इजरायल और फिलिस्तीन के बीच विवाद की जड़ और वर्तमान में दोनों देशों की स्थिति

इजरायल और फिलिस्तीन के बीच विवाद की जड़

आज के इस लेख में हम Israel and Palestine – इजराइल और फिलिस्तीन के बीच विवाद की जड़ ( The root of the conflict between Israel and Palestine) के बारे में जानेंगे।

तो आइए जानते हैं…….

चर्चा में क्यों?

इजराइल में नेतन्याहू के प्रधानमंत्री बनते ही एक ऐसा बिल पेश होने की बात आई, जिसका उद्देश्य सुप्रीम कोर्ट को कमजोर करना है। इस बिल को ओवरराइड नाम दिया गया। यदि यह बिल पारित होता है, तो इजरायल की सीनेट, सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट सकेगी।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के पास अधिकार है कि यदि संसद ऐसे किसी बिल को पास करती है, जो नागरिक अधिकारों को हानि पहुंचाते हैं, तो कोर्ट के पास उन्हें पलटने की शक्ति है। लेकिन ओवरराइड बिल पास होते ही यह अधिकार अप्रत्यक्ष रूप से सुप्रीम कोर्ट से छिन जाएंगे। इतना ही नहीं इजराइल के न्याय मंत्री लेविन चाह रहे हैं कि जजों की नियुक्ति का अधिकार भी सत्ताधारी दल के पास ही हो।

लोगों में गुस्सा का सबसे बड़ा कारण सुप्रीम कोर्ट को कमजोर करने के लिए लाए जा रहे ओवरराइड बिल के प्रति है। इसी वजह से तेल अवीव में हजारों लोगों ने सरकार की इस नीति के खिलाफ प्रदर्शन किया।

इजराइल के कई हिस्सों में अरब मूल के लोग रहते हैं। यहां कई बार सार्वजनिक जगहों पर फिलिस्तीन के नेशनल फ्लैग नजर आते हैं। इस विरोध प्रदर्शन के दौरान भी कई फिलिस्तीनी झंडे देखे गए। ऐसे में जाहिर सी बात है कि देश इजराइल है और झंडे दिखेंगे फिलिस्तीन के, तो सरकार ऐसी घटनाओं को बर्दाश्त नहीं करेगी। इन कृत्यों के प्रति कड़ा कदम उठाते हुए इजराइल के होम मिनिस्टर बेन गिविर ने पुलिस को आदेश दिया कि वह मुल्क के किसी भी हिस्से में फिलिस्तीन के झंडे ना लगने दें। ऐसा करने वालों को जेल में डाल दें।

कट्टरपंथी माने जाने वाले बेन गिविर ने पुलिस से साफ कहा कि फिलिस्तीन के झंडे किसी भी कीमत पर नजर नहीं आने चाहिए, क्योंकि इससे यहूदियों की भावनाएं आहत होती हैं और लॉ एंड ऑर्डर खराब होता है। फिलिस्तीन का झंडा फहराना आतंकवाद माना जाएगा। गिविर के इस आदेश का इजराइल में रहने वाले अरब लोगों ने विरोध किया।

इजराइली सरकार ओवरराइड बिल क्यों लाना चाहती है?

मामला यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने इजराइल के आंतरिक मंत्री और धोखाधड़ी के दो बार दोषी आर्य डेरी की नियुक्ति के मामले में सुनवाई शुरू की। जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करने की घोषणा की, वैसे ही न्याय मंत्री लेविन की घोषणा भी हुई कि वह ओवरराइड बिल लाएंगे। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि कोर्ट उनकी नियुक्ति को गैरकानूनी करार देती है, तो सरकार ओवरराइड बिल लाने में और जल्दी करेगी, ताकि फैसले को पलट कर उन्हें फिर से बहाल किया जा सके।

इजराइल और फिलिस्तीन के बीच विवाद की जड़ क्या है – What is the root of the conflict between Israel and Palestine?

1948 में अंग्रेज बेलफोर कांसेप्ट लेकर आए। इसके तहत फिलिस्तीन को तोड़ा गया। 14 मई 1948 को इजराइल बना। फिलिस्तीन की कुल जमीन का 44% हिस्सा इजराइल और 48% फिलिस्तीन को दिया गया। यरूशलम को 8% जमीन देकर इसे UNO की टेरेटरी बना दिया गया। यानी इस पर ना तो फिलिस्तीन का हक था और ना इजराइल का। अरब देश अंग्रेजों के इस निर्णय से नाराज हो गए, तभी से इजराइल और फिलिस्तीन के बीच विवाद की स्थिति बनी ही रहती है।

वर्तमान में फिलिस्तीन और इजराइल की स्थिति – Current status of Palestine and Israel

48% से सिकुड़कर अब महज 12% जमीन पर है फिलिस्तीन

1948 के पहले 100% हिस्से पर फिलिस्तीन था। 14 मई 1948 को इजराइल बना और फिलिस्तीन महज 48% हिस्से में रह गया। इजराइल के हिस्से 44% जमीन आई। फिर इजराइल अपनी ताकत के दम पर फिलिस्तीनी जमीन पर कब्जा करता चला गया। आज हालात यह है कि फिलिस्तीन के पास केवल 12% जमीन है। इजराइल ने फिलिस्तीन पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए कुछ ऐसे नियम बनाए कि फिलिस्तीनी अपनी रक्षा के लिए सेना ही नहीं बना सकते। यहां तक की उन्हें हथियार रखने की भी इजाजत नहीं है।

फिलिस्तीन के अब दो हिस्से

1948, 1956, 1967, 1973 और 1982 में इजरायल और फिलिस्तीन के बीच झड़पें हुईं। इजराइल को भारी पड़ना ही था और वह पढ़ा भी। इजराइल हर बार फिलिस्तीन की जमीन पर कब्जा करता चला गया। अब अपने आप को ठगा महसूस करने की स्थिति में हो रहे पछतावे को लेकर फिलिस्तीन का कहना है कि हमको 1948 में मिला 44% हिस्सा ही दे दो, लेकिन इजराइल भला ऐसा क्यों करेगा? उसने जंग से यह जमीन हासिल की है।

फिलिस्तीन के लिए शर्म की एक बात और है। वो ये है कि फिलिस्तीन अपनी बची हुई 12% जमीन भी नहीं संभाल सका और उसके दो हिस्से हो गए। पहला वेस्ट बैंक और दूसरा गाजा पट्टी। वेस्ट बैंक में रहने वाले समस्या का शांतिपूर्ण हल चाहते हैं, वहीं गाजा पट्टी पर हमास का कब्जा है और वो जंग के जरिए इजराइल से अपनी जमीन वापस लेना चाहते हैं।

यरूशलम को लेकर विवाद क्यों?

यह शहर तीन धर्मों की आस्था का केंद्र है। ईसाई, मुस्लिम और यहूदी। ईसाई मानते हैं कि यरूशलम ही बेथलेहम है, जहां ईसा मसीह का जन्म हुआ था। यहूदी मानते हैं कि यहीं से उनके धर्म की शुरुआत हुई और मुस्लिमों का कहना है कि उनकी तीसरी सबसे पवित्र मस्जिद अल अक्सा यहीं है। बस इसी वजह से यरूशलम को लेकर तीनों धर्मों में विवाद की स्थिति बनी रहती है।

इजराइल-फिलिस्तीन विवाद में भारत का रुख – India’s stand in Israel-Palestine dispute

15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ। उसके बाद 15 मई 1948 को इजराइल अलग देश बना। सितंबर 1950 को भारत ने इजराइल को एक राष्ट्र की मान्यता दी। 29 जनवरी 1992 में भारत ने तेल अवीव में अपनी एम्बेसी खोली। सन 2000 में भारत के गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी इजराइल गए। 2017 में मोदी जी इजराइल जाने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। भारत और इजराइल के बीच कारोबार की बात करें, तो वर्तमान में दोनों के बीच 6 करोड़ डालर से अधिक का कारोबार है।

वहीं 1988 में भारत ने फिलिस्तीन को एक राष्ट्र के रूप में मान्यता दी। 1996 में गाजा पट्टी में अपना ऑफिस भी खोला, लेकिन हमास की हरकतें देखकर 2003 में इसे फिलिस्तीन सरकार के एडमिनिस्ट्रेटिव सर्कल में आने वाले रामल्ला में शिफ्ट कर दिया। आज भी यह यहीं है।

2011 में जब फिलिस्तीन को यूनेस्को का मेंबर बनाने की मांग उठी, तो भारत ने इसका समर्थन किया। 2015 में फिलिस्तीन का नेशनल फ्लैग UN में लगा, तब भी भारत मजबूती से उसके साथ खड़ा था। 2018 में नरेंद्र मोदी फिलिस्तीन की ऑफिशियल विजिट करने वाले भारत के पहले प्रधानमंत्री बने।

इस मुद्दे पर भारत सरकार कितना अलर्ट रहती है, इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि 2017 में जब मोदी जी इजराइल की यात्रा करने गए थे, तो वे चंद किलोमीटर दूर फिलिस्तीन भी जा सकते थे, लेकिन नहीं गए। इसके अगले साल उन्होंने अलग से फिलिस्तीन का दौरा किया। इसे ‘बैलेंसिंग एक्ट ऑफ इंडियन डिप्लोमेसी (भारतीय कूटनीति का संतुलित कार्य)’ कहा गया।

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