क्या होता है Share Market यानी कि शेयर बाजार ? जानिए व समझिए शेयर मार्केट को सरल शब्दों में

आज के इस लेख में हम Share Market यानी कि शेयर बाजार के बारे में जानेंगे कि शेयर मार्केट क्या होता है और भारत में इसकी शुरुआत कब, कहां से व कैसे हुई?

तो आइए जानते हैं………

Share Market – शेयर बाजार

शेयर मार्केट दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है। एक शब्द है शेयर और दूसरा मार्केट। शेयर का मतलब हुआ हिस्सा और बाजार उस जगह को कहते हैं, जहाँ आप खरीद-बिक्री कर सके। इस प्रकार से शेयर बाजार का मतलब हुआ हिस्सेदारी खरीदने-बेचने की जगह। इसके आगे बात आई कि खरीद-बिक्री की जगह से क्या तात्पर्य है? तो इसके लिए एक सूचीबद्ध कंपनी चाहिए, जिसके माध्यम से हिस्सेदारी की खरीद-बिक्री की जा सके। इस प्रकार से शेयर बाजार (Stock Market) किसी सूचीबद्ध कंपनी में हिस्सेदारी खरीदने और बेचने की जगह है।

शुरुआत में शेयर मार्केट फिजिकली चलता था यानी कि जब शेयर बाजार शुरू हुआ उस समय दुनिया डिजिटल नहीं थी, लेकिन इलेक्ट्रानिक माध्यमों के आ जाने से अब Share Market इलेक्ट्रानिक माध्यमों से चलता है।

शेयर बाजार को एक अच्छे उदाहरण के माध्यम से समझते हैं

मान लीजिए घनश्याम नाम का कोई व्यक्ति है और उसने 500 बसें खरीदकर एक ट्रेवल एजेंसी की कंपनी खोल रखी है और उसका अच्छा खासा कारोबार चल रहा है, लेकिन वो अपने इस कारोबार को और बढ़ाना चाहता है। अब बढ़ाना चाहता है तो साधारण सी बात है इसके लिए और अधिक इन्वेस्टमेंट (निवेश) यानी कि पैसे की आवश्यकता पड़ेगी।

अब ये इन्वेस्टमेंट मिले कहां से? तो इसके लिए घनश्याम ने अपने एक जानकार दोस्त से पूछा कि यार एक बात बताओ, मैं कंपनी को और अधिक बढ़ाना चाहता हूँ, लेकिन उसके लिए मेरे पास पैसे नहीं है, तुम्हारे पास कुछ सलाह हो तो बताओ। घनश्याम के दोस्त ने कहा कि बस इतनी सी बात!!! इसका तो बहुत सरल उपाय है।

घनश्याम चौंकते हुए बोला कैसे, बताओ जरा। घनश्याम के दोस्त ने उपाय बताते हुए कहा कि तुम अपनी कंपनी का मूल्य निर्धारित (Valuation) करा के, इसके कुछ हिस्से का मालिक किसी और को बना दो। ऐसा करने से तुम्हे उस व्यक्ति द्वारा इन्वेस्टमेंट मिल जाएगा। देखिए, अभी तक इस एजेंसी या कंपनी का मालिक घनश्याम अकेला था, लेकिन अपनी इस कंपनी का कुछ हिस्सा वह इन्वेस्टमेंट प्राप्त करने के लिए किसी और के साथ शेयर करना चाहता है।

इसके लिए घनश्याम को सबसे पहले अपने दोस्त द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार कंपनी का Valuation कराना पड़ेगा कि आज की डेट में उसकी कंपनी का कुल मूल्य कितना है? कंपनी का कुल मूल्य कितना है, यह घनश्याम स्वयं से निर्धारित नहीं कर सकता है, इसके लिए उसे भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के स्वामित्व वाले Bombay Stock Exchange (BSE) या National Stock Exchange (NSE) नाम के दो प्रमुख शेयर बाजारों में से किसी एक में उसे कंपनी को पंजीकृत कराना पड़ेगा।

पंजीकृत होने के पश्चात् घनश्याम की कंपनी का Valuation होगा, उसके बाद घनश्याम अपनी कंपनी का Share या हिस्सा किसी और के साथ शेयर कर सकता है। कुलमिलाकर बात ये हुई कि BSE या NSE में ही किसी लिस्टेड कंपनी के शेयर ब्रोकर के माध्यम से ख़रीदे व बेचे जाते हैं।

अब मान लीजिए कि Bombay Stock Exchange ने घनश्याम की कंपनी का 100 करोड़ रूपए मूल्य निर्धारित किया। वहीँ दूसरी तरफ मान लीजिए कि रमेश नाम का व्यक्ति 10 करोड़ रूपए इन्वेस्ट करके घनश्याम की कंपनी का शेयर खरीदना चाहता है। यहाँ समझिएगा, घनश्याम की कम्पनी की कुल कीमत 100 करोड़ रूपए है और रमेश 10 करोड़ रूपए इस कंपनी में निवेश करना चाहता है। इस हिसाब से 100 करोड़ का 10% हो जाएगा 10 करोड़। यानी कि रमेश, घनश्याम की कंपनी का 10% शेयर खरीदते हुए 10% का मालिक हो गया।

10% का मालिक होने का मतलब ये हुआ कि कंपनी को अब महीने में या सालाना जितना भी फायदा होगा, उसका 10% हिस्सा रमेश को मिलेगा। इसके अलावा अगर कभी कंपनी बिचती है, तो कुल कीमत का 10% हिस्सा रमेश को भी मिलेगा।

अब आप सोच रहे होंगे कि कंपनी का 10% का मालिक रमेश को बनाने पर घनश्याम को क्या मिला? तो देखिए, जो बड़े-बड़े बिजनेसमैन होते हैं, वो अपनी कंपनी के कुछ शेयर दूसरे को बेचकर अपने कंपनी का स्वरूप और बड़ा कर लेते हैं। जैसे घनश्याम ने यहाँ 10 करोड़ में 10% शेयर रमेश को बेचा, तो उसे जो 10 करोड़ मिले, उससे वह 100 बसें और खरीदकर अपने कंपनी के स्वरूप को और बड़ा कर लेगा। इस प्रकार से कंपनी का मुनाफा बढ़ेगा और दोनों को फायदा होगा। इसे ही Market Capitalisation यानी कि बाजार पूंजीकरण कहा जाता है।

Share Market का जन्म कैसे हुआ?

भारतीय शेयर मार्केट 1840 में शुरू हुआ, जब ट्रेडिंग फ्लोर (खरीद-परोख्त करने वालों की बैठने की जगह) मुंबई में महात्मा गांधी रोड पर टाउन हाल के सामने एक विशाल बरगद के पेड़ के नीचे शुरू हुआ था। कुछ लोग इस पेड़ के नीचे अनौपचारिक रूप से कपास के व्यापार के लिए मिलते थे। यह मुख्य रूप से इस कारण था, क्योंकि मुंबई एक व्यस्त ट्रेडिंग बंदरगाह था और यहाँ अक्सर आवश्यक वस्तुओं का व्यापार होता था। यहीं से 22 लोगों ने एक साथ मिलकर शेयर बाजार की शुरुआत की और शेयरों का सौदा करना शुरू किया। कुछ सालों के बाद धीरे-धीरे दलालों की संख्या बढ़ती चली गई।

सन 1850 में कंपनी अधिनियम लागू किया गया, जिसके बाद निवेशकों ने कॉर्पोरेट सिक्योरिटीज में रूचि दिखानी शुरू की। लिमिटेड लायबिलिटीज (सीमित देनदारियां) की अवधारणा भी इस समय के आसपास दिखाई देना शुरू हुई थी। 1875 तक ‘द नेटिव शेयर एंड स्टॉक ब्रोकर एसोसिएशन’ नामक एक संगठन अस्तित्व में आया, जहाँ ब्रोकर्स एक रूपए एंट्री फीस के साथ शामिल होना शुरू हुए, जिसके बाद सभी ने मिलकर दलील स्ट्रीट पर अपना एक ऑफिस खोला।

आजादी के बाद, शेयर मार्केट की कहानी

आजादी के बाद देश संभलने की कोशिश में लगा हुआ था। आजादी के 10 साल बाद 31 अगस्त 1957 को सरकार ने BSE (Bombay Stock Exchange) को सिक्योरिटी एक्ट के तहत लाया और 1980 में BSE को दलाल स्ट्रीट पर शिफ्ट किया गया।

1980 तक BSE बहुत ही कम पारदर्शिता के साथ काम कर रहा था। इस वजह से इस दशक के अंत तक नए आर्थिक बल और आर्थिक ग्रोथ के लिए एक आधुनिक वित्तीय सिस्टम की जरुरत महसूस हुई। इसलिए मार्केट वैल्यू का डिरेगुलेशन (सरकारी नियंत्रण में कमी करना) किया गया और इसके बाद भारत सरकार ने 1998 में सेबी (SEBI- Securities and Exchange Board of India) की स्थापना की। तब से आज तक भारत का शेयर बाजार बढ़िया से चल रहा है।

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