कोलकाता की जगह नई दिल्ली को भारत की राजधानी कब और क्यों बनाया गया (Delhi Bharat ki Rajdhani kab Bani)?

कोलकाता की जगह नई दिल्ली को भारत की राजधानी बनाया गया

आज के इस लेख में हम जानेंगे कि कोलकाता की जगह नई दिल्ली को भारत की राजधानी कब व क्यों बनाया गया?  इसके संपूर्ण विवरण के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

तो आइये जानते हैं….

देश की राजधानी नई दिल्ली

आज हमारे देश की राजधानी नई दिल्ली का जन्म दिन है। आज से नई दिल्ली 91वें साल की हो गयी। आज ही के दिन 13 फरवरी 1931 को देश की राजधानी नई दिल्ली का उद्घाटन हुआ था। ये तो हम जानते है कि हमारे देश की राजधानी नई दिल्ली है, लेकिन ये नहीं जानते कि बनी कैसे। तो आइये आज इसके बारें में विस्तृत रूप से जानते हैं।

पहले दिल्ली का थोड़ा इतिहास समझ लेते हैं

इंद्रप्रस्थ।

दिल्ली का सबसे प्राचीन उल्लेख महाभारत महापुराण में इंद्रप्रस्थ के रूप में मिलता है। इंद्रप्रस्थ महाभारत काल में पांडवों की राजधानी थी। हरियाणा के आसपास हुई खुदाई से इस बात के प्रमाण मिले हैं कि इसके इतिहास का प्रारम्भ सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। इस हिसाब से दिल्ली का इतिहास बेहद पुराना हुआ। ऐसा माना जाता है कि आज कि आधुनिक दिल्ली बनने से पहले यह सात बार उजड़ी और फिर बसी। दिल्ली पर शासन करने वालों ने अपने समय पर अपने हिसाब से दिल्ली में बहुत सारे परिवर्तन किये। पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली का अंतिम हिन्दू शासक माना जाता है।

दिल्ली का अंतिम हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान।

1206 के बाद दिल्ली सल्तनत की राजधानी बनी दिल्ली। इस पर खिलजी, तुगलक, सैयद और लोदी वंश के अलावा भी अन्य कई वंशों के शासकों ने शासन किया। मुग़ल काल में अकबर अपने शासन काल के दौरान राजधानी दिल्ली से आगरा ले गया था, लेकिन उसके पोते शाहजहाँ ने सत्रहवीं सदी के मध्य में वापस राजधानी आगरा से दिल्ली बसाई। उस समय इसे शाहजहाँनाबाद या पुरानी दिल्ली के नाम से जाना जाता था।

बहादुर शाह जफ़र

दिल्ली के आखिरी मुग़ल शासक थे बहादुर शाह जफ़र। 1857 के सिपाही विद्रोह के दौरान उन्होंने भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया था, लेकिन इस विद्रोह में हम अंग्रेजों से हार गए और दिल्ली पर ब्रिटिश शासन की हुकूमत हो गई। 1857 के प्रथम सवतंत्रता संग्राम आंदोलन को दबाने के बाद अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफ़र को बंदी बनाकर निर्वासन के लिए रंगून (वर्तमान म्यांमार) भेज दिया और इसी निर्वासन के दौरान 1862 में रंगून में ही उनकी मृत्यु हो गयी। अब भारत पूरी तरह से अंग्रेजों के अधीन हो गया था।

राजधानी कोलकाता से दिल्ली ले जाने की कहानी

शुरुआत में अंग्रेजों ने कलकत्ता (वर्तमान में कोलकाता) से ही शासन संभाला, लेकिन ब्रिटिश शासन काल के अंतिम समय के दौरान अंग्रेजों को ऐसा लगने लगा कि यहाँ पूर्व में बैठकर (कोलकाता भारत के पूर्वी भाग में बंगाल की खाड़ी के पास है) अब शासन चलाना ठीक नहीं है, क्योंकि पीटर महान (पीटर महान रूसी सम्राट था इसी की छत्रछाया में रूस रूढ़िवाद और पुरानी परम्पराओं की बेड़िया को तोड़कर महान यूरोपीय शक्ति के रूप में उभरा।) के नेतृत्व में जो विचारधारा पूरे यूरोप में फ़ैल गयी थी उसका असर अब भारतीय उपमहाद्वीप में भी होने लगा था।

वाइसरॉय लॉर्ड हार्डिंग

इस डर के अलावा सम्पूर्ण भारत साथ ही भारत के पड़ोसी देश अफगानिस्तान और ईरान पर भी पूर्ण रूप से नियंत्रण और सामंजस्य बैठाना कठिन हो रहा था। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन वाइसरॉय लॉर्ड हार्डिंग के मन में ख्याल आया कि अब वह समय आ गया है जब हमें राजधानी कोलकाता से दिल्ली ले जाना चाहिए। इसी दौरान ब्रिटेन के महाराजा जॉर्ज पंचम अपनी रानी मैरी के साथ भारत आने वाले थे, क्योंकि जॉर्ज पंचम और उनकी रानी मैरी का भारत के राजा और महारानी के रूप में अभिषेक होना था।

ब्रिटेन के महाराजा जॉर्ज पंचम अपनी रानी मैरी के साथ

तो वाइसरॉय लॉर्ड हार्डिंग ने उनके स्वागत और अभिषेक के लिए दिल्ली दरबार का आयोजन किया। अभिषेक के बाद दरबार शुरू हुई। इसी आयोजन में हार्डिंग ने जॉर्ज पंचम के समक्ष यह प्रस्ताव रखा कि राजधानी कोलकाता से दिल्ली ले जाना चाहिए, ताकि शासन सुचारु रूप से चल सके। इस पर विचार करने के बाद उन्होंने देश की राजधानी दिल्ली ले जाने के आदेश दे दिए।

क्या सोचकर अंग्रेज राजधानी कोलकाता से दिल्ली ले जाने के इच्छुक हुए?

  • पीटर महान की विचारधारा का प्रभाव भारतीय उपमहाद्वीप में बढ़ रहा था इस बात से वो डर गए थे।
  • भारत के पूर्वी क्षेत्र में बैठकर देश को सही तरीके से चलाने में दिक्कत महसूस कर रहे थे, क्योंकि अखंड भारत बहुत बड़ा था।
  • दिल्ली उत्तरी भारत में आता है और यहाँ से शासन करना ज्यादा आसान था।
  • दिल्ली में बैठकर पूरे देश की निगरानी सही तरीके से की जा सकती थी।
  • अंग्रेजों के समय भी कई राजाओं ने दिल्ली को ही राजधानी बनाकर अच्छे तरीके से शासन चलाया था, इस बात को वो समझ गए थे।

12 दिसंबर 1911 को दिल्ली दरबार के दौरान कोरोनेशन पार्क और किंग्सवें कैम्प में वाइसरॉय के निवास के लिए नींव रखते हुए तत्कालीन भारत के राजा जॉर्ज पंचम और उनकी रानी मैरी ने घोषणा कर दी कि देश की राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित की जायेगी। अगले वर्ष 01 अप्रैल 1912 को दिल्ली भारत की राजधानी है इसकी औपचारिक घोषणा करते हुए राजधानी दिल्ली शिफ्ट करने पर फैसला हुआ।

दिल्ली शहर के निर्माण योजना की जिम्मेदारी ब्रिटिश वास्तुकार सर एड्विन्स लैंडसियर लूट्यन्स और सर हर्बर्ट बेकर को दी गयी। ये दोनों दिल्ली के कई स्मारकों के मुख्य शिल्पकार थे। इनमें सबसे प्रमुख नेशनल वॉर मेमोरियल (वर्तमान इंडिया गेट) और वाइसरॉय हाउस (वर्तमान राष्ट्रपति भवन) है। इसी वजह से दिल्ली को लूट्यन्स की दिल्ली भी कहा जाता है। दिल्ली शहर को बसाने में गजब की वास्तुकारिता दिखाई थी लूट्यन्स ने। इनकी उस समय की नई दिल्ली की अभिकल्पना को आज भी सराहा जाता है।

भारत की नई राजधानी को नाम इसके उद्घाटन से कुछ साल पहले 31 दिसंबर 1926 को मिला। नई राजधानी का नाम नई दिल्ली चयन करने से पहले रायसीना, इंपीरियल दिल्ली और दिल्ली साउथ जैसे नामों पर भी चर्चा हुई थी, लेकिन तत्कालीन वाइसरॉय लॉर्ड इरविन राजधानी के नाम में दिल्ली शब्द रखना चाहते थे, इसलिए उन्होंने नई दिल्ली नाम पर मोहर लगाई और वाइसरॉय के निर्णय लेने के बाद सरकारी अधिसूचना जारी हुई। 

नई दिल्ली।

देखिये आप यहाँ कन्फ्यूज़ मत होइएगा। मामला ये है कि नई दिल्ली का कांसेप्ट नई राजधानी से आया है। दिल्ली एक महानगर है और नई दिल्ली, दिल्ली के 11 जिलों में से एक प्रमुख जिला है। मतलब नई दिल्ली, दिल्ली महानगर के अंदर आता है। यह दिल्ली के दक्षिणी हिस्से में स्थित है। ये तो आप सभी जानते ही होंगे कि दिल्ली यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है।

वास्तव में नई दिल्ली के निर्माण का कार्य प्रथम विश्वयुद्ध के बाद शुरू हुआ। इसलिए नई राजधानी की घोषणा करने के 20 साल बाद निर्माण कार्य पूरा हो पाया और 13 फरवरी 1931 को तत्कालीन वाइसरॉय लॉर्ड इरविन ने नई दिल्ली का उद्घाटन किया।

आजादी के बाद दिल्ली

15 अगस्त 1947 को आजाद होने के बाद नई दिल्ली को सीमित मात्रा में शक्ति प्रदान की गयी। यहाँ का प्रशासन भारत सरकार द्वारा नियुक्त मुख्य आयुक्त को चलाने को दिया गया। 1966 में दिल्ली को केंद्रशासित प्रदेश के रूप में बदल दिया गया तथा मुख्य आयुक्त को उपराज्यपाल के रूप में बदलते हुए सारी शक्तियां इन्हे सौंप दी गयी। 69वें संविधान संशोधन अधिनियम 1991 के अंतर्गत दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के रूप में बदल दिया गया तथा विधानसभा का प्रावधान लाया गया।

इस हिसाब से अब केंद्रशासित प्रदेश में चुनी हुई सरकार को प्रदेश चलाने का अधिकार मिल गया। लेकिन केंद्र सरकार ने कानून और व्यवस्था पर पूर्ण नियंत्रण अपने पास रखा। इसी वजह से तो केंद्र और दिल्ली सरकार की बीच-बीच में ठन जाती है। इसके बाद 70वें संविधान संशोधन अधिनियम के अंतर्गत दिल्ली विधानसभा के सदस्यों को राष्ट्रपति के निर्वाचन मंडल में शामिल किया गया।

बीच में दो शब्द आए उनके बारे में जान लेते हैं

  • कोरोनेशन पार्क- दिल्ली में स्थित एक पार्क है। यह पार्क इसलिए इतना प्रसिद्द है, क्योंकि इसी पार्क में ब्रिटेन के राजा, रानियों का स्वागत किया जाता था और उनका अभिषेक भी यही होता था।
    कोरोनेशन पार्क
  • किंग्सवें कैम्प- यह चाँदनी चौक क्षेत्र में आता है। इसका नाम किंग्सवें कैम्प इसलिए पड़ा, क्योंकि अपने अभिषेक के बाद राजा जॉर्ज पंचम अपनी रानी मैरी के साथ चाँदनी चौक के इसी रास्ते में निकले थे। वो निकले इसलिए थे कि प्रजा उनके दर्शन कर ले, साथ ही ये भी देख ले कि अंग्रेजों की शान-शौकत किस प्रकार की होती है।

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