रुपया – भारतीय रुपया | रुपया शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया?

रुपया | भारतीय रुपया | रुपया शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया? रुपया का प्रतीक चिन्ह

आज के इस लेख में हम रुपया यानी कि भारतीय रुपया के बारे में जानेंगे कि रुपया शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया, इसका इतिहास क्या है? साथ ही रूपया के बारे में अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में भी चर्चा करेंगे।

तो आइये जानते है…..

रुपया (Rupee)

रुपया संस्कृत के रूप्यकम शब्द से उत्प्रेरित एक शब्द है जिसका अर्थ होता है चांदी का सिक्का। हिंदी और उर्दू में इसे रुपया ही कहा जाता है। भारत के अलावा पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, मॉरीशस और सेशल्स (सेशल्स- हिन्द महासागर में स्थित 115 द्वीपों वाला एक द्वीप समूह राष्ट्र है) में भी इसी मुद्रा का उपयोग किया जाता है। इंडोनेशिया की मुद्रा को रूपया और मालदीप की मुद्रा को रुपियाह कहा जाता है, जो दरअसल हिंदी शब्द रुपया का ही बदला हुआ रूप है।

भारत और पाकिस्तान के एक रुपया में सौ पैसे होते है। श्रीलंका के एक रुपया में 100 सेंट वही नेपाल के एक रुपया को सौ पैसे या चार सूकों या दो मोहरों मे विभाजित किया जाता है।

रूपया शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम किसने किया (Who first used the word Rupee)?

रूपया शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम शेर शाह सूरी ने ने अपने शासन काल के दौरान 1540-1545 में किया। शेर शाह सूरी ने अपने शासन काल के दौरान जो रुपया चलाया था वह एक चांदी का सिक्का था जिसका वजन लगभग 178 ग्रेन (11.534 ग्राम) था। अपने शासन काल के दौरान ही उसने ताँबे का सिक्का तथा सोने का सिक्का भी चलाया। ताँबे के सिक्के को दाम तथा सोने के सिक्के को मोहर कहा जाता था।

बाद में मुग़ल शासन के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में मौद्रिक प्रणाली को मजबूत बनाने के लिए तीनों सिक्को का मानकीकरण (मानकीकरण- तकनीकी मानकों का विकास करना एवं उन पर सहमत होना) किया गया।

सिक्का बनाने में किस धातु का उपयोग किया जाता है (Which metal is used to make coins)?

शेर शाह सूरी के द्वारा शुरू किया गया रुपया आज तक प्रचलन मे है। हालांकि, शेर शाह सूरी ने जो रुपया चलाया था वह चांदी का सिक्का था। उस समय एक चांदी का सिक्का बराबर एक रूपया होता था। 1944 में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI- Reserve Bank Of India) ने पहली बार एक रुपया का सिक्का निकाला था।

इन सिक्कों को बनाने में भारत सरकार द्वारा मूल्य के आधार समय-समय पर विभिन्न धातुओं का उपयोग किया जाता है। आजकल अधिकांशतः सिक्को को बनाने में फेरेटिक स्टेनलेस स्टील (83% आयरन और 17% क्रोमियम) का उपयोग किया जाता है।

रुपया का मूल्य (rupee value)

शेर शाह सूरी द्वारा चलाया गया रुपया आज भी प्रचलन में है, यहाँ तक की ब्रिटिश शासन के दौरान भी यह प्रचलन मे रहा, इस दौरान इसका वजन 11.66 ग्राम था और कुल भार में 91.7% तक शुद्ध चांदी थी। 19वीं शताब्दी के अंत मे रुपया प्रथागत (रीतिगत) ब्रिटिश मुद्रा विनिमय दर के अनुसार एक शिलिंग और चार पेंस के बराबर तथा एक पाउंड स्टर्लिंग का 1/15वां हिस्सा था।

एक शिलिंग 1550 के आसपास इंग्लैण्ड में इस्तेमाल किए जाने वाला सिक्का था। एक शिलिंग बराबर 0.66 भारतीय रुपया होता था। पाउंड स्टर्लिंग ब्रिटेन की मुद्रा है।

उन्नीसवीं सदी मे जब दुनिया में सबसे सशक्त अर्थव्यवस्थायें स्वर्ण मानक पर आधारित थीं उसी दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका और विभिन्न यूरोपीय उपनिवेशों में विशाल मात्रा मे चांदी के स्रोत मिलने के परिणामस्वरूप चांदी का मूल्य सोने के अपेक्षा काफी गिर गया। तब चांदी से बने रुपये के मूल्य मे भीषण गिरावट आयी। अचानक भारत की मानक मुद्रा से अब बाहर की दुनिया से ज्यादा खरीद नहीं की जा सकती थी। इस घटना को ‘रुपए की गिरावट “के रूप में जाना जाता है।

पहले 11.66 ग्राम वाले चांदी के रूपए को 16 आने या 64 पैसे या 192 पाई में बांटा जाता था लेकिन बदलते समय के साथ इसका दशमलवीकरण हो गया। 1869 में सीलोन (श्रीलंका) में, 1957 में भारत में और 1961 में पाकिस्तान में रुपया का दशमलवीकरण हुआ। इस प्रकार से भारतीय रुपया 100 पैसे में विभाजित हो गया। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा भारत में मुद्रा जारी की जाती है, जबकि पाकिस्तान मे यह स्टेट बैंक ऑफ पाकिस्तान के द्वारा जारी किया जाता है।

भारतीय रुपये का प्रतीक चिन्ह (Indian Rupee Symbol)

भारत सरकार द्वारा 2010 में एक रुपये के लिये प्रतीक चिह्न निर्धारित करने हेतु एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। आवेदित सभी प्रविष्टियों में से जूरी द्वारा पाँच डिजाइनों को चुना गया, जिनमें से अन्तिम रूप से आईआईटी के प्रवक्ता उदय कुमार के डिजाइन को रुपये के चिन्ह के रूप में चुना गया। इस प्रतीक चिह्न के आने से पहले रुपये को हिन्दी में दर्शाने के लिए ‘रु’ और अंग्रेजी में Re. (१ रुपया), Rs. और Rp. का प्रयोग किया जाता था।

भारतीय रुपया का प्रतीक चिन्ह

भारत में सिक्कों की ढ़लाई कहा की जाती है (Where are coins minted in India)?

भारत सिक्का अधिनियम 1906 (Coinage Act 1906) के तहत सिक्कों की ढ़लाई या मिंट किया जाता है। इस अधिनियम के तहत भारत सरकार सिक्कों की ढ़लाई और उसके सप्लाई की जिम्मेदारी भारतीय रिजर्व बैंक को देती है। पूरे भारत में सिक्कों की ढ़लाई चार जगहों पर की जाती है कोलकाता, नोएडा, मुंबई और हैदराबाद।

कैसे पता लगाए की कौन सा सिक्का भारत में किस जगह पर ढ़ाला गया है या मिंट किया गया है?

पहले तो ये जान लीजिये की सिक्के को ढ़ालना ही मिंट करना होता है, तो आप सिक्के को देखकर ये पता लगा सकते है कि कौन सा सिक्का भारत के किस जगह पर मिंट हुआ है। जैसा की आपने देखा ही होगा की हर सिक्के में उसके जारी होने का वर्ष डला रहता है। इसी वर्ष के नीचे बने चिन्ह को देखकर ये पता लगाया जा सकता है कि यह सिक्का कहा ढ़ाला गया है।

अगर किसी सिक्के में डायमंड का चिन्ह बना हुआ है तो इसका मतलब यह हुआ की उसकी ढ़लाई मुंबई में हुई है। अगर किसी सिक्के में एक सितारा बना हुआ है तो उसकी ढ़लाई हैदराबाद में हुई है। अगर सिक्के में एक सॉलिड डॉट का चिन्ह है तो उसकी ढ़लाई नोएडा में हुई है। अगर किसी सिक्के में किसी भी प्रकार का चिन्ह नहीं है तो इसका मतलब वह सिक्का कोलकाता में मिंट किया गया है।

सिक्कों का आकार और वजन क्यों कम होता जा रहा है?

किसी भी सिक्के की दो वैल्यू होती है एक फेस वैल्यू और एक मैटेलिक वैल्यू। फेस वैल्यू से मतलब है जिस सिक्का पर जितना अंक दर्ज है उसकी वैल्यू उतनी ही होगी। जैसे एक रुपया दर्ज है तो उसकी फेस वैल्यू एक ही रूपए होगी, 2 रुपया दर्ज है तो उसकी फेस वैल्यू 2 ही रूपए होगी।

मैटेलिक वैल्यू से तात्पर्य है कि उस सिक्के को बनाने में कितना खर्च किया गया, तो है क्या की दिन-प्रतिदिन महगांई बढ़ रही है, ऐसे में जिन धातुओं से सिक्के बनाए जाते है उनकी भी वैल्यू बढ़ रही है, ऐसे में अगर सिक्को का आकार और वजन नहीं घटाया जाएगा तो सिक्कों के मैटेलिक वैल्यू फेस वैल्यू से ज्यादा हो जायेगी। अगर ऐसा हुआ तो लोग इसका गलत फायदा उठाने लगेंगे, वो कैसे तो आइये उसको भी जान लेते है।

मान लीजिये की अगर हम किसी सिक्के को पिघलाकर बेंचे और वह सिक्का है 01 रुपए का और बिच जाए 02 रपए में तो हमें एक रुपए का फायदा होगा। ऐसे में बहुत सारे लोग इसका गलत फायदा उठाने लगेंगे और इन कृत्यों की वजह से मार्केट से सिक्के गायब होने लगेंगे और यह भारत सरकार और अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय बन जाएगा। इस वजह से सिक्कों का वजन और आकार निरंतर कम होता जा रहा है।

सरकार और RBI का यही उद्देश्य रहता है की सिक्के इस आकार और वजन के बनाए जाए की उनकी फेस वैल्यू और मैटेलिक वैल्यू सेम रहे।

नोट व सिक्के सर्कुलेट करने की जिम्मेदारी होती है RBI पर

भारतीय रिजर्व बैंक पर नोट छापने और अर्थव्यवस्था में सर्कुलेट (फैलाने) और रेगुलेट (नियंत्रण) कराने की जिम्मेदारी होती है। RBI मौद्रिक नीति के तहत बाजार में पैसे की उपलब्धता को कम या ज्यादा करता है। अगर पैसे की उपलब्धता कम है तो उसे बढ़ाता है और अगर ज्यादा है तो उसे कम करता है।

हालांकि, एक रूपए के नोट छापने की जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय के पास होती है। एक रूपए के नोट पर वित्त मंत्रालय के सचिव का सिग्नेचर होता है। लेकिन वित्त मंत्रालय RBI के जरिए ही अर्थव्यवस्था में 1 रूपए के नोट सर्कुलेट करवाता है।

यह भी पढ़े: भारत को सोने की चिड़िया क्यों जाता है?

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