क्या है प्राण प्रतिष्ठा, क्यों की जाती है और कैसे की जाती है, क्या है इसका महत्व ? समझिए यहां…..

प्राण प्रतिष्ठा

आज के इस लेख में हम प्राण प्रतिष्ठा के बारे में जानेंगे कि प्राण प्रतिष्ठा (Pran Pratishtha) क्या होती है, क्यों की जाती है, कैसे की जाती है और इसका हिंदू धर्म में क्या महत्व है ?

तो आइए जानते हैं…….

चर्चा में क्यों ?

22 जनवरी 2024 को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में बने भव्य राम मंदिर में रामलाल की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की जानी है।

प्राण प्रतिष्ठा क्या है (What is Pran Pratishtha) ?

हिंदू धर्म परंपरा में प्राण प्रतिष्ठा एक पवित्र अनुष्ठान होता है। प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया का उल्लेख वेदों में किया गया है। विभिन्न पुराणों, जैसे- मत्स्य पुराण, वामन पुराण, नारद पुराण…. आदि में इसका विस्तार से वर्णन मिलता है। प्राण प्रतिष्ठा शब्द में प्राण का अर्थ होता है जीवन और प्रतिष्ठा का अर्थ होता है स्थापित करना। ऐसे में प्राण प्रतिष्ठा शब्द का अर्थ हुआ, किसी मूर्ति या प्रतिमा में उस देवता या देवी के प्राण को स्थापित करना या जीवंत शक्ति स्थापित करना। शास्त्रों और धर्माचार्यों के अनुसार, जब किसी मूर्ति या प्रतिमा की एक बार प्राण प्रतिष्ठा हो जाती है, तो वह मूर्ति एक देवी या देवता में बदल जाती है।

प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जाती है (Why is Pran Pran Pratishtha done) ?

किसी मूर्ति या प्रतिमा में किसी देवी या देवता को जीवंत शक्ति स्थापित या प्राण स्थापित के लिए प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। यानी कि जब किसी प्रतिमा की एक बार प्राण प्रतिष्ठा कर दी जाती है, तो उसमें किसी देवी या देवता की शक्ति स्थापित हो जाती है। मंत्रोच्चार के माध्यम से देवी या देवताओं को आवाहन किया जाता है कि आप इसमें विराजमान हो जाए। किसी भी मूर्ति या प्रतिमा में संबंधित देवी या देवता की शक्ति स्थापित करने के लिए प्राण प्रतिष्ठा की जाती है। ऐसी मान्यता है की प्राण प्रतिष्ठा के उपरांत उस मूर्ति या प्रतिमा में संबंधित देवी या देवता की शक्ति स्थापित हो जाती है। यानी कि वो मूर्ति जीवंत रूप को पा जाती है।

प्राण प्रतिष्ठा कैसे की जाती है (How is Pran Pratishtha done) ?

किसी भी मूर्ति या प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए परंपरागत कई रीति-रिवाजों का पालन करना पड़ता है। ये रीति-रिवाज कई चरणों में हो सकते हैं। किसी भी मूर्ति या प्रतिमा के लिए प्राण प्रतिष्ठा में शामिल चरण समारोह की भव्यता और दिव्यता पर निर्भर करते हैं। जैसे श्री राम मंदिर में रामलाल की प्राण प्रतिष्ठा के लिए मंदिर ट्रस्ट-श्री राम मंदिर जन्म भूमि क्षेत्र ने कहा कि प्राण प्रतिष्ठा से पहले सात दिवसीय अनुष्ठान होगा। यानी कि प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम 16 से शुरू होकर 22 तक चलेगा।

प्राण प्रतिष्ठा कैसे की जाती है? इसको हम रामलला के प्राण प्रतिष्ठा से समझते हैं। श्री रामलला प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में उल्लेखित किया गया है कि पहले दिन पुजारी सरयू नदी के तटबंध को छूकर ‘विष्णु पूजा’ शुरू करेंगे और ‘गौ दान’ का आयोजन करेंगे। इसके अगले दिन शोभा यात्रा का आयोजन होगा। यानी की रामलाल की मूर्ति अयोध्या में शोभा यात्रा के लिए निकाली जाएगी। इस शोभा यात्रा के दौरान आम जनमानस रामलला का दर्शन कर उनकी जय-जयकार करेंगे। माना जाता है कि इस प्रक्रिया के दौरान दर्शकों की भक्ति प्रतिमा में स्थानांतरित हो जाएगी।

शोभा यात्रा के बाद प्रतिमा को वापस मंडप में लाया जाएगा। अगले दिन नवग्रह शांति हवन सहित अन्य कई पूजाएं की जाएगी, जो सभी ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए की जाती हैं। इसके बाद मंदिर के गर्भगृह को सरयू नदी के जल से धोया जाएगा और इसके बाद रामलला के सिंहासन को धोया जाएगा। इसके बाद आएगा अधिवास का दौर। अधिवास वह प्रक्रिया है, जिसमें मूर्ति को विभिन्न सामग्रियों में डुबोया जाता है। इस आधार पर एक रात के लिए रामलला की मूर्ति को पानी में रखा गया, जिसे जलाधिवास कहा जाता है।

इसके बाद मूर्ति को अनाज में डुबोया जाएगा, जिसे धनादिवास कहा जाता है। भारतीय धर्म ग्रंथो में ऐसी मान्यता है कि मूर्ति निर्माण के दौरान जब किसी मूर्ति पर शिल्पकार के औजारों से चोटें आ जाती हैं, तो वह अधिवास के दौरान ठीक हो जाती हैं। इसके बाद मूर्ति को अनुष्ठानिक स्नान कराया जाता है। इस दौरान अलग-अलग सामग्रियों से प्रतिमा का स्नान, अभिषेक कराया जाता है। इस संस्कार में 108 प्रकार की सामग्रियां शामिल हो सकती हैं, जिसमें पंचामृत, गाय के सींगों पर डाला गया पानी और गन्ने का रस, सुगंधित फूल व पत्तियों के रस…..इत्यादि शामिल होता है।

मूर्ति के निर्माण के तनाव से पर्याप्त रूप से उबरने और अनुष्ठानिक स्नान कराने के बाद प्राण प्रतिष्ठा से पहले प्रतिमा को जगाने का काम किया जाता है। इस दौरान कई मंत्रों का जाप किया जाता है, जिसमें विभिन्न देवताओं से आने और मूर्ति के विभिन्न हिस्सों को चेतन करने के लिए आवाहन किया जाता है। सूर्य देवता से आंखें, चंद्र देवता से मन, वायु देवता से कान …… आदि जागृत करने का आवाहन होता है।

फिर अंतिम चरण आता है मूर्ति की आंखों का खुलना, जिसे पट खुलना भी कहते हैं। इसे ही मुख्य रूप से प्राण प्रतिष्ठा समझा जाता है। इस समारोह में देवता की आंखों के चारों ओर सोने की सुई के साथ कुछ हद तक का काजल की तरह अंजन लगाया जाता है। यह प्रक्रिया मूर्ति के पीछे से की जाती है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि भगवान की आंखें खुलते ही अगर कोई उनकी ओर देखता है, तो उनकी दिव्यता से उसे नुकसान हो सकता है, क्योंकि उनकी चमक बहुत तेज होती है। अंजन लगाने के बाद मूर्ति की आंखें खोली जाती हैं इस तरह प्राण प्रतिष्ठा पूरी होती है।

प्राण प्रतिष्ठा का महत्व (Importance Of Pran Pratishtha)

मंदिरों में किसी भी देवी या देवता की मूर्ति स्थापित करने से पहले प्राण प्रतिष्ठा जरूर की जाती है। मान्यता है कि ऐसा करने से मूर्ख में प्राण आ जाते हैं और वह पूजनीय हो जाती है। हमारे शास्त्र और ग्रंथों में उल्लेखित है कि बिना प्राण प्रतिष्ठा के किसी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है। प्राण प्रतिष्ठा में मूर्तियों की शिल्पगत सुंदरता का महत्व नहीं होता है। अगर कोई साधारण-सा पत्थर भी रख दिया जाए और उसकी प्राण प्रतिष्ठा कर दी जाए, तो वह पत्थर भी उतना ही फलदायक रहता है, जितनी की कोई मूर्ति सुंदर कलाकार द्वारा निर्मित की गई होती है।

बहुत से पवित्र तीर्थ स्थलों में आपने यह देखा होगा कि 12 ज्योतिर्लिंग हजारों वर्ष पहले किसी महान सत्ता के द्वारा प्राण प्रतिष्ठा के माध्यम से जागृत किए गए थे। इन ज्योतिर्लिंगों में शिल्प की दृष्टि से कोई बहुत सुंदरता नहीं है। केदारनाथ की ही बात कर लीजिए, तो केदारनाथ में हम जिस मूर्ति की उपासना करते हैं, वह एक अनगढ़ चट्टान का टुकड़ा अथवा मात्र पत्थर जैसी प्रतीत होती है, लेकिन उसकी दिव्यता अद्भुत है।

किसी भी मूर्ति का मूल्य उसके पत्थर की कीमत या उसकी सुंदरता से नहीं आंका जाता। यह इस बात पर निर्भर करता है कि उस स्थान विशेष के क्षेत्र में पहुंचते ही भक्तों को दिव्यता का अनुभव होने लगता है तथा ईश्वर के साथ उनका संपर्क तत्काल जुड़ने लगता है। यानी कि भक्तों को एक अलग प्रकार की ऊर्जा का अनुभव होने लगता है। प्राण प्रतिष्ठा एक असाधारण और अद्भुत कार्य है। ऐसा इसलिए…. क्योंकि बहुत ही कम साधु-संत ऐसे पैदा हुए हैं, जो प्राण प्रतिष्ठा करने में समर्थ होते हैं, इस वजह से इसका एक अलग महत्व है। हजारों वर्ष पहले किसी महापुरुष द्वारा 12 ज्योतिर्लिंग प्राण-प्रतिष्ठित किए गए थे, जो आजतक चले आ रहे हैं।

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FAQ:

प्रश्न: राम मंदिर का निर्माण कहां कराया गया है?

उत्तर: उत्तर प्रदेश के अयोध्या में।

प्रश्न: राम मंदिर का निर्माण किस शैली में किया गया है?

उत्तर: नागर शैली

प्रश्न: सर्वोच्च न्यायालय ने विवादित भूमि पर हिंदुओं के पक्ष में कब फैसला सुनाया कि वो इस पर मंदिर का निर्माण कर सकते हैं?

उत्तर: 2019

प्रश्न: अयोध्या कहां है?

उत्तर: अयोध्या भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित एक जिला व प्रमुख शहर है?

प्रश्न: अयोध्या किस नदी के तट पर स्थित है?

उत्तर: सरयू नदी

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