट नियम के अंतर्गत उस व्यक्ति को भारत का नागरिक माना जाएगा, जो निम्न शर्तो को पूरा करता हो।

  • संबंधित व्यक्ति के माता-पिता या किसी पूर्वज का जन्म भारत में हुआ हो
  • पलायन के बाद से लगभग 6 महीने से भारत में ही रह रहे हो
  • अपनी नागरिकता के लिए उन्होंने किसी अधिकारी को पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) के लिए आवेदन दिया हो और अधिकारी ने उन्हें बतौर भारतीय नागरिक पंजीकृत कर लिया हो।

अनुच्छेद – 7

अनुच्छेद 6 में ये बताया गया की जो पाकिस्तान से भारत आए है उन्हें किस प्रकार से नागरिकता मिलेगी या फिर नहीं मिलेगी। वही अनुच्छेद 7 उन लोगों का उल्लेख करता है, जो 01 मार्च 1947 के बाद पाकिस्तान चले गए और बाद में पाकिस्तान से पलायन कर भारत आ गए।

आजादी के पहले से ही देश में इस प्रकार का माहौल बन गया था की देश का विभाजन होगा, तो कुछ लोगों को लगा की विभाजन तो हो ही जाएगा, तो चलो पहले से उसी जगह बस जाया जाय, जहां हम रहना चाहते है, लेकिन विभाजन के बाद जिस तरह की अराजकता फैली उसे देख लोगों को लगा की उन्होंने बहुत बड़ी गलती कर दी है पाकिस्तान आकर और वो पलायन करके भारत आ गए।

तो संविधान ने ऐसे लोगो को भी जगह दी। अनुच्छेद 7 बताता है की 01 मार्च 1947 के बाद आप पाकिस्तान चले गए लेकिन पलायन करके वापस भारत आ गए, क्योंकि आपको वहां अच्छा नहीं लगा। संविधान ने कहा ठीक है, कोई बात नहीं हम आपको भी नागरिकता देंगे, लेकिन आपको हमारी एक शर्त माननी होगी, वो शर्त ये की आपको पहले 6 महीने यहां रहना होगा, उसके बाद आप नागरिकता के लिए पंजीकृत होंगे। मतलब पहले आप 6 महीने तक रहिए उसके बाद भारत की नागरिकता के लिए पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) फॉर्म भरकर जमा कीजिए, उसके बाद आपको भारत की नागरिकता मिल जाएगी।

अनुच्छेद – 8

यह उन लोगों की नागरिकता के बारे में बताता है, जो है तो भारतीय मूल के, लेकिन रह रहे है दूसरे देश में, ऐसे में भारत की नागरिकता के लिए उन्हें दो शर्तो को पूरा करना होगा।

  • उनके माता पिता या पूर्वज का जन्म अविभाजित भारत में हुआ हो।
  • वह जिस भी देश में रह रहे हैं, उस देश के भारतीय राजनयिक या काउंसलर रिप्रेजेंटेटिव ऑफ इंडिया ने उन्हें भारत का नागरिक रजिस्टर किया हो। इसमें पाकिस्तान को शामिल नहीं किया गया है।

अनुच्छेद 5 से 8 तक उस समय की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए बनाए गए थे।

अनुच्छेद – 9

अनुच्छेद 9 यह बताता है कि अगर कोई व्यक्ति भारत का नागरिक होते हुए भी जानबूझकर स्वैच्छिक रूप से किसी अन्य देश की नागरिकता लेता है, तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वतः ही ख़त्म हो जायेगी, फिर वह अनुच्छेद 5, 6, 8 के तहत भारत की नागरिकता के लिए दावा नहीं कर सकता। जानकारी के लिए बता दूँ कि भारत में सिंगल नागरिकता का प्रावधान है। मान लीजिए आपके पास भारत की नागरिकता है और अगर आपने किसी अन्य देश की नागरिकता ली, तो भारत की नागरिकता खत्म हो जायेगी।

अनुच्छेद – 10

किसी भी व्यक्ति की नागरिकता तब तक खत्म नहीं की जा सकती, जब तक वह कोई अन्यथा काम न करे। जैसे – जिस काम को संसद या भारतीय कानून ने मना किया हो या वह काम देश विरोधी हो। इसको उदाहरण के माध्यम से ऐसे समझे की मान लीजिए भारत-पाकिस्तान का युद्ध चल रहा है और कोई भारतीय पाकिस्तान के पक्ष में बोलने लगे, तो इस प्रकार की स्थिति में उसकी नागरिकता खत्म की जा सकती है।

अनुच्छेद – 11

अनुच्छेद 11 संसद को यह शक्ति देता है कि वह नागरिकता से संबंधित कानून बना सकता है। संसद में यह अधिकार गृह मंत्रालय को दिया गया है। इसके अलावा अनुच्छेद 5 से लेकर 8 तक में संशोधन भी कर सकता है।

संविधान निर्माताओं ने उस समय नागरिकता से संबंधित जो कानून बनाएं थे, वो उस समय के माहौल के हिसाब थे। आप भी जानते है कि कोई चीज परफेक्ट नहीं हो सकती। इसलिए संविधान निर्माताओं ने संसद को ये शक्ति दी थी की आप अपने समय में अपने हिसाब से बदलाव कर सकते है।

तो संविधान लागू हुआ था 26 जनवरी 1950 को, इसके 5 साल बाद देश को लगा की भारतीय नागरिकता से संबंधित जो कानून है उनमें संशोधन की आवश्यकता है। इसलिए 1955 में संसद में पेश किया गया नागरिकता विधेयक। बहुमत से पास होकर बना नागरिकता अधिनियम 1955। नागरिकता से संबंधित यह पहला अधिनियम था, तो आइये नागरिकता अधिनियम 1955 के बारे में जान लेते हैं।

नागरिकता अधिनियम, 1955 (Citizenship Act, 1955)

नागरिकता अधिनियम 1955 में पांच प्रकार से नागरिकता देने और तीन प्रकार से नागरिकता वापस लेना का प्रावधान किया गया है, तो आइए जानते है कि नागरिकता अधिनियम 1955 के अंतर्गत किस प्रकार से नागरिकता देने और लेने का प्रावधान किया गया है।

नागरिकता अधिनियम 1955 के अंतर्गत किस आधार पर दी जाती है नागरिकता ?

1.जन्म के आधार पर

इस कानून के तहत भारत जन्मभूमि में जन्म लेने वाला कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक बन सकता है। मतलब अगर किसी का भी जन्म भारत में हुआ तो उसे भारत की नागरिकता मिल जायेगी। इस कानून पर जरा आप भी गौर करियेगा। जानकार लोग इसे बिना सोचे समझे बनाया गया कानून मानते है। वो कैसे? तो आइये इस पर चर्चा करते है।

इस कानून के आधार पर हर वो व्यक्ति जो भारत में पैदा हुआ है, भारत का नागरिक कहलाएगा। अब मान लीजिए की कोई पर्यटक भारत घूमने आया, इसी दौरान उसे बच्चा हो गया, तो इस हिसाब से वो जो बच्चा हुआ वो तो भारत का नागरिक बन गया। ऐसे तो सोचिए भारत में कितने पर्यटक प्रति वर्ष आते है। इस प्रकार के कानून का बहुत सारे उग्रवादी किस्म के लोग फायदा उठाने की सोचते रहते है।

यह कानून बना तो 1955 में, लेकिन सरकार की नींद खुली 31 साल बाद 1986 में। सरकार को लगा की ये क्या हो गया? ये तो बहुत ही फालतू टाइप का कानून बन गया। 1986 में इसमें संशोधन करते हुए यह कानून लाया गया की जिस बच्चे का जन्म हुआ है, उसके माता-पिता में से किसी एक का भारतीय नागरिक होना जरुरी है, तभी बच्चे को भारत की नागरिकता मिलेगी।

अंतर आपको समझ में आया होगा। पहले वाले में क्या था कि नागरिक किसी भी देश के हो अगर भारत आएं है और इस दौरान बच्चा हो गया तो वह भारत की नागरिकता हासिल कर सकता था। लेकिन 1986 में जो संशोधन किया गया उसका भी कुछ लोगों ने तोड़ निकाल लिया, इसलिए 2003 में इसमें एक संशोधन और किया गया।

ये तो 1986 में ही तय हो गया था की माता पिता में से किसी एक का भारतीय नागरिक होना आवश्यक है, लेकिन 2003 में ये संशोधन किया गया कि दोनों की नागरिकता मान्य (Valid) होना चाहिए। मतलब धोखाधड़ी से प्राप्त की गयी नागरिकता मान्य नहीं होगी। इसको उदाहरण के माध्यम से समझेंगे तो बेहतर तरीके से समझ पाएंगे।

अब जैसे मान लीजिये की पाकिस्तान का कोई नागरिक पढ़ने या घूमने के बहाने से जम्मू-कश्मीर में आता है और 6 महीने रहने के पश्चात किसी काश्मीरी लड़की से शादी करके बच्चा पैदा कर देता है, तो 1986 वाले कानून के अनुसार तो बच्चे को भारत की नागरिकता मिल जायेगी, क्योंकि लड़की भारत की नागरिक है, लेकिन 1986 वाले कानून में 2003 में जो संशोधन किया गया उसके अनुसार यहाँ पर जो पाकिस्तान का व्यक्ति आया और यहाँ रह के शादी करके बच्चा पैदा किया, उसकी नागरिकता को मान्य नहीं किया जाएगा, क्योंकि उसका आने का उद्देश्य कुछ और था और किया कुछ और।

2.वंश के आधार पर

जैसा की हम सभी को नागरिकता मिली हुई है वंश के आधार पर की हमारे पापा यहाँ पैदा हुए और हमारे पापा के पापा भी यही पैदा हुए। लेकिन 1955 में जो अधिनियम लाया गया था, उसमें ये कहा गया था की पिता के वंश के आधार पर नागरिकता मिलेगी।

अब जैसे सैफ अली खान और करीना कपूर खान का बच्चा इंग्लैण्ड में हुआ, लेकिन पिता सैफ अली खान भारतीय नागरिक है, इसलिए उनके बच्चे को भी भारतीय नागरिकता ही मिलेगी, लेकिन इस कानून में भेदभाव जैसा प्रतीत होता है और संविधान का कहना है की लड़की या लड़के में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।

इस कानून का विरोध करते हुए महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में केस कर दिया की केवल पिता बस को कैसे वंशज माना जा सकता है, बच्चा तो हमारा भी है। इसके बाद 1992 में इस कानून में संशोधन किया गया और कहा गया की वंश की गिनती माता-पिता दोनों से होगी। आइये इसको उदाहरण के माध्यम से समझते है।

जैसे सानिया मिर्जा भारतीय है और उसके पास भारत की ही नागरिकता है, क्योंकि उसने शादी के बाद भी अभी तक भारत की नागरिकता को छोड़ा नहीं है। सानिया मिर्जा ने शादी पाकिस्तानी मूल के क्रिकेटर शोएब मलिक से की हुई है। अब जैसे उनका बच्चा होगा, तो अगर 1955 वाले नागरिकता अधिनियम से देखेंगे तो पिता के वंश के आधार पर नागरिकता मिलेगी।

इस हिसाब से बच्चा पाकिस्तानी मूल का कहलायेगा, लेकिन 1992 में जो संशोधन किया गया उस हिसाब से माता-पिता दोनों को वंश के रूप में माना जाएगा। मतलब जब वह 18 साल का होगा, तो वह अपनी स्वेच्छा से पाकिस्तान या भारत दोनों में से किसी एक देश की नागरिकता ले सकता है।

3.पंजीकरण

इसको ऐसे समझते है, जैसे – मान लीजिये की कोई विदेशी नागरिक यहाँ किसी भी उद्देश्य से जैसे नौकरी ही करने आया और उसे भारत देश बहुत अच्छा लग गया और उसने यहाँ शादी कर ली। अब उसे लगा की भारत में ही रह जाना चाहिए, तो आप है तो विदेशी नागरिक, लेकिन आप भारत की नागरिकता लेना चाहते है। इसके लिए आपको मान्य तरीके से 7 साल तक भारत में रहना होगा, उसके बाद आप पंजीकरण (Resgistration) के माध्यम से नागरिकता के लिए आवेदन करेंगे।

आपका यह आवेदन गृह मंत्रालय के पास जाएगा। यह अधिकार गृह मंत्रालय के पास है की वह आपको नागरिकता देगा या नहीं। गृह मंत्रालय आपके आवेदन पर स्वतः संज्ञान लेते हुए विचार विमर्श करके आपको नागरिकता देगा।

4.देशीकरण

इसको ऐसे समझिए, जैसे – मान लीजिए आप भारत आए है और रह रहे है, न तो आप नौकरी किए हुए है और न ही शादी, फिर भी आप भारत की नागरिकता चाहते है, तो इस स्थिति में आपको तीन शर्तो को पूरा करना होगा।

  • पहली – आप कम-से-कम 10 साल भारत में रहे हो।
  • दूसरी – भारतीय संविधान की अनुसूची 8 में भारत की 22 मान्य भाषाओं में से कम-से-कम एक भाषा आप जानते हो।
  • तीसरी – कला या विज्ञान किसी एक में आपकी गहरी रूचि है और आप उसका ज्ञान भी रखते है।

जैसे पाकिस्तान के जो अदनान सामी है, वो पिछले 10 साल से ज्यादा समय से भारत में रह रहे है। हिंदी भाषा को बहुत से जानते व समझते है। तीसरा की वो बहुत अच्छे गायक व संगीतकार है। देश विरोधी किसी भी मामलों में मिले हुए नहीं पाए गए है, इसलिए उन्हें भारत की नागरिकता दे दी गयी है।

5.अर्जित भूमि

जैसे आप कही पर कब्जा कर लेते है या किसी स्थान को अपने में सम्मिलित कर लेते है, तो वहां के लोगों को भी देश की नागरिकता देनी पड़ेगी। जैसे – सिक्किम भारत का हिस्सा नहीं था। 16 मई 1975 को सिक्किम को भारत में मिला लिया गया, तो सिक्किम में रह रहे लोगों को भी भारत की नागरिकता देनी पड़ेगी।

नागरिकता अधिनियम 1955 के अंतर्गत किस आधार पर छीनी जाती है नागरिकता ?

नागरिकता अधिनियम 1955 में तीन इस प्रकार की विधियों या कानूनों का भी उल्लेख किया गया था, जिसके तहत किसी की नागरिकता को ख़त्म किया जा सकता है।

  • पहली – जैसे की आपके पास भारत की नागरिकता है और आप किसी अन्य देश की भी नागरिकता ले लेते है, तो भारत की नागरिकता खत्म हो जाएगी।
  • दूसरी – अगर आप किसी देश-विरोधी नीति में संलिप्त पाए गए या फिर मिले हुए है। जैसे – मान लीजिये की पाकिस्तान और भारत का युद्ध चल रहा है, इस दौरान आप भारत के नागरिक होते हुए भी पाकिस्तान का समर्थन कर रहे है या पाकिस्तान के समर्थन में भाषण बाजी कर रहे है, इसके अलावा संसद ने जिस बात की मनाही की हो और वो काम आप कर रहे हो, तो इस स्थिति में आपकी नागरिकता छीनी जा सकती है या फिर आपको नागरिकता से बर्खास्त किया जा सकता है।
  • तीसरी – जैसे की आप विदेशी नागरिक है, भारत आए और 7 साल बिना रहे फर्जी दस्तावेज बनवाकर नागरिकता हासिल कर लिए, तो इस स्थिति में पकड़े जाने पर आपको नागरिकता से वंचित किया जा सकता है और धोखाधड़ी का केस लगेगा अलग से। इसके अलावा अगर आप भारत के नागरिक है पिछले 07 साल से विदेश में रह रहे है तब भी आपको भारतीय नागरिकता से वंचित किया जा सकता है।

किसी व्यक्ति की नागरिकता खत्म हो जाने का मतलब ये बिल्कुल नहीं है की उसे देश से निकाल दिया जाएगा। आप रह सकते है, कमा-खा सकते है। जीवन जीने का अधिकार नहीं छीना जा सकता। हां, आप से दो तीन तरह के अधिकार छीन लिए जाएंगे। जैसे – राजनैतिक अधिकार, मतलब न तो आप चुनाव लड़ सकते और न ही वोट डाल सकते। कुछ कानूनी अधिकार, जैसे – बड़े पदों पर आप भर्ती नहीं हो सकते या ऐसा कहे की सरकारी नौकरी नहीं कर सकते, क्योंकि आपका आधार कार्ड ही नहीं बनेगा। इसी तरह से और भी कई चीजे हैं।

नोट: आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की नागरिकता लेने-देने से संबंधित विस्तृत जानकारियों का उल्लेख मूल संविधान में नहीं किया गया था, इसका पहली बार उल्लेख नागरिकता अधिनियम 1955 में किया गया

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