आज के इस लेख में हम चाय के इतिहास के बारे में जानेंगे कि चाय की खोज (Discovery of Tea) कहां व कैसे हुई? साथ ही हम ये भी जानेंगे कि चाय के चक्कर में अंग्रेजों ने किस प्रकार से दो देशों का इतिहास ही बदल डाला?
तो आइए जानते हैं……
चाय – Tea
चाय शब्द से तो आप सभी परिचित ही होंगे। आज के दौर में लगभग हर घर में सुबह की शुरुआत चाय के साथ ही होती है। कुछ लोग तो चाय के इतने शौकीन होते हैं कि बिना चाय के प्याले के उनको अखबार पढ़ने में मजा ही नहीं आता। यहां तक की हम में से कइयों की चाय के बिना नींद ही नहीं खुलती। मतलब, चाय अधिकांशतः लोगों के दिल व दिमाग में बसती है।
कुछ लोग चाय के इतने ज्यादा आदी या शौकीन होते हैं कि यदि उन्हें बीच-बीच या थोड़े अंतराल में चाय न मिले, तो उन्हें बेचैनी महसूस होने लगती है। कुछ लोग तो इतने आदी हो चुके होते हैं कि यदि उन्हें चाय न मिले, तो उनका सिर दर्द होने लगता है। यानी कि चाय उनके लिए दवा का काम करती है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि चाय की खोज (Discovery of Tea) कैसे हुई? आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि आज से 200 साल पहले भारत में चाय कोई जानता ही नहीं था। अब आप के मन में जानने की इच्छा हो रही होगी की चाय की खोज कैसे व कहां हुई होगी। तो आइए चाय की खोज के बारे में जानते हैं।
चाय की खोज – Discovery of Tea – चाय के खोज की कहानी
दरअसल, चाय का सेवन हमारे पड़ोसी देश से शुरू हुआ। कहा जाता है कि 2737 ईस्वी पूर्व में चीन के सम्राट शेनोंग ने आदेश दिया था कि पानी उबालकर ही पीना चाहिए। एक दिन चीनी सम्राट पेड़ की छांव के नीचे आराम फरमा रहे थे, तो हवा से कुछ पत्तियां उनके पानी के प्याले में आ गिरीं। पत्तियों के गिरने की वजह से पानी का रंग व स्वाद दोनों बदल गया। उसे पीकर सम्राट को आनंद तो आया ही साथ में थकान भी मिट गई और इस तरह से चाय की खोज हुई।
वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार छठवीं शताब्दी में चीन के हुनान प्रान्त में भारतीय बौद्ध भिक्षु बोधिधर्म बिना सोए ध्यान साधना करते थे। वे जागे रहने के लिए एक खास पौधे की पत्तियां चबाते थे और बाद में यहीं पौधा चाय के पौधे के रूप में पहचाना गया।
दुनिया को कब पता चला चाय के बारे में – When did the world know about tea
सोलहवीं सदी में पुर्तगाली चीन पहुंचे। चीन पहुंचकर उन्हें चाय के बारे में पता चला। इसके बाद पुर्तगालियों ने चाय (Tea) के बारे में दुनिया को बताया। वैसे ये बात आप सब को पता ही होगी कि यूरोपीय देशों का इतिहास ही रहा है व्यापार के सिलसिले में दुनियाभर में घूमना। खासतौर से ब्रिटेन, फ्रांस और पुर्तगाल देश का। चाय के बारे में दुनिया को जानकारी तो पुर्तगालियों ने दी, लेकिन चाय के पीछे सबसे ज्यादा पागल हुए अंग्रेज और इस चक्कर में उन्होंने दो देशों का इतिहास ही बदल डाला। अब आप सोच रहे होंगे कि वो कैसे? तो आइए उसके बारे में जान लेते हैं।
चाय के चक्कर में अंग्रेजों ने किस प्रकार से बदल डाला दो देशों का इतिहास – How did the British change the history of two countries in the affair of tea?
अंग्रेजों को चाय की ऐसी लत लगी कि उन्होंने दो देशों का इतिहास ही बदल डाला। चीन से चाय की डिमांड इतनी बढ़ गई कि ईस्ट इंडिया कंपनी परेशान हो गई थी। मामला ये फंस रहा था कि व्यापार को संतुलित करने के लिए चीन को क्या बेचा जाय या फिर ऐसा समझे कि ईस्ट इंडिया कंपनी चाय तो ज्यादा मात्रा में मंगा रही थी, लेकिन उसके लिए ज्यादा मात्रा में जो पैसे खर्च हो रहे थे, वो कहां से लाए जाएं।
लेकिन इसका भी अंग्रेजों ने तोड़ निकाला। अंग्रेजों को कहीं से पता चला कि चीन में अफीम एक औषधि के रूप में इस्तेमाल होती है और नशे के लिए भी। लेकिन अफीम की आदत से लोगों को बचाने के लिए चीन में अफीम का आयात प्रतिबंधित था। मगर ईस्ट इंडिया कंपनी थी चालाक। जब कानूनी तरीके से काम नहीं बना, तो कंपनी ने अफीम की तस्करी का धंधा शुरू कर दिया।
धीरे-धीरे चीन में अफीम की डिमांड बढ़ने लगी। ऐसी स्थिति में अब सप्लाई में बढ़ोतरी करने की आवश्यकता थी। इसके लिए अंग्रेजों द्वारा भारतीय किसानों पर अफीम की खेती करने और उत्पादन बढ़ाने के लिए दवाब बनाया गया। खासतौर से उत्तर प्रदेश और बिहार में 25 से 50 प्रतिशत जमीन इस पौधे ने हड़प ली थी। मगर यह नकदी फसल (Cash Crop) उगाने का भारतीय किसानों को कोई फायदा नहीं मिल रहा था।
ऐसा इसलिए, क्योंकि कंपनी जिस भाव में अफीम खरीद रही थी, उससे ज्यादा किसान खाद, सिंचाई और लेबर में खर्च कर रहे थे। भारतीय किसान, अफीम की खेती इसी वजह से छोड़ना चाहते थे, पर चाहते हुए भी किसान अफीम की खेती नहीं छोड़ सके। वो इसलिए, क्योंकि जो भी किसान अफीम की खेती के लिए न कहता था, अंग्रेजों द्वारा उस पर जुल्म और अत्याचार किया जाता था।
भारतीय किसान दोहरी मार में फंसे हुए थे। पहली- अगर अफीम की खेती नहीं करोगे, तो अंग्रेजों द्वारा प्रताड़ित किए जाओगे। दूसरी- अगर खेती नहीं करोगे तो घर का खर्चा कैसे चलेगा। इस खींचातानी और बढ़ती हुई अफीम की खेती की वजह से नतीजा ये निकला कि भुखमरी जैसा माहौल बन गया। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि 1860 से 1900 के बीच दाने-दाने के लिए तरसते हुए लाखों लोगों की मौत हुई थी।
दूसरी तरफ चीन में आम आदमी को अफीम की लत लग चुकी थी। इसी चक्कर में ब्रिटेन और चीन के बीच दो बार युद्ध हुआ, जिसे अफीम युद्ध (Opium War) के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में जीत हुई अंग्रेजों की और परिणामस्वरूप ईस्ट इंडिया कंपनी को कानूनी तरीके से अफीम बेचने की इजाजत मिल गई।
इस प्रकार से आप को समझ में आया होगा कि चाय के चक्कर में अंग्रेजों ने किस प्रकार से दो देशों, भारत और चीन का इतिहास ही बदल डाला या फिर ऐसा कहे कि तबाह कर के रख दिया।
भारत में चाय का आगमन – Arrival of tea in India
भारत में चाय के आगमन को लेकर अलग-अलग मत हैं। एक मान्यता के अनुसार 1824 में असम की सीमान्त पहाड़ियों और बर्मा (म्यांमार) में चाय के पौधे पाए गए। अंग्रेजों ने चाय उत्पादन की शुरुआत 1836 में भारत और 1867 में श्रीलंका में की।
वहीं दूसरी मान्यता के अनुसार, 1850 से अंगेजों ने भारत में चाय के बागान लगाने शुरू किए। चाय के बागान पहले दार्जीलिंग (पश्चिम बंगाल) में, फिर असम में लगाए गए। शुरुआत में खेती के लिए बीज चीन से आते थे, बाद में असम की चाय के बीजों का उपयोग होने लगा।
भारत में इतना ज्यादा चाय का उत्पादन मूल रूप से ब्रिटेन के बाजारों में चाय की मांग को पूरा करने के लिए किया जाता था। उन्नीसवीं शताब्दी की शुरुआत में, भारत में चाय की खपत न के बराबर थी, क्योंकि कम लोगों को चाय के बारे में जानकारी थी। वहीं आज आप देश के किसी भी कोने पर चले जाइए, आप को कुछ मिले न मिले, लेकिन चाय की दुकान या टपरी जरूर मिल जाएगी।
अफीम की देन (Gift of Opium)
अफीम का जो कारोबार भारत में चल रहा था, उनमें पारसी समुदाय के लोग ज्यादा शामिल थे। आज टाटा ग्रुप एक विशाल व्यापारिक साम्राज्य है, जिनके ऊंचे सिद्धांतों की काफी चर्चा होती है, वो भी इस धंधे में शामिल थे। जमशेद जी जीजीभोय, जिनके नाम से जेजे अस्पताल और जेजे कॉलेज ऑफ आर्ट्स आज भी मुंबई शहर में शान से चल रहे हैं, उनकी संपत्ति-जायदाद और बाद में समाज सेवा, सब अफीम की देन है।
क्या आपने कभी सोचा था कि चाय के प्याले के पीछे इतनी दर्दनाक कहानी हो सकती है। अफीम का कानूनी धंधा धीरे-धीरे समाप्त हुआ। वैसे तस्करी तो आज भी होती है।
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