ट्रेडिंग क्या है और ट्रेडिंग कितने प्रकार की होती है? समझिए सरल शब्दों में

ट्रेडिंग क्या है? ट्रेडिंग के प्रकार

आज के इस लेख में हम जानेंगे कि शेयर मार्केट में ट्रेडिंग – Trading क्या होती है? साथ ही ‘ट्रेडिंग के प्रकार – Types of Trading’ के बारे में जानेंगे कि शेयर मार्केट में ट्रेडिंग कितने प्रकार को होती है।

तो आइए जानते हैं……

ट्रेडिंग क्या है – What is Trading – ट्रेडिंग किसे कहते हैं?

ट्रेड का मतलब होता है व्यापार, जब हम किसी लिस्टेड या पंजीकृत कंपनी में शेयरों की खरीद-बिक्री करते हैं, तो उसे ट्रेडिंग करना कहा जाता है। जैसे- मान लीजिए कि हमने Paytm कंपनी के आज शेयर खरीदे और कुछ दिन बाद उसे बेच दिए, तो यहां पर हमने ट्रेड किया, इसे ही ट्रेडिंग कहा जाता है। ट्रेडिंग में घाटा भी होता है और फायदा भी। घाटा और फायदा बाजार भाव पर निर्भर करता है। जो लोग खरीद-बिक्री करते हैं, उन्हें ट्रेडर कहा जाता है, यानी कि व्यापार करने वाला।

ट्रेडिंग के प्रकार – Types of Trading

वैसे तो शेयर मार्केट में ट्रेडिंग कई प्रकार की होती है, लेकिन ट्रेडर्स की इन्वेस्टमेंट करने की प्रकृति और प्रवृति के आधार पर इसे मुख्य रूप से 05 प्रकार में विभाजित किया जाता है। जैसे- कोई ट्रेडर ऐसा है, जिसने आज सुबह शेयर खरीदा और शाम तक में बेच दिया। कुछ ट्रेडर्स ऐसे हैं, जो आज शेयर खरीदे और एक हफ्ते बाद बेच दिए। कुछ ऐसे हैं, जो एक महीने बाद बेचे और कुछ ऐसे हैं जो लंबे समय बाद अपने शेयर बेचते हैं। इसी आधार पर ट्रेडिंग को 05 प्रकार में विभाजित किया गया है।

  1. डिलीवरी ट्रेडिंग
  2. इंट्राडे ट्रेडिंग
  3. स्कैल्पिंग ट्रेडिंग
  4. स्विंग ट्रेडिंग
  5. पोजिशनल ट्रेडिंग

डिलीवरी ट्रेडिंग – Delivery Trading

इस ट्रेडिंग के अंतर्गत ऐसे निवेशक (ट्रेडर) आते हैं, जो लॉन्ग टर्म के साथ शुरुआत करते हैं। यहां पर निवेशक का फोकस वेल्थ की ओर रहता है और निवेशक उन स्टॉक्स में निवेश करना उचित समझते हैं, जिनमें समय के साथ ज्यादा मुनाफा कमाया जा सके।

डिलीवरी ट्रेडिंग करने के लिए निवेशक को किसी भी कंपनी के फंडामेंटल को समझना बहुत जरुरी होता है, जिसमें कंपनी का इतिहास, परफॉरमेंस, प्रॉफिट/लॉस की जानकारी के लिए बैलेंस शीट (Balance Sheet) और अलग-अलग रेशियो जैसे- PE Ratio, ROE आदि की जानकारी प्राप्त करना अनिवार्य होता है।

इस ट्रेडिंग के अंतर्गत निवेशक वैल्यू इन्वेस्टिंग या मोमेंटम इन्वेस्टिंग की दिशा में स्टॉक्स का चयन कर निवेश करने की योजना बना सकते हैं। यहां पर ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए निवेशक डिलीवरी ट्रेडिंग नियमों (Delivery Trading Rules) का पालन जरूर करें।

इंट्राडे ट्रेडिंग – Intraday Trading

ट्रेडिंग की इस शैली में एक ही दिन में शेयर को खरीदना और बेचना शामिल होता है। इंट्राडे ट्रेडिंग के मामले में ट्रेडर कुछ मिनटों या घंटों के लिए स्टॉक को होल्ड रखते हैं। इस तरह की ट्रेडिंग में शामिल एक ट्रेडर को दिन के बाजार बंद होने से पहले अपनी पोजीशन को बंद करना होता है।

इंट्राडे ट्रेडिंग के मामलों में तेजी से निर्णय लेने की क्षमता, बाजार की अस्थिरता की पूरी समझ और स्टॉक प्राइस में उतार-चढ़ाव के बारे में गहरी समझ की आवश्यकता होती है। इसलिए यह ज्यादातर अनुभवी ट्रेडर्स द्वारा की जाती है। यदि आप स्टॉक मार्केट में नए हैं, तो पूरी समझ और ज्ञान के बाद ही इस ट्रेडिंग को शुरू करें।

उदाहरण:- माना रमेश ने रिलायंस के 50 शेयर्स 3000 रुपए प्रति शेयर में इंट्राडे ट्रेडिंग के लिए खरीदे हैं। अब रमेश को उसी दिन 04:10 PM से पहले अपने शेयर्स को बेचना है, चाहे रमेश नुकसान में हो या फायदा में। अगर रमेश ऐसा नहीं करता है, तो उसका ब्रोकर पोजीशन को ऑटोमैटिक सेल कर देगा।

इसलिए इंट्राडे ट्रेडर्स को एंट्री के साथ पोजीशन क्लोज भी सही समय में करना बहुत जरुरी होता है। जिस तरह से टेक्निकल एनालिसिस स्टॉक को खरीदने के लिए जरुरी होता है, उसी प्रकार से कब आपको एग्जिट करना है, उसके बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए, आप इंट्राडे ट्रेडिंग इंडिकेटर का इस्तेमाल कर सकते हैं।

स्कैल्पिंग ट्रेडिंग – Scalping trading

स्कैल्पिंग को माइक्रो ट्रेडिंग के रूप में जाना जाता है। स्कैल्पिंग और डे-ट्रेडिंग दोनों ही इंट्राडे ट्रेडिंग हैं। स्कैल्पिंग के मामले में ट्रेडर अपनी पोजीशन को कुछ सेकंड या कुछ मिनटों के लिए स्टॉक को होल्ड रखता है। डे ट्रेडर की तरह स्कैल्पिंग ट्रेडर को भी दिन के बाजार बंद होने से पहले अपनी पोजीशन को बंद करना होता है।

स्कैल्पिंग ट्रेडिंग के मामलों में डे ट्रेडिंग से भी ज्यादा तेजी से निर्णय लेने की क्षमता, बाजार की अच्छी समझ और स्टॉक प्राइस में उतार-चढ़ाव की गहरी समझ होनी चाहिए। इसलिए इसे भी ज्यादातर अनुभवी ट्रेडर्स द्वारा ही किया जाता है।

उदाहरण:- माना रमेश को किसी स्टॉक में ब्रेकआउट, ब्रेकडाउन या कोई जरुरी लेवल ब्रेक होता दिख रहा है और रमेश को लग रहा है कि स्टॉक बहुत तेजी से बढ़ने वाला है। इस स्थिति में, जैसे ही उसका स्टॉक्स, प्राइस लेवल को ब्रेक करता है, रमेश तुरंत ही अपनी पोजीशन बना लेता है और कुछ ही मिनटों में प्रॉफिट लेकर निकल जाता है। स्कैल्पिंग का उपयोग ज्यादातर करेंसी ट्रेडर करते हैं।

स्विंग ट्रेडिंग – Swing Trading

स्टॉक मार्केट में ट्रेडिंग की इस शैली का उपयोग स्टॉक मूवमेंट और पैटर्न को ट्रेड करने के लिए किया जाता है। स्विंग ट्रेडिंग के मामले में ट्रेडर अपनी पोजीशन को आदर्श रूप से एक से सात दिन के लिए होल्ड रखता है।

स्विंग ट्रेडिंग, ट्रेडिंग की एक तकनीक है, जिसका उपयोग ट्रेडर्स स्टॉक्स खरीदने व बेचने के लिए करते हैं। जब ट्रेडर की एनालिसिस भविष्य में एक अपट्रेंड या डाउनट्रेंड की ओर इशारा करती है, तो इस स्थिति में ट्रेडर उस स्टॉक में अपनी पोजीशन बनाते हैं।

इस ट्रेडिंग में अवसरों का फायदा उठाने के लिए ट्रेडर्स को अल्पावधि में लाभ कमाने की संभावना बढ़ाने के लिए शीघ्रता से काम करना चाहिए।

उदाहरण:- माना की आने वाले हफ्ते में रिलायंस की तिमाही रिपोर्ट आने वाली है और कंपनी का आंकलन कर ये अनुमान लगाया जा सकता है कि कंपनी को प्रॉफिट ही होगा, तो वहां पर आप रिलायंस के शेयर में ट्रेड कर उसे एक सप्ताह से एक माह तक होल्ड कर सकते हैं और अगर कंपनी अपनी रिपोर्ट में प्रॉफिट रिकॉर्ड करती है, तो उसका सीधा प्रभाव स्टॉक के प्राइस पर दिखेगा, जिससे आप अपना मुनाफा निर्धारित कर एग्जिट कर सकते हैं।

पोजिशनल ट्रेडिंग – Positional Trading

ट्रेडिंग की इस शैली में पोजिशनल ट्रेडर अपनी पोजीशन को कुछ सप्ताह से लेकर महीनों तक होल्ड रखते हैं। इस तरह की ट्रेडिंग में शामिल एक ट्रेडर थोड़ी लंबी अवधि, लेकिन एक साल से कम अवधि के लिए ट्रेड प्लान करता है। पोजिशनल ट्रेडिंग एक रणनीति है, जिसमें लाभ के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक लंबी अवधि के लिए एक ट्रेडिंग पोजीशन आयोजित की जाती है।

इस प्रकार की ट्रेडिंग में एक ट्रेडर की आमतौर पर एक लंबी अवधि की सोच होती है और शॉर्ट टर्म के उतार-चढ़ाव के बावजूद पोजिशनल ट्रेडर लंबे समय तक अपनी पोजीशन बनाए रखना पसंद करते हैं। ट्रेडर्स आमतौर पर पोजिशनल ट्रेडिंग करने के लिए दीर्घकालिक चार्ट (साप्ताहिक, मासिक) का उपयोग करते हैं।

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