Shri Sammed Shikharji: जैन धर्म के पवित्र तीर्थ स्थल श्री सम्मेद शिखरजी को लेकर विवाद, उसका महत्व और उसकी मान्यताएं

Shri Sammed Shikharji - जैन धर्म

आज के इस लेख में हम जैन धर्म या जैन समुदाय के सबसे पवित्र तीर्थ स्थल श्री सम्मेद शिखरजी – Shri Sammed Shikharji के बारे में जानेंगे कि जैन धर्म में इसका क्या महत्व है, साथ ही जैन धर्म और सम्मेद शिखरजी से जुड़ी अन्य जानकारियों के बारे में भी जानेंगे।

तो आइए जानते हैं……

चर्चा में क्यों ?

दरअसल, झारखंड सरकार ने जैन धर्म के दिगंबर और श्वेताम्बर समाज के पवित्र तीर्थ स्थल भगवान पारसनाथ पर्वत, जिसे श्री सम्मेद शिखरजी तीर्थ स्थल भी कहा जाता है, उसको पर्यटन स्थल घोषित कर दिया है। इसी वजह से जैन समुदाय के लोग देश भर में विरोध प्रदर्शन करने सड़कों पर उतरे। प्रदर्शनकारी झारखंड सरकार से फैसला बदलने की मांग कर रहे हैं।

जैन समुदाय के लोगों का कहना है कि पर्यटन स्थल हो जाने पर यहां आसपास कई होटल खुलेंगे, तरह-तरह के लोग आएंगे, यहां तक कि शराब व मांस का सेवन किए हुए लोग भी इसमें प्रवेश करेंगे, जिसकी वजह से पवित्र तीर्थ स्थल दूषित होगा। इस वजह से जैन समुदाय नाराज है। जैन समाज के मुनियों ने कहा है कि जो भी हमारी मांगे हैं, उन्हें शांतिपूर्ण तरीके से रखें।

ऐसे शुरू हुआ विरोध व विवाद

सम्मेद शिखर के आसपास के इलाके में मांस-मदिरा की खरीद-बिक्री और सेवन प्रतिबंधित है। कुछ दिन पहले शराब पीते युवक का वीडियो वायरल हुआ था। इसके बाद विवाद शुरू हुआ। धर्मस्थल से जुड़े लोगों का मानना है कि पर्यटन स्थल घोषित होने के बाद से जैन धर्म का पालन नहीं करने वाले लोगों की यहां भीड़ बढ़ी और यहां मांस-मदिरा का सेवन करने वाले लोग आने लगे।

2019 में हुआ था नोटिफाई

2019 में केंद्र सरकार ने सम्मेद शिखर को इको सेंसिटिव जोन घोषित किया था। इसके बाद झारखंड सरकार ने एक संकल्प जारी कर जिला प्रशासन की अनुशंसा पर इसे पर्यटन स्थल घोषित किया।

श्री सम्मेद शिखरजी – कहां है सम्मेद शिखर – Shri Sammed Shikharji

  • शिखरजी या श्री शिखरजी या पारसनाथ पर्वत भारत के झारखंड राज्य के गिरिडीह जिले में छोटा नागपुर पठार (मधुबन क्षेत्र) पर स्थित एक पहाड़ी है। यह विश्व का सबसे महत्वपूर्ण जैन तीर्थ स्थल भी है।
  • 1350 मीटर (4430 फुट) ऊँचा यह पहाड़ झारखंड का सबसे ऊँचा स्थान भी है।
  • श्री सम्मेद शिखरजी के रूप में चर्चित इस पुण्य क्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 तार्थंकरों (सर्वोच्च जैन गुरुओं) ने मोक्ष की प्राप्ति की।
  • 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी यहीं निर्वाण प्राप्त किया था।

स्थिति

शिखरजी जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। पारसनाथ पर्वत विश्व प्रसिद्ध है। यहाँ हर साल लाखों जैन धर्मावलंबी आते हैं। साथ-साथ अन्य पर्यटक भी पारसनाथ पर्वत की वंदना करना जरुरी समझते हैं। गिरिडीह स्टेशन से पर्वत की तलहटी मधुवन तक क्रमशः 14 से 18 मील है। पहाड़ की चढ़ाई-उतराई तथा यात्रा करीब 18 मील की है। सम्मेद शिखर जैन धर्म को मानने वालों का एक प्रमुख तीर्थ स्थान है। यह जैन तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसलिए यह सिद्ध क्षेत्र कहलाता है और जैन धर्म में इसे तीर्थराज अर्थात तीर्थों का राजा कहा जाता है।

झारखंड का हिमालय माने जाने वाले इस पवित्र पर्वत के शिखर पर पहुंचने के लिए जंगल और दुर्गम रास्तों से जाना पड़ता है। 9 किलोमीटर की यात्रा पैदल या डोली से श्रद्धालु पूरा करते हैं।

शाश्वत तीर्थ

  • जैन ग्रंथों के अनुसार सम्मेद शिखरजी और अयोध्या इन दोनों का अस्तित्व सृष्टि के समांतर है, इसलिए इनको शाश्वत माना जाता है।
  • प्राचीन ग्रंथों में यहां पर तीर्थंकरों और तपस्वी संतो ने कठोर तपस्या और ध्यान द्वारा मोक्ष प्राप्त किया।
  • यही कारण है कि जब सम्मेद शिखर तीर्थ यात्रा शुरू होती है, तो हर तीर्थयात्री का मन तीर्थंकरों का स्मरण कर अपार श्रद्धा, आस्था, उत्साह और खुशी से भरा होता है।

मान्यताएं

  • जैन धर्म शास्त्रों में लिखा है कि अपने जीवन में सम्मेद शिखर तीर्थ की एक बार भावपूर्ण यात्रा करने पर मृत्यु के बाद व्यक्ति को पशु योनि और नरक प्राप्त नहीं होता।
  • यह भी लिखा गया है कि जो व्यक्ति सम्मेद शिखर आकर पूरे मन और निष्ठा से भक्ति करता है, तो उसे मोक्ष प्राप्त होता है और इस संसार के सभी जन्म-कर्म के बंधनों से अगले 49 जन्मों तक वह मुक्त रहता है।
  • यह सब तभी संभव होता है, जब यहां पर सभी भक्त तीर्थंकरों को स्मरण कर उनके द्वारा दिए गए उपदेशों, सुझाव और सिद्धांतों का शुद्ध आचरण के साथ पालन करें।
  • इस प्रकार यह क्षेत्र बहुत पवित्र माना जाता है। इस क्षेत्र की पवित्रता और सात्विकता के प्रभाव से ही यहां पर पाए जाने वाले शेर, बाघ आदि जंगली पशुओं का स्वाभाविक हिंसक व्यवहार नहीं देखा जाता। इस कारण तीर्थयात्री भी बिना भय के यात्रा करते हैं।
  • संभवत इसी प्रभाव के कारण प्राचीन समय से कई राजाओं, आचार्य, भट्टारक (मठों के स्वामी) और श्रावकों ने आत्म कल्याण और मोक्ष प्राप्ति की भावना से तीर्थयात्रा के लिए विशाल समूहों के साथ यहां आकर तीर्थंकरों की उपासना, ध्यान और कठोर तप किया।

मोक्ष स्थान

  • जैन नीति शास्त्रों में वर्णन है कि जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ अर्थात भगवान ऋषभदेव ने कैलाश पर्वत पर, 12वें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य ने चंपापुरी, 22वे तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ ने गिरनार पर्वत और 24वें और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने पावापुरी में मोक्ष प्राप्त किया।
  • शेष 20 तीर्थंकरों ने सम्मेद शिखर में मोक्ष प्राप्त किया।
  • जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी इसी तीर्थ में कठोर तप और ध्यान द्वारा मोक्ष प्राप्त किया था। अतः भगवान पार्श्वनाथ की टोंक इस शिखर पर स्थित है। पार्श्वनाथ का प्रतीक चिन्ह सर्प है।
  • जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। ‘जैन’ जिन से बना है। जिन बना है जि धातु से, जिसका अर्थ है जीतना।
  • जिन्होंने अपने मन को जीत लिया, अपनी वाणी को जीत लिया और अपनी काया को जीत लिया, वे हैं जिन। शरीर पर ना कोई वस्त्र, शुद्ध शाकाहारी भोजन और मीठी बोली एक जैन अनुयायी की पहली पहचान है।
  • भगवान महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे, जिनका जन्म लगभग ई. पू. 599 में हुआ। महावीर ने अपने जीवन काल में पूर्व जैन धर्म की नींव काफी मजबूर कर दी थी।
  • अहिंसा को उन्होंने जैन धर्म में अच्छी तरह स्थापित कर दिया था। सांसारिकता पर विजयी होने के कारण वे जिन (जयी) कहलाए। उन्हीं के समय से इस संप्रदाय का नाम जैन हो गया।

जैन धर्म का जो पंचशील सिद्धांत हैं, वो महावीर ही ने दिए थे, जो निम्न हैं

पंचशील सिद्धांत

अहिंसा– जीवन का पहला मूल सिद्धांत है अहिंसा परमो धर्म, यानी कि अहिंसा में ही जीवन का सार समाया है।

सत्य– सत्य बोलना यानी सही का चुनाव करना। जैसे- उचित और अनुचित में से उचित का चुनाव करना, शाश्वत व क्षणभंगुर में से शाश्वत को चुनना।

अचौर्य (अस्तेय)– यानी चोरी ना करना, साथ ही किसी वस्तु को हड़पने की सोचना तक नहीं।

त्याग– यानी संपत्ति का मालिक नहीं। संपत्ति का मालिक नहीं होने से सांसारिक वस्तुओं, व्यक्तियों और विचारों का मोह छूट जाता है।

ब्रह्मचर्य– सदाचारी जीवन जीने के लिए यह सिद्धांत उपरोक्त 3 सिद्धांतों अहिंसा, सत्य और अचौर्य के परिणाम स्वरूप फलीभूत होता है, इसका शाब्दिक अर्थ है ब्रह्मा + चर्य, अर्थात ब्रह्मा (चेतना) में स्थिर रहना।

जैन समुदाय से संबंधित अन्य जानकारी

  • जैन समुदाय, देश का सबसे शांत, सामर्थ्य एवं अल्पसंख्यक समुदाय है, जो अपने बारे में क्लेम करता है कि वह अन्य समुदायों की अपेक्षा कई गुना ज्यादा टैक्स भारत सरकार को देता है।
  • जैन धर्म के लोग एक चींटी तक को मारने को पाप समझते हैं।
  • जैन धर्म के लोग खेती नहीं करते हैं। इसके पीछे का तर्क है कि खेती करेंगे तो खेतों की जुताई करनी पड़ेगी, इस दौरान धरती की जुताई करने को भी ये पाप समझते हैं।
  • जैन धर्म के लोग जमीन के अंदर उगने या पैदा होने वाली चीजों का सेवन नहीं करते हैं। इसके पीछे का तर्क है कि जो चीज जमीन के अंदर उगी है, उसमें किसी जीव का अंश हो सकता है। इसके अलावा दूसरा तर्क ये है कि जमीन के अंदर उगने वाली चीजों में डायरेक्ट सूर्य का प्रकाश नहीं पहुँचता है, इस वजह से वो कम ऊर्जावान होगी और ऐसी चीजों का इस्तेमाल करने से इंसान मंदबुद्धि होगा, यानी कि दिमाग का विकास कम होगा।
  • कहा जाता है कि जैन धर्म के लोग शाम के बाद खाना नहीं खाते हैं।

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