हमें सपने क्यों दिखाई देते हैं? कब, कैसे और किस प्रकार के आते हैं? वैज्ञानिक कारण और अलग-अलग मान्यताएं और धारणाएँ

सपने क्यों दिखते हैं? वैज्ञानिक कारण और अलग-अलग मान्यताएँ और धारणाएँ

आज के इस लेख में हम जानेंगे कि सोते समय लोग सपने क्यों देखते हैं या फिर सपने क्यों आते हैं? सपने आने और दिखने के पीछे की मान्यताएँ, अवधारणाएं और वैज्ञानिक कारणों के बारे में भी जानेंगे।

तो आइए जानते हैं……..

सपने क्यों आते हैं?

आमतौर पर दुनिया में दो तरह के लोग होते हैं। पहले वो, जो दुनिया की हर चीज को वैसे ही अपना लेते हैं, जैसे वो होती है। उनके बारे में जानने-समझने में उनको बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं होती है। जबकि दूसरे वे लोग होते हैं, जो दुनिया से लेकर खुद के वजूद के बारे में सब कुछ जान लेना चाहते हैं। ऐसे लोगों के मन में तरह-तरह के सवाल यूं ही आते रहते हैं। हालांकि, दिमाग में आने वाले ये सवाल यूं तो बहुत आम किस्म के होते हैं, पर उनके जवाब उतने आसान नहीं होते। आज हम आपके लिए इसी तरह के एक आम सवाल और उसके जवाब को लेकर आए हैं।

यकीन मानिए इस सवाल से आप बार-बार रूबरू हुए होंगे, मगर शायद इस पर कभी विचार ना किया हो कि ऐसा क्यों होता है। दरअसल, सवाल यह है कि हमें सपने क्यों आते हैं? है न यह एक बेहद आम सवाल!! यह सवाल बेहद आम जरूर है, पर इसके जवाब बेहद खास हैं।

वैसे क्या आपने कभी सोचा है कि हमें सपने क्यों आते हैं? अगर नहीं सोचा, तो चलिए आज हम आपको इसकी जानकारी देते हैं। हमें सपने क्यों आते हैं, यह कहां से आते हैं, इसके पीछे की असलियत क्या है, कुछ सपने इतने अजीबोगरीब क्यों होते हैं, क्या इनका वाकई हकीकत से कोई वास्ता होता है या फिर हमें ये यूं ही दिखाई पड़ जाते हैं? परंपरागत विचारों से हटकर यह भी जानेंगे कि इस बारे में साइंस क्या कहता है, मगर इनसे पहले ये जान लेते हैं कि सपनों को लेकर हमारे बीच की आम धारणाएँ क्या हैं?

सपने को लेकर आम धारणाएँ और मान्यताएँ

दरअसल, ख्वाबों की दुनिया के कई सवाल लंबे अरसे से मानव सोच के एक दिलचस्प और रहस्यमय पहलू रहें हैं। पूरे इतिहास में लोगों ने यह समझने का प्रयास किया कि हम सपने क्यों देखते हैं और हमारे सपनों का मकसद क्या हो सकता है? कुछ का मानना है कि सपनों का एक आध्यात्मिक और अलौकिक मतलब होता है, जबकि कुछ और का मानना है कि वे नींद के दौरान होने वाली रैंडम मानसिक हरकते हैं। प्राचीन समय में सपनों के जरिए इलाज भी किया जाता था, जिसे ड्रीम थैरेपी कहते थे।

ड्रीम थैरेपी हिप्नोटाइज यानी सम्मोहन के जरिए की जाती थी। यूनान में 400 से भी ज्यादा मंदिरों में इस थैरेपी के इस्तेमाल के उदाहरण मिलते हैं। ईसा से दो सदी पहले तक ग्रीक और रोमन साम्राज्य में इलाज के लिए ड्रीम थेरेपी बहुत आम बात थी। कुछ लोग अपने सपनों को साफतौर पर बयां नहीं कर पाते थे, मगर वे कुछ इशारे करते थे। जैसे उनके दिल व दिमाग में एक परछाई की तरह कोई धुंधली छवि या तस्वीर घूम रही है। सपने कौन से प्राणी देखते हैं, इसको लेकर भी जानकारों में मतभेद है।

सपने कौन से प्राणी देखते हैं?

विज्ञान मानता है कि सभी स्तनधारी और जानवर सपने देखते हैं। मगर हमारे पुराण कहते हैं कि सभी प्राणियों में एक मानव ही ऐसा है, जो सपने देखता है। वहीं प्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक अरस्तु का मानना है कि केवल मानव ही नहीं बल्कि जानवर भी सपने देखते हैं।

सपने आने या दिखने को लेकर वैज्ञानिक कारण

समय के साथ आज साइंस ने सपनों के रहस्य से कुछ पर्दे हटाए। इसने बताने की कोशिश की है कि हमें सपने कब, क्यों व कैसे आते हैं?

इसकी व्याख्या सबसे पहले डॉक्टर सिगमंड फ्रायड ने की। फ्रायड पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सपनों की व्याख्या सही तरीके से की। उन्होंने सपनों की व्याख्यों के बारे में सभी गलतफहमियां को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने पहली बार मनोविज्ञान में सपनों की अवधारणा को पेश किया और और मनोविश्लेषण की विधि द्वारा रोगियों के उपचार के लिए सपने की व्याख्या को लागू किया।

उन्होंने कहा कि सपने में आदमी का अचेतन मन उजागर हो जाता है। अचेतन मन में हमारी दबी हुई इच्छाएं होती हैं। सपने अक्सर इन्हीं इच्छाओं को पूरा करते हैं। चूँकि एक आदमी सपने में ऐसी इच्छाएं पूरी कर सकता है, जो वह असल दुनिया में नहीं कर सकता है। फ्रायड ने यह भी कहा कि लोग कभी-कभी सपने पश्चाताप जताने या मानसिक चोट पर काबू पानी के साधन के रूप में इस्तेमाल करते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि जब आप जागते समय बुरी भावनाओं से नहीं निपट पाते, तो आपका दिमाग इसे अपने आप करने के लिए उकसाता है।

रिसर्च के मुताबिक इसका कारण यह है कि हमारे सपनों में खुशी वाले सपनों की तुलना में नकारात्मक भावनाएं ज्यादा बार दिखाई देती हैं। जब आप जागते समय अपनी आहत भावनाओं से नहीं निपटते हैं, तो रात में सोते समय दिमाग नकारात्मक भावनाओं से लड़ता है। इसका नतीजा यह होता है कि ये भावनाएं आपके अचेतन सपनों के रूप में आने लगते हैं।

फ्रायड ने सपने के इन्हीं भावनाओ को अपनी क्लासिक पुस्तक इंटरप्रिटेशन ऑफ ड्रीम्स में विस्तार से छानबीन की। इसमें फ्रायड ने बताया है कि अगर बेहोश इच्छाओं, विचारों और दफन इच्छाओं को जानना है, तो इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि व्यक्ति के सपने का विश्लेषण किया जाए। यहां व्यक्ति के अचेतन मन को आसानी से देखा जा सकता है।

आगे चलकर कुछ रिसर्चर्स ने यह माना कि सपने आना केवल हमारे दिमाग की एक काल्पनिक सोच है, जो हमें नींद के दौरान दिमाग के जरिए दिखाई देती है। यह जानकर शायद हैरानी होगी कि हमें ज्यादातर सपनों में वही चीजें दिखाई देती हैं, जो असल जीवन में हमारे आसपास हो रही हैं। जैसे यदि कोई डरावनी मूवी देखता है, तो ऐसा हो सकता है कि उसे डरावने सपने आएं। अगर कोई सुपर हीरो की मूवी देखता है, तो हो सकता है उसे उसी मूवी कि जैसे सपने आ जाएं। ऐसा भी हो सकता है कि सपने में वो अपने आप को ही सुपर हीरो मान ले। सपने आने का अगले जन्म या पिछले जन्म से कोई लेना-देना नहीं होता।

अगर हम विज्ञान की मानकर चलें, तो सपने आना सिर्फ आसपास की घटनाओं का दिमाग द्वारा बनाया गया एक मायाजाल होता है। कभी-कभी हमें अपने अतीत के बारे में सपने आते हैं, जो कि हमारे साथ पहले हो चुका है या फिर हमें भविष्य में कुछ करना है, तो उसके बारे में भी हमें सपने आ सकते हैं। वैसे तो ज्यादातर सपने हमारे दिमाग की उस सोच की वजह से आते हैं, जैसा हम हाल-फिलहाल में सोचते हैं और उसके जैसे ही सपने हमें रात में दिखाई देते हैं।

मगर कभी-कभी इससे अलग भी होता है। हमें लगता है कि हमने वह चीज अपने जीवन में नहीं देखी, फिर भी वह सपने में आ गई। आमतौर पर ऐसा सबके साथ नहीं होता। अब सवाल है कि यह सपने कब और कैसे आते हैं।

विज्ञान के अनुसार सपने कब और कैसे आते हैं ?

जानकारों की माने तो ज्यादातर सपने नींद में REM (Rapid Eye Movement) के दौरान आते हैं। Rapid Eye Movement का चक्र सोने के दौरान समय-समय पर आते रहते हैं। अक्सर सोने के लगभग 90 मिनट बाद Rapid Eye Movement Sleep की शुरुआत होती है। इस समय लगभग 10 मिनट तक यह चलता है। फिर जैसे-जैसे हम सोते जाते हैं, वैसे-वैसे Rapid Eye Movement Sleep की अवधि बढ़ती जाती है और आखिर में यह एक घंटे तक पहुंच जाती है।

आसान भाषा में कहें, तो नींद के दूसरे चरण को Rapid Eye Movement Sleep कहा जाता है। ये वो चरण है, जिसमें हम सपने ज्यादा देखते हैं। इसी समय की नींद की ज्यादातर बातें हमें याद भी रह जाती हैं। जब Rapid Eye Movement वाली स्लीप में आँखे व स्वास की गति तेज और दिमाग की हरकते बढ़ने लगती है, तब क्लियर और याद रहने वाले सपने सबसे ज्यादा देखे जाते हैं। वहीँ नींद के इससे पहले के चरण को NREM (NON-Rapid Eye Movement) स्लीप कहते हैं। आम बोलचाल की भाषा में इसे गहरी नींद कहते हैं। Rapid Eye Movement के मुकाबले NON-Rapid Eye Movement की अवधि ज्यादा होती है।

नींद की स्टडी से पता चला है कि मस्तिष्क तंत्र NON-Rapid Eye Movement नींद पैदा करता है और अग्र मस्तिष्क सपने पैदा करता है। मतलब यह हुआ कि जब भी कभी हमारा मस्तिष्क तंत्र खराब हो जाता है, तो लोग सपने तो देखते हैं, मगर Rapid Eye Movement Sleep में नहीं जाते हैं। इसी तरह अगर अग्र मस्तिष्क खराब हो जाता है, तो लोग Rapid Eye Movement Sleep में तो चले जाते हैं, लेकिन सपने नहीं देख पाते हैं।

Rapid Eye Movement चक्र के दौरान हमारे दिमाग की तरंगे लगभग उतनी ही सक्रिय होती हैं, जितनी जागने के दौरान। अगर कोई आदमी रैपिड आई मूवमेंट अवधि के दौरान जागता है, तो जागने के बाद सपने को याद रखने की संभावना बढ़ जाती है। रिसर्चर्स के मुताबिक ज्यादातर लोगों को हर रात 3 से 5 सपने आते हैं, जबकि कुछ लोगों को 7 तक सपने आ सकते हैं।

यह सपने कैसे आते हैं? इस पर अलग-अलग रिसर्च मौजूद है। कुछ रिसर्चर्स के मुताबिक़ सपने दिन के दौरान महसूस हुए अलग-अलग हालातों और चुनौतियां के रिहर्सल के रूप में काम करते हैं। इन्हे देखने से यादों को मजबूत करने और उनकी छानबीन करने में मदद मिलती है।

एक रिसर्च की माने तो सपने आपके दिमाग की मौजूद धारणाओं के मुकाबले आपकी कल्पना, जैसे की गहरी यादें, अमूर्त विचार और इच्छाओं आदि से ज्यादा पैदा होते हैं। यह रिसर्च फ्रायड के सिद्धांत से बहुत हद तक मेल खाती है। इसके लिए वैज्ञानिकों ने सोने और सपने देखने के दौरान लोगों की दिमागी हरकतों को पढ़ने के लिए विकसित इमेजिंग तकनीकों का इस्तेमाल किया। उन्होंने पाया कि सपना देखने के दौरान अलग-अलग इलाके जगे हुए अवस्था की तुलना में ज्यादा एक्टिव हो जाते हैं।

उदाहरण के लिए भावनाओं से जुड़ा दिमाग का एमिग्डाला हिस्सा सपने देखने के दौरान ज्यादा एक्टिव हो जाता है, जबकि प्रिफंटल कॉर्टेक्स जो तार्किक सोच के लिए जिम्मेदार होता है, कम एक्टिव रहता है। यह इस बात को बता सकता है कि हमारे सपने अक्सर अतार्किक, रैंडम या भावनात्मक क्यों लगते हैं। इसी तरह हमें कैसे सपने आएंगे। इस पर भी साइंस ने कुछ छानबीन की है। साइंस ने इसका संबंध न्यूरोट्रांसमीटर केमिकल्स से माना है।

हमें कैसे सपने आएँगे यह कैसे तय होता है?

दरअसल, जब हम रैपिड आई मूवमेंट स्लीप में होते हैं, तब कुछ न्यूरोट्रांसमीटर केमिकल्स अधिक स्पष्ट होते हैं, जबकि अन्य दब जाते हैं। जो न्यूरोट्रांसमीटर केमिकल्स ज्यादा एक्टिव होते हैं, हमें उसी जैसे ही सपने आते हैं। यहां कौन से न्यूरोट्रांसमीटर केमिकल्स ज्यादा एक्टिव होंगे, इसकी व्याख्या हमारे दिमाग में कैसी यादें, कैसे विचार, कैसी इच्छाएं मौजूद हैं, उनके हिसाब से की गई है।

इस रिसर्च में यह भी देखा गया है कि सपने के दौरान एसिटिलकोलिन न्यूरोट्रांसमीटर (Acetylcholine neurotransmitter) केमिकल्स ज्यादा एक्टिव होते हैं। यही केमिकल्स दिमाग की सक्रियता को बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होता है, जबकि डोपामाइन यादें, अटेंशन, शांत मोटिवेशन और कई अन्य काम के लिए जिम्मेदार होते हैं।

सपनों के दौरान डोपामाइन एक्टिव होने से सपनों को अच्छी गुणवत्ता तक पहुंचने में आसानी होती है। इस बीच रैपिड आई मूवमेंट स्लीप उन न्यूरोट्रांसमीटर को दबा देती है, जो आमतौर पर हमें जगाए रहते हैं, जैसे हिस्टामाइन, सेरोटोनिन और नोरेपिनफ्रीन (Norepinephrine)। इस तरह से हम अपने आसपास के वातावरण का अंदाजा कम ही लगा पाते हैं। इस घटना में कुछ रिसर्चर्स को संदेह है कि जब हम सपने देखते हैं, तो थैलेमस न्यूरोट्रांसमीटर बंद हो जाता है। थैलेमस लोगों को जगाए रखने और सतर्क रखने में मदद करता है। यह सोच और यादों में भी भूमिका निभाता है। यह दिमाग के लिम्बिक सिस्टम के स्ट्रक्चर से जुड़ा होता है, जो भावनाओं को प्रोसेस करता है और उन्हें रेगुलेट करता है।

इस तरह तमाम अलग-अलग रिसर्च हमारे दिमाग में मौजूद यादें, विचार और इच्छाओं को ही सपने देखने के लिए जिम्मेदार मानते हैं। सपनों का जन्म कब, कैसे और कहां हुआ? यह आज भी जानकारों के बीच कौतूहल का विषय है। मगर इतना तय हैं कि जिस दिन मानव ने दुनिया में कदम रखा, उसी समय से ख्वाबों की दुनिया का श्रीगणेश हुआ।

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