आज के इस लेख में सांसद का निलंबन संसद से किस नियम के तहत किया जाता है, के बारे में जानेंगे? साथ ही किस प्रकार से निलंबन को वापस लिया जाता है, उसके बारे में भी जानेंगे।
तो आइए जानते हैं……
सांसद का निलंबन
जैसा की हम सभी जानते है कि भारतीय संसदीय प्रणाली में संसद के तीन सत्र होते हैं- बजट, मानसून और विंटर। इसे शार्ट फॉर्म में याद रखने के लिए हम BMW (B-बजट, M-मानसून, W-विंटर) नाम से जानते हैं। अब जैसे लोकसभा है, तो लोकसभा में किसी भी सत्र को सुचारु रूप से चलाने की जिम्मेदारी लोकसभा अध्यक्ष की होती है। अब जिम्मेदारी मिली है, तो उसका कर्तव्य होता है कि वह सत्र को सुचारु रूप से चलाए।
ठीक है वह चलाने की कोशिश करता है और चलाता भी है। लेकिन मान लीजिये किसी वजह से सत्र को चलाने में बाधा उत्पन्न हो रही है। अब आपके मन में प्रश्न उठेगा की बाधा कैसे उत्पन्न हो रही है, संसद के अंदर तो सांसद ही है न। बाधा ऐसी की मान लीजिये कि कोई ऐसा सांसद है, जो उग्र किस्म का है और सदन के नियम और कानून को न मानते हुए सदन की कार्यवाही में बाधा उत्पन्न कर रहा है।
तो अब इस स्थिति में लोकसभा अध्यक्ष क्या करे, तो इसके लिए नियम और कानून बनाए गए हैं कि लोकसभा अध्यक्ष सदन की कार्यवाही को प्रभावित करने वाले और नियम और कानून को न मानने वाले सांसद को निलंबित कर सकता है। तो आइए उन नियम और कानून के बारे में जान लेते हैं।
किस नियम के तहत लोकसभा अध्यक्ष, सांसद को निलंबित कर सकता है ?
नियम संख्या 373
नियम संख्या 373 में इस बात का उल्लेख किया गया है कि अगर लोकसभा अध्यक्ष को ऐसा प्रतीत होता है कि किसी सांसद सदस्य का सदन में बर्ताव सदन को सुचारु रूप से चलाने में पूर्ण रूप से बाधक बन रहा है, तो वह उस सदस्य को त्वरित रूप से सदन से बाहर करा सकता है। इस नियम के तहत सांसद को उसी दिन के कुछ समय या पूरे दिन के लिए कार्यवाही में सम्मिलित होने से रोका जा सकता है।
इस कार्यवाही के पश्चात भी अगर सदस्य नहीं संभलें या मामला अति गंभीर हो रहा है, तो ऐसा प्रतीत होता देख लोकसभा अध्यक्ष नियम संख्या 374 और 374(A) के अंतर्गत कदम उठा सकते हैं।
नियम संख्या 374
नियम संख्या 374 के तहत लोकसभा अध्यक्ष संसद की गरिमा में बाधा पहुँचाने वाले सदस्य या सदस्यों के नाम का ऐलान निलंबन के लिए कर सकते हैं। जैसे कि किसी ने आसन की मर्यादा तोड़ी हो या नियमों का उल्लंघन किया हो। इसके अलावा जिसने सोच-समझकर या जानबूझकर सदन की कार्यवाही में बाधा पहुँचाई हो।
सांसद/सांसदों के नाम के ऐलान के दौरान लोकसभा अध्यक्ष एक प्रस्ताव सदन के पटल पर रखते हैं। इस प्रस्ताव में मर्यादा का उल्लंघन करने वाले या हो-हल्ला मचाने वाले सांसद का नाम लेते हुए उनके निलंबन की बात कही जाती है। इसी प्रस्ताव में निलम्बन की अवधि का भी जिक्र होता है। निलंबन की अवधि अधिकतम चल रहे सत्र की समाप्ति तक की हो सकती है।
निलम्बित सदस्य को निलम्बन की अवधि में सदन की कार्यवाही में किसी प्रकार से सम्मिलित होने का अधिकार नहीं रहता। हां, सदन चाहे तो वह किसी भी समय इस प्रस्ताव को रद्द करने का आग्रह कर सकता है।
नियम संख्या 374(A)
इसे स्वतः निलंबन का नियम भी कहा जाता है। इस नियम के तहत अगर कोई सदस्य अध्यक्ष के आसन के निकट आकर अथवा सदन में नारे लगाकर या अन्य किसी भी प्रकार से सभा की कार्यवाही में लगातार और जानबूझकर सभा के नियमों का दुरूपयोग करते हुए बाधा उत्पन्न करता है, तो इस प्रकार की घोर अव्यवस्था उत्पन्न किए जाने की स्थिति में अध्यक्ष द्वारा सदस्य का नाम लिए जाने पर ही वह सदन की सेवा से लगातार पांच बैठकों के लिए या चल रहे सत्र की शेष अवधि के लिए, जो भी पहले आ जाए, तक के लिए स्वत: निलंबित हो जाता है।
पहली बार इस नियम का उपयोग 2013 में लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने किया था।
सांसद सदन में क्या नहीं कर सकते हैं?
राज्यसभा और लोकसभा में सांसदों को संसदीय शिष्टाचार के कुछ नियमों का पालन करना जरुरी होता है जैसे कि….
- सांसदों को दूसरे के भाषण को बाधित नहीं करना चाहिए।
- बहस के दौरान टिप्पणी करने से कार्यवाही में रोक-टोक नहीं करना चाहिए।
- विरोध के नए रूपों के कारण 1989 में इन नियमों को इसमें शामिल किया गया।
- अब सदन में नारेबाजी, तख्तियां दिखाना, विरोध में दस्तावेजों को फाड़ने और सदन में कैसेट या टेप रिकॉर्डर बजाने जैसी चीजों की मनाही है।
सांसद के निलंबन को खत्म करने की प्रक्रिया
स्पीकर या लोकसभा अध्यक्ष को किसी सांसद को निलंबित करने का अधिकार है, लेकिन निलंबन को वापस लेने का अधिकार उसके पास नहीं है। यह अधिकार सदन के पास होता है। सदन चाहे तो एक प्रस्ताव के जरिए सांसदों का निलंबन वापस ले सकता है।
क्या निलंबन के दौरान सांसदों को सैलरी मिलती है ?
हां, सदन में व्यवधान पैदा करने की वजह से निलंबित किए गए सांसदों को पूरा वेतन मिलता है। केंद्र में लगातार सरकारों द्वारा ‘काम नहीं, वेतन नहीं’ की नीति दशकों से विचाराधीन है। हालांकि, अभी तक इसे पेश नहीं किया गया है।
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