पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत संबंधी प्रावधान | पुलिस हिरासत के बारे में क्या कहता है कानून?

आज के इस लेख में हम 15 दिन से अधिक पुलिस हिरासत पर रोक लगाने वाले सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले के बारे में जानेंगे कि यह क्या है और वर्तमान में सीबीआई ने पुलिस हिरासत के दिनों में बढ़ोतरी करने की सुप्रीम कोर्ट में जो अपील की है उसके बारे में जानेंगे। साथ ही हम पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत के बारे में भी जानेंगे। (Police Custody, Judicial Custody)

तो आइए जानते हैं……

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने एक आरोपी की अतिरिक्त हिरासत की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। जांच एजेंसी का कहना है कि उसे नई हिरासत की जरूरत है, क्योंकि पुलिस हिरासत के बावजूद सीबीआई उससे पूछताछ नहीं कर सकी।

इस पर आरोपी ने अदालत की 30 साल पुरानी मिसाल का हवाला देते हुए पुलिस हिरासत की इस नई मांग का विरोध किया है। आरोपी ने कहा कि गिरफ्तारी की तारीख से 15 दिनों की अवध से अधिक की पुलिस हिरासत की अनुमति नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय जांच ब्यूरो बनाम अनुपम जी कुलकर्णी मामले में कहा था कि गिरफ्तारी की तारीख से 15 दिन बीत जाने के बाद किसी आरोपी को पुलिस हिरासत में नहीं रख सकती है।

पुलिस हिरासत के बारे में क्या कहता है कानून – What does the law say about police custody?

यद्यपि मजिस्ट्रेट यांत्रिक रूप से लगभग हर मामले में पुलिस हिरासत प्रदान करते हैं, लेकिन कानून केवल विशेष परिस्थितियों में पुलिस हिरासत की अनुमति देता है। पुलिस हिरासत एक मजिस्ट्रेट द्वारा उन कारणों के लिए दी जाती है ताकि आरोपी से पूछताछ कर उनका उल्लेख आदेश में दर्ज किया जा सके। यानी कि हिरासत के दौरान आपने जो कुछ भी पूछताछ की उसका विवरण आदेश में लिखित दर्ज होना चाहिए।

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 यह नियंत्रित करती है कि यह प्रक्रिया कैसे काम करेगी। यह मजिस्ट्रेट को ऐसी हिरासत में अभियुक्त की हिरासत को पूरे 15 दिनों से अधिक की अवधि के लिए अधिकृत करने की शक्ति से रोकती है। यानी कि मजिस्ट्रेट जैसा उचित समझता है, उसके हिसाब से 1 दिन से लेकर अधिकतम 15 दिनों तक की पुलिस हिरासत की अनुमति दे सकता है। 15 दिन से अधिक नहीं।

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार इस प्रावधान का उद्देश्य आरोपी को उन तरीकों से बचाना है, जो कुछ अतिउत्साही और बेईमान पुलिस अधिकारियों द्वारा अपनाए जा सकते हैं।

गिरफ्तारी के समय ही पुलिस हिरासत की अनुमति क्यों दी जाती है?

यह कानून किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने की राज्य की शक्ति पर एक नियंत्रण है। इस वजह से जब किसी आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, तो गिरफ्तार किए जाने से 15 दिनों तक ही उसे पुलिस हिरासत में रखा जा सकता है, वो भी कोर्ट के आदेश से। यानी कि यदि पुलिस द्वारा किसी आरोपी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, तो गिरफ्तार किए जाने के 24 घंटे के अंदर उसे कोर्ट में पेश करना होगा और उससे अतिरिक्त पूछताछ और सबूत इकट्ठा करने के लिए मजिस्ट्रेट से पुलिस हिरासत की मांग की जाएगी।

15 दिन की पुलिस हिरासत के बाद जांच की अवधि के दौरान आगे की रिमांड केवल न्यायिक हिरासत में हो सकती है। न्यायिक हिरासत एक मजिस्ट्रेट की देखरेख में केंद्रीय जेल में होती है, जबकि पुलिस हिरासत एक आरोपी से पूछताछ करने के लिए पुलिस स्टेशन में होती है। हालांकि, 15 दिवसीय नियम के अपवाद का उपयोग करके इसे नियमित रूप से दरकिनार कर दिया जाता है।

अपवाद

यदि किसी आरोपी पर एक से अधिक मामलों में आरोप है, तो ये 15 दिवसीय पुलिस हिरासत का नियम उस पर लागू नहीं होगा। भले ही आरोपी एक मामले में न्यायिक हिरासत में हो, यदि उस पर दूसरा मामला दर्ज है, तो पुलिस उसे औपचारिक रूप से दूसरे मामले में गिरफ्तार कर सकती है और पुलिस फिर से हिरासत की मांग कर सकती है, जिससे उस पर 15 दिनों का एक और चक्र शुरू हो जाएगा।

पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में अंतर – Difference between Police Custody and Judicial Custody

  • पुलिस हिरासत में Police Bharti द्वारा नियुक्त जांच अधिकारी किसी व्यक्ति से पूछताछ कर सकता है, जबकि न्यायिक हिरासत में अधिकारियों को पूछताछ के लिए अदालत की अनुमति की आवश्यकता होती है।
  • पुलिस हिरासत में आरोपी को कानूनी सलाहकार का अधिकार है। इसके लिए आरोपी को पुलिस को सूचित करना होगा, तत्पश्चात पुलिस सुनिश्चित करती है।
  • न्यायिक हिरासत में व्यक्ति मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी के अधीन होता है और व्यक्ति से नियमित आचरण के लिए जेल मैनुअल मानना होता है।

15 दिन की हिरासत के बाद क्या होता है – What Happens After 15 Days Custody?

  • यदि जांच निर्धारित दिनों के अंदर पूरी नहीं होती है, तो सीआरपीसी (CrPC) आरोपी को जमानत पर रिहा करने की अनुमति देता है।
  • इस प्रकार की जमानत को आमतौर पर डिफॉल्ट जमानत या वैधानिक जमानत के नाम से जाना जाता है।
  • पहली सीमा 24 घंटे की होती है, यानी कि हिरासत में लिए गए आरोपी को 24 घंटे के अंदर कोर्ट में पेश करना होगा। कोर्ट तय करेगा कि आरोपी को पुलिस हिरासत में भेजा जाए या न्यायिक हिरासत में।
  • यदि कोर्ट आरोपी को 15 दिन की पुलिस हिरासत में भेजती है और उसके बावजूद भी पुलिस पर्याप्त साक्ष्य इकट्ठा करने में सफल नहीं हो पाती है और आरोपी को कोर्ट में पेश करती है, लेकिन पुलिस को लगता है कि अगले कुछ दिनों में हम पर्याप्त साक्ष्य इकट्ठा कर लेंगे, तो पुलिस कोर्ट से इस बात की दरख्वास्त करती है कि आरोपी को फिलहाल रिहा न किया जाए।
  • इस स्थिति में कोर्ट आरोपी को न्यायिक हिरासत में ट्रायल के रूप में भेज देती है।
  • इस इस ट्रायल की भी 60 से 90 दिनों की सीमा होती है।
  • यानी कि यदि 90 दिनों तक आरोपी पर दोष सिद्ध नहीं हुआ, तो उसे रिहा करना पड़ेगा।
  • माताबार परीदा बनाम उड़ीसा राज्य 1975 मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि 60 से 90 दिनों की अवधि के बीच जांच पूरी करना संभव नहीं है, तो गंभीर और भयानक प्रकार के अपराध में भी आरोपी जमानत पर रिहा होने का हकदार है।
  • इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जांच एजेंसी उचित समय के अंदर अपनी जांच तेजी से पूरी करें।

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