क्या आप जानते हैं, राजस्थान की दो रियासतों के बीच एक तरबूज के लिए हो गई थी लड़ाई, जिसे “मतीरे की राड़” नाम से जाना जाता है

मतीरे की राड़ की कहानी

आज के इस लेख में हम राजस्थान की दो रियासतों बीकानेर और नागौर के बीच हुई तरबूज की लड़ाई के बारे में जानेंगे, जिसे इतिहास में “मतीरे की राड़” नाम से जाना जाता है।

तो आइए जानते हैं……

मतीरे की राड़

‘मतीरे की राड़’ इसमें प्रयुक्त हुए शब्द आप सभी को बहुत अटपटे लग रहें होंगे कि ये कैसे शब्द हैं, इनके बारे में तो हमने पहले कभी सुना ही नही। तो बता दे कि ये राजस्थानी शब्द हैं, जिसमें मतीरे का अर्थ होता है तरबूज और राड़ का अर्थ होता है लड़ाई। इस प्रकार से मतीरे की राड़ का शाब्दिक अर्थ हुआ तरबूज की लड़ाई।

मतीरे की राड़ की कहानी

राजस्थान के इतिहास से भला कौन नहीं वाकिफ है। राजस्थान में बहुत से वीर-योद्धा पैदा हुए और अपनी सरजमीं की सुरक्षा के लिए ऐतिहासिक लड़ाइयां लड़ते हुए शहीद हो गए। शहीद होकर वो सभी वीर-योद्धा हमेशा-हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में अमर हो गए। इसी प्रकार की बहुत सी ऐतिहासिक लड़ाइयों के बारे में आप सभी ने इतिहास में पढ़ा होगा, लेकिन राजस्थान की दो रियासतों के बीच एक तरबूज के लिए लड़ाई लड़ी गई थी, जिसे मतीरे की राड़ नाम से जाना जाता है।

ये बात सुनकर आप सभी को बहुत ही अटपटा और हास्यास्पद लग रहा होगा, लेकिन ये सत्य है। मतीरे की राड़ दुनिया की एक मात्र ऐसी लड़ाई है, जो केवल एक फल के लिए लड़ी गई और इस लड़ाई में हजारों सैनिक शहीद हो गए थे। तो आइए अब इस लड़ाई के बारे में जान लेते हैं।

तो बात 1644 ईस्वी की राजस्थान की दो रियासतों बीकानेर और नागौर की है। बीकानेर रियासत का सीलवा गांव और नागौर रियासत का जाखणियां गांव, जो कि एक-दूसरे के समानांतर स्थित थे। यह दोनों गांव बीकानेर रियासत और नागौर रियासत की अंतिम सीमा थे।

मामला ये हुआ कि एक मतीरे (तरबूज) की बेल बीकानेर रियासत की सीमा में उगी, लेकिन फ़ैल गयी नागौर की सीमा में। कुछ दिन बाद उस पर एक मतीरा यानि तरबूज लग गया। बीकानेर का दावा था कि बेल हमारे इधर लगी है, इसलिए तरबूज हमारा है, वहीं नागौर का दावा था कि फ़ल तो हमारी ज़मीन पर पड़ा है, इसलिए फल हमारा है।

इसी बात को लेकर दोनों रियासतों में बहस हो गयी और बहस ने रूप ले लिया लड़ाई का। मतीरे के हक़ को लेकर दोनों पक्ष आपस में भिड़ गए और यह लड़ाई धीरे-धीरे युद्ध में परिवर्तित हो गयी। पहले तो इस युद्ध में किसान लड़ रहे थे बाद में इसमें दोनों रियासतों के सैनिक भी शामिल हो गए।

इस युद्ध में बीकानेर की सेना का नेतृत्व रामचंद्र मुखिया ने किया और नागौर की सेना का नेतृत्व सिंघवी सुखमल ने किया था। उस समय ये दोनों ही रियासतें मुग़ल साम्राज्य के अधीन थी। अब जब अधीन ही थीं तो इन दोनों ही रियासतों को मुग़ल साम्राज्य के हिसाब से ही काम करना पड़ता था।

उस समय बीकानेर रियासत के शासक थे राजा करण सिंह और वह मुगलों के लिए दक्षिण अभियान पर गए हुए थे। वहीं दूसरी रियासत नागौर के शासक राव अमर सिंह थे। राव अमर सिंह भी मुग़ल साम्राज्य की सेवा में व्यस्त थे।

मामले की जानकारी मिलते ही राव अमरसिंह ने आगरा लौटते ही बादशाह से इसकी शिकायत की, वहीं राजा करण सिंह ने सलावत खां बख्शी (यह शाहजहां का मीर था) को पत्र लिखा और बीकानेर की पैरवी करने को कहा। लेकिन मामला मुगल दरबार में चलता उससे पहले ही दोनों रियासतों में युद्ध हो गया और इस युद्ध में कई सैनिक शहीद हो गए। अंततः युद्ध में नागौर की हार हुई।

इस प्रकार से राजस्थान की दो रियासतों बीकानेर और नागौर के बीच एक फल यानी कि तरबूज के लिए लड़ाई लड़ी गई। इस लड़ाई को इतिहास में ‘मतीरे की राड़’ नाम से जाना जाता है।

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