आज के इस लेख में हम Sensex के बारे में जानेंगे कि सेंसेक्स क्या होता है और इसका कैलकुलेशन कैसे किया जाता है? साथ ही इसके महत्व के बारे में भी जानेंगे।
तो आइए जानते हैं……
जब हम न्यूज पेपर का बिजनेस वाला पेज पढ़ते हैं, तो हमें सेंसेक्स शब्द जरूर पढ़ने को मिलता है। किसी दिन हमें ये पढ़ने को मिलता है कि सेंसेक्स ने रिकॉर्ड स्तर को छू लिया और किसी दिन पढ़ने को मिलता है कि सेंसेक्स में भारी गिरावट दर्ज की गई, जिसकी वजह से निवेशकों को करोड़ो रूपए का नुकसान हुआ।
इस प्रकार की न्यूज पढ़ते ही मन में सवाल उठने लगते हैं कि आखिर ये सेंसेक्स है क्या? ये किस प्रकार से घट-बढ़ जाता है और इसका घटना-बढ़ना किन बातों पर निर्भर करता है। इसके लिए हम इधर-उधर से जानकारियां निकालने लगते हैं, लेकिन जानकारियों से संतुष्ट नहीं हो पाते। तो आइए आज हम सेंसेक्स को सरल भाषा में समझते हैं। इसके अलावा अगर आप शेयर बाजार में निवेश या ट्रेडिंग करने के बारे में सोच रहे हैं, तो ये जानकारियां आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होने वालीं हैं।
सेंसेक्स क्या है – What is Sensex ?
सेंसेक्स, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का बेंचमार्क इंडेक्स (सूचकांक) है, इसीलिए इसे BSE इंडेक्स भी कहा जाता है। सेंसेक्स शब्द सेंसेटिव और इंडेक्स शब्द से मिलकर बना हुआ है। हिंदी में कुछ लोग इसे संवेदी सूचकांक भी कहते हैं। इसे सबसे पहले 1986 में अपनाया गया था और यह 13 विभिन्न क्षेत्रों की 30 कंपनियों के शेयरों में होने वाले उतार-चढ़ाव को दिखाता है। इन शेयरों में बदलाव से सेंसेक्स में उतार-चढ़ाव आता है। सेंसेक्स का कैलकुलेशन फ्री फ्लोट फैक्टर विधि से किया जाता है।
सेंसेक्स का कैलकुलेशन कैसे होता है – How is Sensex Calculated ?
- सेंसेक्स की गणना में शामिल सभी 30 कंपनियों का मार्केट कैपिटलाइजेशन (बाजार पूंजीकरण – वर्तमान में किसी कंपनी की कुल कीमत) निकाला जाता है, इसके लिए कंपनी द्वारा जारी किए गए शेयरों की संख्या को शेयर के भाव से गुणा करते हैं, इस तरह जो आंकड़ा मिलता है, उसे कंपनी का मार्केट कैपिटलाइजेशन कहा जाता है। मार्केट कैपिटलाइजेशन को हिंदी में बाजार पूंजीकरण कहा जाता है।
- इसके बाद उस कंपनी के फ्री फ्लोट की गणना की जाती है। फ्री फ्लोट किसी कंपनी द्वारा जारी किए गए कुल शेयरों का वह हिस्सा यानी पर्सेंटेज है, जो बाजार में ट्रेडिंग के लिए उपलब्ध है। जैसे कि किसी कंपनी ABC के 100 शेयरों में 40 शेयर सरकार और प्रमोटर के पास हैं, तो बाकी 60 फीसदी ही ट्रेडिंग के लिए उपलब्ध होंगे। यानी इस कंपनी का फ्री फ्लोट 60 फीसदी हुआ।
- बारी-बारी से सभी कंपनियों के फ्री फ्लोट को उस कंपनी के मार्केट कैपिटलाइजेशन से गुणा करके कंपनी के फ्री फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन की गणना की जाती है।
- सेंसेक्स की गणना में शामिल सभी 30 कंपनियों के फ्री फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन को जोड़कर उसे बेस वैल्यू से डिवाइड करते हैं और फिर इसे बेस इंडेक्स वैल्यू से गुणा करते हैं। सेंसेक्स के लिए बेस वैल्यू 2501.24 करोड़ रूपए तय किया गया है, इसके अलावा बेस इंडेक्स वैल्यू 100 है। इस गणना से सेंसेक्स का आंकलन किया जाता है।
नोट:- सेंसेक्स, बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का बेंचमार्क इंडेक्स (सूचकांक) है, साथ ही आपने ये भी जाना कि इसकी की गणना करने में BSE में पंजीकृत 30 कंपनियों का आंकड़ा लिया जाता है। यहाँ पर मैं ये स्पष्ट करना चाहता हूँ कि आप इसका मतलब ये कतई न समझें कि BSE में केवल 30 ही कंपनियां पंजीकृत हैं। BSE में बहुत कंपनियां पंजीकृत हैं और ये आंकड़ा घटता-बढ़ता भी रहता है, लेकिन सेंसेक्स की गणना करते समय BSE में पंजीकृत कंपनियों को उनके अच्छे प्रदर्शन (Performance) के आधार टॉप-30 कंपनियों का ही चयन किया जाता है।
इतने ख़ास क्यों हैं सेंसेक्स और निफ्टी – Why are Sensex and Nifty so special ?
भारतीय शेयर बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव का संकेत देने वाले सिर्फ यही दो इंडेक्स नहीं हैं। इसके अलावा भी कई इंडेक्स मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल शेयरों की चाल समझने के लिए किया जाता है, इनमें ज्यादातर इंडेक्स किसी खास सेक्टर या कंपनियों के किसी खास वर्गीकरण से जुड़े हुए हैं। मिसाल के तौर पर किसी दिन के कारोबार के दौरान 12 प्रमुख बैंकों के शेयरों की औसत चाल का संकेत देने वाला Bank Index या सिर्फ सरकारी बैंकों के शेयरों का हाल बताने वाला PSU Bank Index, स्टील, एल्यूमीनियम और माइनिंग सेक्टर की कंपनियों के शेयरों के चाल का संकेत देने वाला मेटल इंडेक्स या फार्मा कंपनियों के शेयरों का फार्मा इंडेक्स…इत्यादि।
ये सभी इंडेक्स बाजार में पैसे लगाने वाले निवेशकों या उन्हें सलाह/मशविरा देने वाले ब्रोकर्स या सलाहकारों के लिए बेहद काम के होते हैं, लेकिन एक नजर में बाजार का ओवरऑल रुझान समझना हो या उसके भविष्य की दशा-दिशा का अंदाजा लगाना हो, तो उसके लिए सबसे ज्यादा सेंसेक्स और निफ्टी जैसे बेंचमार्क इंडेक्स पर ही गौर किया जाता है। इन्हे मोटे तौर पर मार्केट सेंटीमेंट का सबसे आसान इंडिकेटर माना जाता है।
अगर ये इंडेक्स न हों तो
अगर ये इंडेक्स न हों तो कारोबारियों द्वारा दिन के किसी भी समय एक नजर डालकर शेयर बाजार के रुझान का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाए, इसके अलावा सबसे बड़ा नुकसान ये होगा कि इन दोनों इंडेक्स के पिछले ऐतिहासिक आंकड़ों को देखकर कारोबारी जो बड़े आसानी से पिछले एक महीने, पिछले एक साल, पिछले 5 साल या उससे अधिक समय के दौरान भारतीय शेयर बाजार की चाल यानी लिस्टेड कंपनियों के कारोबार की दशा-दिशा कैसे रही? उसका निष्कर्ष नहीं निकाल पाएंगे।
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