Chandrayaan Moon Mission: चंद्रयान-3 | चंद्रयान-1 से लेकर अब तक की पूरी जानकारी, जो आप जानना चाहते हैं

आज के इस लेख में हम चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) के बारे में जानेंगे, साथ ही चंद्रयान-3 के माध्यम से हम चंद्रयान-2 और चंद्रयान-1 के बारे में भी जानेंगे। यानी कि Chandrayaan Moon Mission के अंतर्गत चंद्रयान-1 से लेकर चंद्रयान-3 तक के बारे में विस्तार से जानेंगे

तो आइए जानते हैं……

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र से चंद्रयान-3 को सफलतापूर्वक लांच किया गया। 2019 में चंद्रयान-2 की चंद्रमा की सतह पर सफल लैंडिंग ना हो पाने की वजह से सभी को चंद्रयान-2 के अनुवर्ती मिशन चंद्रयान-3 का बेसब्री से इंतजार था।

चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3)

चंद्रयान-3, चंद्रयान-2 का अनुवर्ती मिशन है, जो कि 2019 में लांच किया गया था। चंद्रयान-2 की चंद्रमा की सतह पर सफल लैंडिंग नहीं हो सकी थी, इस वजह से Chandrayaan-2 के उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए Chandrayaan-3 लांच किया गया। इस मिशन के अंतर्गत भारत, चांद की सतह पर एक लैंडर उतारेगा। इस लैंडर में एक रोवर भी है, जो लैंडर से निकलकर चंद्रमा की सतह पर घूमेगा और वहां स्थिति के अनुरूप कुछ प्रयोग करेगा।

  • लैंडर चांद पर एक लूनार दिन तक रहेगा। एक लूनार दिन धरती के 14 दिन के बराबर होता है।
  • Chandrayaan-3 लॉन्च करने में जो 4 साल का अंतर आया, उसकी सबसे बड़ी वजह रही बीच के 2 सालों में कोरोना महामारी के प्रभाव का बने रहना।

चंद्रयान-3 का उद्देश्य

  • चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग करना
  • चंद्रमा पर रोवर को भ्रमण करते हुए प्रदर्शित करना और
  • यथास्थित वैज्ञानिक प्रयोग करना

चंद्रयान-3 मिशन के उद्देश्यों में सबसे प्रमुख लैंडर की चंद्रमा की सतह पर सफल लैंडिंग कराना है, जो कि चंद्रयान-2 मिशन के दौरान नहीं हो पाई थी। चंद्रयान-2 की लैंडिंग के दौरान हुई गलती से सीखते हुए और चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग कराने के लिए चंद्रयान-3 के लैंडर की तकनीकी में कुछ परिवर्तन किए गए।

चंद्रयान-3 के लैंडर में लगी आधुनिक तकनीकी

  1. अल्टीमीटर: ताकि ऊंचाई का पता किया जा सके।
  2. वेलोसीमीटर्स: चंद्रमा की सतह पर उतरते समय लैंडर की गति मापेगा।
  3. इनर्शियल मेजरमेंट: चंद्रमा की सतह पर उतरते समय लैंडर की गति और संतुलन मापेगा।
  4. प्रोपल्शन सिस्टम: लैंडर में लगे थ्रस्टर्स की सफलता की जांच करेगा।
  5. नेवीगेशन, गाइडेंस और कंट्रोल: पहले से तय स्थान पर सही से लैंडिंग कराने के लिए दिशा, गाइडेंस और नियंत्रण करने वाले सॉफ्टवेयर्स की जांच करेगा।
  6. हजार्ड डिटेक्शन एंड एवॉयडेंस: खतरों से बचने के लिए लैंडर में यंत्र लगाए गए हैं। लैंडिंग के दौरान उनकी जांच करना तथा उनके एल्गोरिदम का पता लगाना इनका प्रमुख कार्य होगा। यानी की लैंडिंग लेग मैकेनिज्म की जांच करना इनका प्रमुख कार्य होगा।

तीन हिस्सों में तैयार किया गया है चंद्रयान-3

  • प्रोपल्शन मॉड्यूल: अंतरिक्ष मिशन पर जाने वाले यान का यह पहला हिस्सा होता है, जिसे प्रोपल्शन मॉड्यूल कहा जाता है। यह किसी भी स्पेस शिप को उड़ान भरने की ताकत देता है।
  • लैंडर मॉड्यूल: चंद्रयान-3 का यह दूसरा और महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे ही चंद्रमा की सतह पर उतारा जाएगा। रोवर को चंद्रमा की सतह तक सही तरीके से पहुंचाने की जिम्मेदारी इसी की होती है।
  • रोवर: चंद्रयान-3 का तीसरा हिस्सा है रोवर। यह लैंडर के जरिए चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। उसके बाद चंद्रमा की सतह पर मूवमेंट करते हुए यथास्थिति जानकारी जुटाकर धरती पर भेजेगा।

चंद्रयान-3 की यात्रा

चंद्रयान-3 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र से 14 जुलाई को 02:35 बजे लॉन्च किया गया। लांचिंग के बाद लांच व्हीकल मार्क-3 रॉकेट (LVM-3) के जरिए सैटेलाइट को 100 से 160 किलोमीटर की लोअर अर्थ ऑर्बिट में छोड़ा जाएगा। इसके बाद चंद्रयान-3 का प्रोपल्शन माड्यूल उसे लेकर धरती के चारों तरफ अलग-अलग समय पर 5 चक्कर लगाएगा। पांचों चक्कर पूरा करने के बाद एक मोमेंट पर चंद्रयान-3 धरती की ऑर्बिट से निकलकर चांद की ऑर्बिट में पहुंच जाएगा और उसका चक्कर लगाना शुरु कर देगा।

लैंडिंग से पहले चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर ऊपर के गोलाकार ऑर्बिट में चक्कर लगाएगा। इसके बाद चंद्रयान-3 का इंटीग्रेटेड माड्यूल 100*30 किलोमीटर की अंडाकार कक्षा में आएगा। जहां पर प्रोपल्शन मॉड्यूल चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल को छोड़ देगा। छोड़ने के बाद प्रोपल्शन मॉड्यूल उसी कक्षा में चक्कर लगाता रहेगा, जबकि लैंडर चांद की सतह पर उतरना शुरू कर देगा।

चंद्रमा की सतह पर कैसे उतरेगा चंद्रयान-3 का लैंडर ?

चंद्रयान-3 के लैंडर में इस बार 4 इंजन लगे हैं। इन्हें थ्रस्टर्स कहते हैं। हर इंजन 800 न्यूटन की पूजा पैदा करता है। इसके अलावा लैंडर में चारों दिशाओं में कुल 8 छोटे इंजन है, जो यान को दिशा देने और घुमाने में मदद करेंगे। इन्हें लैंडर प्रोपल्शन सिस्टम कहते हैं। इनकी मदद से लैंडर चांद की सतह पर 2 मीटर प्रति सेकंड की गति से नीचे उतरेगा। लेकिन सतह पर उतरते समय 0.5 मीटर प्रति सेकंड की गति से होवर (हवा में मंडराना) करेगा। यानी जैसे जमीन के ऊपर हेलीकॉप्टर धीरे-धीरे उतरता है।

सेंसर की मदद से जगह खोजकर उतरेगा लैंडर

चंद्रयान-3 के लैंडर में लैंडिंग की जगह का नेविगेशन और कॉर्डिनेट्स पहले से फीड है। सैकड़ों सेंसर लगे हैं, जो लैंडिंग और अन्य कार्यों में मदद करेंगे। ये सेंसर लैंडर की लैंडिंग के समय ऊंचाई, लैंडिंग की जगह, गति, पत्थरों से लैंडर को बचाने में मदद करेंगे। चंद्रयान-3 चांद की सतह पर 7 किलोमीटर की ऊंचाई से ही लैंडिंग के लिए एक्टिव हो जाएगा। 2 किलोमीटर की ऊंचाई पर आते ही इसके सेंसर काम करने लगेंगे। सेंसर के अनुसार ही लैंडर अपनी दिशा, गति और लैंडिंग की जगह का निर्धारण करेगा।

कितने दिन काम करेंगे लैंडर और रोवर

इसरो के वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि लैंडर और रोवर चंद्रमा पर 14 दिनों तक काम करेंगे। हो सकता है कि इससे ज्यादा या कम भी करें।

कैसे स्थापित होगा संपर्क

रोवर अपना डेटा सिर्फ लैंडर को भेजेगा। लैंडर, रोवर और अपना डेटा सीधे IDSN यानी इंडियन डीप स्पेस नेटवर्क से साझा करेगा। इमरजेंसी की हालात में चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से संपर्क साधा जा सकता है। चंद्रमा के चारों ओर चक्कर लगा रहा प्रोपल्शन मॉड्यूल सीधे IDSN से संपर्क स्थापित करेगा।

चंद्रमा पर जाकर क्या करेगा चंद्रयान-3 ?

  • चंद्रमा पर पड़ने वाली रोशनी और रेडिएशन का अध्ययन करेगा।
  • चंद्रमा की थर्मल कंडक्टिविटी और तापमान की स्टडी करेगा।
  • लैंडिंग साइट के आस-पास भूकंप गतिविधियों की स्टडी करेगा।
  • प्लाज्मा के घनत्व और उसके बदलावों का अध्ययन करेगा।

चंद्रयान-3 कहां से लांच किया गया?

चंद्रयान-3 को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र से 14 जुलाई को 02:35 बजे लॉन्च किया गया।

चंद्रयान-3 मिशन का बजट

इसरो ने पहला चंद्रयान 2008 में भेजा था, जिसमें कुल 386 करोड़ रुपए का खर्चा आया था। इसके बाद 2019 में इसरो ने चंद्रयान-2 भेजा, जिसमें 978 करोड़ रुपए का खर्चा आया। वहीं चंद्रयान-3 की बात करें तो इसको भेजने में 615 करोड़ रुपए का खर्चा आया, जिसमें चंद्रयान के लैंडर, रोवर और प्रोपल्शन मॉड्यूल को तैयार करने में कुल 250 करोड़ रुपए का खर्चा हुआ, इसके अलावा लांच सर्विस सहित अन्य काम में 365 करोड रुपए खर्च हुआ।

गौर करने वाली बात यह है कि जहां चंद्रयान-2 को भेजने में 978 करो रुपए का खर्चा आया था, वहीं चंद्रयान-3 को भेजने में 615 करोड़ रुपए का खर्चा हुआ यानी कि 363 करोड रुपए का अंतर है। अभी तक तीन चंद्रयान मिशन पर इसरो 1979 करोड़ रुपए खर्च कर चुका है।

चंद्रयान-3 की लैंडिंग के लिए चुनौतियां

चंद्रयान-3 के लैंडर की चांद की सतह पर लैंडिंग के लिए जरूरी है कि वहां सूरज निकला हो। लैंडर के लिए सूर्य का प्रकाश जरूरी है। चांद पर 14-15 दिन सूरज निकलता है और इसी तरह 14-15 दिन सूरज नहीं निकलता है।

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