चीन के साथ लगने वाली भारत की सीमा और उस पर विवाद, समझिए सरल शब्दों में

आज के इस लेख में हम ‘भारत-चीन सीमा – India-China border’ और ‘भारत-चीन सीमा विवादों – India-China border disputes’ के बारे में जानेंगे, क्योंकि यह अक्सर विवादों में रहती है और चीन इन सीमाओं के अंदर बार-बार घुसपैठ करने की कोशिश करता रहता है।

तो आइए जानते हैं……

चर्चा में क्यों ??

हाल ही में 9 दिसंबर को चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग वाले क्षेत्र में घुसपैठ की कोशिश की और दोनों देशों के सेनाओं के बीच हाथापाई हुई। हालांकि, भारतीय सैनिकों ने इसका मुहतोड़ जवाब देते हुए उन्हें यहां से धक्के मारकर खदेड़ दिया। इससे पहले 1975 में भी तवांग में विवाद हुआ था। तो आइए, अब भारत-चीन सीमा और उससे जुड़े विवादों के बारे में जानते हैं।

भारत-चीन सीमा – India-China Border

भारत, चीन के साथ लगभग 3488 किलोमीटर (सीमा की लंबाई का अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग उल्लेख मिलता है) लंबी सीमा सांझा करता है। ये सीमा जम्मू कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में लगती है। इस सीमा को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है- पश्चिमी क्षेत्र, मध्य क्षेत्र और पूर्वी क्षेत्र।

भारत से लगने वाली चीन की सीमा को लेकर चीन का दोगला रवैया रहा है। समझिएगा जरा, एक तरफ चीन जहां अरुणाचल प्रदेश और तिब्बत के बीच की मैकमोहन रेखा को नहीं मानता, वहीं दूसरी तरफ अक्साई चीन पर भारत के दावे को भी खारिज करता है, जिसे उसने 1962 के युद्ध के दौरान भारत से छीन लिया था।

भारत और चीन के बीच सीमा रेखा के मतभेद के चलते कभी भी सीमा का निर्धारण नहीं हो सका, यथास्थिति बनाए रखने के लिए लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल, यानी एलएसी (LAC – Line of Actual Control) टर्म का इस्तेमाल किया जाने लगा। हालांकि, अभी ये भी स्पष्ट नहीं है। दोनों देश अपनी अलग-अलग लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल बताते हैं। चीन की वर्षों से फितरत रही है, LAC का उल्लंघन करने की। बीच-बीच में अपना रौब दिखाने और माहौल बाजी करने के लिए चीनी सैनिक भारतीय सीमा क्षेत्र में घुसपैठ करने की कोशिश करते रहते हैं।

पूर्वी क्षेत्र – Eastern Sector

इसके अंतर्गत अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम का चीन से लगने वाला क्षेत्र आता है।

मध्य क्षेत्र – Central Sector

इसके अंतर्गत हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड का चीन से लगने वाला क्षेत्र आता है।

पश्चिमी सेक्टर – Western Sector

इसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर और लद्दाख का चीन से लगने वाला क्षेत्र आता है।

भारत-चीन सीमा विवाद – India-China border disputes

चीन, तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच मैकमोहन रेखा को नहीं मानता है। यहां तक कि चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा बताकर उस पर दावा करता है। मैकमोहन रेखा को न मानने के पीछे चीन का ये तर्क है कि 1914 में जब ब्रिटिश भारत और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने ये समझौता किया था, तब चीन वहां पर मौजूद नहीं था। चीन का कहना है कि तिब्बत, चीन का हिस्सा है, इसलिए तिब्बत खुद उस पर कोई निर्णय नहीं ले सकता।

इसके अलावा चीन का कहना है कि तिब्बत में रहने वाले बौद्ध अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में स्थित मठ की पूजा करने आते हैं, इसलिए यह दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है। जानकार बताते है कि 1914 में तिब्बत एक स्वतंत्र और कमजोर मुल्क था, लेकिन चीन ने तिब्बत को कभी स्वतंत्र मुल्क नहीं माना। चीन ने अपनी आजादी के एक साल बाद 1950 में तिब्बत को पूरी तरह से अपने कब्जे में ले लिया।

अरुणाचल प्रदेश के सीमा क्षेत्रों की निगरानी करने में भारतीय सैनिकों को दिक्कत

पूरे अरुणाचल प्रदेश में हिमालय विस्तृत है। यहां हिमालय की गहरी-ऊँची और दुर्गम चोटियां हैं, जिनके ऊपर बर्फ ढकी हुई है। इस प्रकार की स्थिति में यहां की निगरानी करना बहुत कठिन हो जाता है, खासतौर पर प्रतिदिन। वहीं चीन साइड का जो क्षेत्र है, वह समतल है। इस वजह से चीन अपने क्षेत्र में सैनिक संसाधन विकसित करने में कामयाब रहा। चीन को इसका फायदा ये होता है कि चीन के सैनिक बड़ी आसानी से यहां की निगरानी हर समय कर लेते हैं। कहने का आशय है कि ये हर समय यहीं उपस्थित रहते हैं।

भारत के साथ स्थिति ये है कि इन हिमालय की दुर्गम चोटियों पर पेट्रोलिंग करना और सीमा क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करना, अपने आप में बड़ा चैलेंजिंग टास्क हो जाता है। इसी चैलेंज को खत्म करने के लिए भारत सरकार ने हाल ही में 40 हजार करोड़ रूपए का बजट घोषित किया है, जिसकी मदद से बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन के माध्यम से पूरे सीमा क्षेत्र में सड़क का निर्माण किया जाना है।

इंफ्रास्टक्चर तैयार कर रहा है भारत

  • केंद्र सरकार चीन के मंसूबों को स्थायी तौर पर काउंटर करने के लिए पूर्वोत्तर में 40 हजार करोड़ रुपए की लागत से फ्रंटियर हाइवे बनाने जा रही है। करीब 2 हजार किलोमीटर लंबा यह हाइवे अरुणाचल प्रदेश की लाइफ लाइन और चीन के सामने भारत की स्थायी ग्राउंड पोजीशन लाइन भी साबित करेगा।
  • सामरिक महत्व की बात करें, तो यह हाइवे भारत-तिब्बत के बीच खींची गयी सीमा रेखा मैकमोहन लाइन से होकर गुजरेगा। अंग्रेजों के विदेश सचिव हेनरी मैकमोहन ने इसे सीमा के तौर पर पेश किया था और भारत इसे ही असली सीमा मानता है, जबकि चीन खारिज करता रहा है।
  • इस हाइवे का निर्माण सीमा सड़क संगठन (BRO) और नेशनल हाइवे अथॉरिटी मिलकर करेंगे। सेना लॉजिस्टिक सपोर्ट देगी। फ्रंटियर हाइवे तवांग के बाद ईस्ट कामेंग, वेस्ट सियांग, देसाली, दोंग और हवाई के बाद म्यांमार तक जाएगा।

15 जून 2020 में गलवान घटना के बाद, यानी कि डेढ़ साल बाद यह पहला मौका था, जब भारतीय और चीनी सैनिक अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में आपस में भिड़े।

1962 के बाद दोनों देशों के बीच बड़े विवाद

1967

सिक्किम-तिब्बत बॉर्डर के चोला और नाथूला के पास भारत ने चीन को करारा जवाब दिया, इसमें भारत के 80 सैनिक शहीद हुए, वहीं चीन के 400 सैनिक मारे गए थे।

1975

चीन ने अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला (तवांग के पास) में असम राइफल्स के जवानों की पेट्रोलिंग टीम पर अटैक किया, इस हमले में चार भारतीय जवान शहीद हो गए थे।

1987

भारत-चीन के बीच तवांग के उत्तर में समदोरांग चू के इलाके में टकराव हुआ। बातचीत के बाद बिना किसी खून-खराबे के मामला शांत हो गया।

2017

डोकलाम में 75 दिन तक सेनाएं आमने-सामने डटी रहीं। चीन ने यहाँ सड़क निर्माण का कार्य शुरू किया था, तो भारतीय सैनिकों ने उसे रोक दिया था।

2020

लद्दाख के गलवान घाटी में दोनों सेनाओं के बीच झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे, जबकि चीन के 38 सैनिक मारे गए थे।

2022

अरुणाचल प्रदेश के तवांग में चीनी सैनिकों ने भारतीय पोस्ट को हटाने की कोशिश की, इस दौरान हुई मुठभेड़ में भारत के 6 जवान घायल हुए। चीनी सैनिकों को हमसे ज्यादा नुकसान हुआ।

चीन के इरादे नेक नहीं

चीन 14 देशों के साथ लगभग 22 हजार किलोमीटर सीमा सांझा करता है। चीन अकेले भारत के साथ 3488 किलोमीटर की सीमा सांझा करता है, वहीं भूटान के साथ चीन की 400 किलोमीटर सीमा लगती है। जिस किसी भी देश के साथ चीन की सीमा लगती है, तो उस देश का चीन के साथ बॉर्डर में कुछ-न-कुछ विवाद जरूर चल रहा होता है। सीमा क्षेत्र में घुसपैठ करने के लिए चीन जाना ही जाता है। ऐसा वो अपनी विस्तारवादी नीति की वजह से करता है।

1914 में तय हुई थी मैकमोहन रेखा – McMahon Line was decided in 1914

1914 में भारत-चीन के बीच सीमांकन को लेकर मैकमोहन रेखा का निर्धारण किया गया था और भारत इसे ही मानता है। ऊपर इमेज को देखिए, जो रेड लाइन भारत-चीन बॉर्डर में दिख रही है, वही मैकमोहन रेखा है। अब जरा समझिएगा, 1914 में मैकमोहन रेखा तय हुई, इसके बाद 1947 में भारत आजाद हुआ और उसके दो साल बाद 1949 में चीन आजाद हुआ। अपनी आजदी के एक साल साल बाद 1950 में चीन ने अरुणाचल प्रदेश के ऊपर जो तिब्बत देश था, उस पर कब्जा कर लिया।

उसके कुछ सालों बाद 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान चीन ने भारत के लद्दाख के कुछ हिस्से में कब्जा कर लिया, जिसे अक्साई चीन के नाम से जाना जाता है। चीन ने जब कब्जा कर लिया, तो उसने मैकमोहन रेखा को मानने से इंकार कर दिया। इसके बाद जब भारत ने अक्साई चीन पर अपना हक जताया, तो चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश को अपना बताने लगा। इस प्रकार से चीन के दोगले रवैये को आप सभी समझ गए होंगे।

इसी आपसी मतभेद के चलते 1993 में LAC का निर्धारण हुआ। ऊपर इमेज में आप देखिए, रेड लाइन के अंदर जो ब्लैक डॉट दिख रही है, वही LAC है। उसके बीच में, यानी कि मैकमोहन रेखा और LAC के बीच जो हिस्सा है, चीन का उस पर कब्जा है। 1993 में चीन LAC बॉर्डर को मानने के लिए तैयार हो गया, क्योंकि चीन को इससे फायदा होने वाला था।

चीन की चाल – China Move

  • अरुणाचल प्रदेश से सटे 15 इलाकों के नाम बदले।
  • 15 में से 8 क्षेत्रों में तिब्बती लोग रहते हैं।
  • 2017 में चीन ने 6 स्थानों के नाम बदले थे।
  • अक्टूबर में इससे संबंधित कानून बनाया था।

लाठी-डंडों का इस्तेमाल किया जाता है

दोनों देशों के बीच मिलिट्री लेवल पर एक समझौता है, इसके तहत दोनों देशों के सैनिक एक तय दायरे में फायरिंग आर्म्स यानी रायफल या ऐसे ही किसी भी हथियार का इस्तेमाल नहीं करेंगे। अमूमन दोनों देशों के सैनिक एक-दूसरे को हाथों से ही पीछे धकेलते हैं। गलवान झड़प में चीनी सैनिकों ने कांटेदार डंडों का इस्तेमाल किया था, इसके बाद भारतीय सैनिकों ने भी इसी तरह के इलेक्ट्रिक बैटन और कांटेदार डंडों का इस्तेमाल शुरू कर दिया, लिहाजा अब चीन को मुहतोड़ जवाब मिलता है।

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