ISIS का जन्म कैसे हुआ? क्या है IS, ISI और ISIS ? जानें विस्तार से आसान भाषा में….

ISIS के उत्पत्ति की पूरी कहानी | जाने आसान भाषा में

आज के इस लेख में हम हमेशा सुर्खियों में रहने वाले IS, ISI और ISIS के बारे में जानेंगे की आखिर ये क्या हैं और इनकी उत्पत्ति कैसे हुई, किसका रहा इनकी उत्पत्ति में योगदान?

तो आइये जानते है…….

IS – इस्लामिक स्टेट

IS या इस्लामिक स्टेट को ऐसे समझे की ऐसे देश जो बहुसंख्यक मुस्लिम रहवासी के रूप में जाने जाते है। मतलब ऐसे देश जहाँ बहुसंख्यक के रूप में मुस्लिम रहते हो। जैसे- पाकिस्तान, अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, ईरान, सऊदी अरब ऐसे ही और कई देश है।

इन्हीं IS या इस्लामिक स्टेट में आपसी मतभेद, शासन सत्ता, प्रभुत्व स्थापित करने के पीछे से शुरू होती है ISI और ISIS की कहानी। हालांकि, इनके बीच मध्यस्थता या इनके निर्माण में विकसित देशों का हाथ रहा है, तो आइये अब ISI और ISIS की उत्पत्ति के बारे में जानते है।

ISI की उत्पत्ति – Origin Of ISI

ईरान और अमेरिका का आपसी मेल कभी नहीं रहा और न ही आज है, लेकिन ईरान को परेशान करने या तबाह करने के उद्देश्य से अमेरिका ने ईरान पर डायरेक्ट हमला कभी नहीं किया, पर अपना उद्देश्य पूरा करने के लिए अमेरिका ने ईरान के पड़ोसी देश खासतौर से इराक का इस्तेमाल किया।

सूत्रों और कई जानकारों के माध्यम से पता चला की अमेरिका ने इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को ईरान पर हमला करने के लिए रासायनिक हथियार (Chemical Weapons) दिए थे। अमेरिका का कहना था की हम तुमको रासायनिक हथियार देते है और तुम इनको ईरान पर छोड़ दो, लेकिन इराक ने अमेरिका की ये बात नहीं मानी।

जब सद्दाम हुसैन ने अमेरिका की ये बात नहीं मानी तो अमेरिका को लगा की मेरी ही बिल्ली और मुझसे ही म्याऊँ-म्याऊँ। तो अमेरिका ने सद्दाम हुसैन को मारने के लिए इराक पर केवल इस बहाने एक ऑपरेशन लांच कर दिया कि इराक अपने पड़ोसी मुल्क कुवैत पर आक्रमण कर रहा है और उसके पास रासायनिक हथियार है, इसलिए उसे नियंत्रित करने के लिए हम उस पर हमला करेंगे।

अब सोचिए रासायनिक हथियार अमेरिका ने ही दिए थे, लेकिन जब अमेरिका अपने प्रयासों में सफल नहीं हुआ, तो इस बात को दबाने के उद्देश्य से की इराक के पास रासायनिक हथियार है और वह इसका इस्तेमाल अपने पड़ोसी मुल्कों पर कर सकता है, इसलिए हम उस पर अटैक करेंगे। अपने ही द्वारा किए गए कारनामों में अमेरिका फंस गया था, उसने तो रणनीति बनाई थी की इराक को रासायनिक हथियार देकर ईरान पर आक्रमण करवा देंगे, लेकिन इराक ने मना कर दिया था।

तो अब इस स्थिति में अमेरिका करता क्या, इसलिए रासायनिक हथियार पकड़ने और सद्दाम हुसैन को मारने के उद्देश्य से उसने इराक पर सैन्य कार्यवाही की। 2003 में सद्दाम हुसैन को पकड़ लिया गया। 2003 तक अमेरिका ने इराक को पूरी तरह से तबाह कर दिया था। इसी बीच इराक के ही पड़ोसी देश सऊदी अरब में एक आतंकी संगठन पनप रहा था, जिसका नाम था अल कायदा (ओसामा बिन लादेन वाला अल कायदा)।

यह संगठन सुन्नी समुदाय के मुस्लिमों का शुभ चिंतक था। 2003 में सद्दाम हुसैन को तो पकड़ लिया गया था, लेकिन उसके बहुत से सैन्य कमांडर बचे हुए थे, जिन्हे अमेरिका मारने में सफल नहीं हुआ था और सद्दाम हुसैन के पकड़े जाने के बाद ये सब अब अमेरिका के कट्टर विरोधी बन चुके थे।

इस बीच उन सब बचे हुए सैन्य कमांडरों को अपने साथ करते हुए सऊदी अरब के अल-कायदा संगठन ने 2003 में अपनी एक ब्रांच इराक में खोली और उसका नाम रखा गया अल-कायदा इराक। इस ब्रांच का हेड बनाया गया अबु बकर अल बगदादी को। अल कायदा ने बगदादी को ये काम दिया की तुम बग़दाद (इराक की राजधानी) के आसपास अमेरिका विरोधी काम करो, क्योंकि सुन्नी समर्थित सद्दाम हुसैन को अमेरिका ने गिरफ्तार करवा दिया था।

2006 में सद्दाम हुसैन को फांसी पर चढ़ा दिया गया, लेकिन बगदादी ने सैन्य कमांडरों के साथ अमेरिकी सैनिकों पर अपने हमले को जारी रखा, लेकिन उस समय बगदादी के पास पैसे का अभाव था, इस वजह से परिणाम कुछ ख़ास नहीं निकल रहे थे।

तब बगदादी ने इराक पर कब्जे करने के उद्देश्य से एक चाल चली, उसे लगा की अब तक अल-कायदा में रहकर मुझे कोई ख़ास उपलब्धि नहीं मिली है, ऐसा करता हूँ की अपना एक अलग संगठन बना लेता हूँ, तब बगदादी ने अल-कायदा इराक का नाम बदलकर ISI – इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक कर दिया। इसके बावजूद भी बगदादी को यहाँ पर कुछ खास कामयाबी नहीं मिल पाई।

अब इसके आगे की कहानी शुरू होती है ISIS के उत्पत्ति की

ISIS की उत्पत्ति – Origin Of ISIS

जब बगदादी को ISI संगठन बनाने के बावजूद भी कामयाबी नहीं मिली, तो वह 2011 में इराक से निकलकर सीरिया जाने का प्लान बनाया। सीरिया में असल में शिया वर्सेस सुन्नी की लड़ाई चल रही थी। सीरिया में उन दिनों बशर अल-असद की सरकार हुआ करती थी, आज भी है। बशर अल-असद की सरकार शिया समर्थित थी। शिया और सुन्नी हमेशा से एक-दूसरे के कट्टर विरोधी रहे है।

अब यहाँ पर समझिएगा, सीरिया में शिया समर्थित सरकार थी और अल-कायदा जिसका जन्म सऊदी अरब में हुआ, वह सुन्नी समर्थित था। इराक में सुन्नियों का नेतृत्व करते हुए ही बगदादी को जब सफलता नहीं मिली, तो वह सभी सैन्य कमांडरों को एकत्रित करके यहाँ से निकलकर सीरिया पहुंचा था।

सीरिया में बशर अल-असद की सरकार थी, जोकि शिया समर्थित थी और इनके खिलाफ लड़ाई लड़ रहा थी यहाँ की सुन्नी समर्थित फ्री सीरियन आर्मी। फ्री सीरियन आर्मी, बशर अल-असद की सरकार गिराने का तो काफी प्रयास कर रही थी, लेकिन इनके पास तगड़ा माहौल बनाने के लिए न तो उतने पैसे थे और न ही गोला-बारूद।

चूँकि फ्री सीरियन आर्मी सुन्नी समर्थित थी, इसलिए सीरिया पहुंचा हुआ बगदादी भी उनसे मिलने पहुँच गया और बोला की मै हूँ न लड़ने के लिए, देखो मैं इराक से बड़ी सैन्य संख्या लेकर आया हूँ, अगर तुम चाहो तो ये तुम्हारी मदद करने को तैयार है, साथ ही बशर अल-असद को मारने को भी। तो फ्री सीरियन आर्मी ने बोला की तुम कैसे लड़ोगे भाई, तुम्हारे पास भी तो गोला बारूद जैसा कुछ नहीं है। बगदादी उस समय गरीबी की जिंदगी जी रहा था।

बगदादी का साथ पा चुके फ्री सीरियन आर्मी को लगा की अब हमें कहीं न कहीं से धन और गोला बारूद इकट्ठा करना ही होगा, इसलिए वर्ष 2013 में फ्री सीरियन आर्मी के जनरल ने मीडिया के सामने आकर बयान दिया की लोगों को मुझसे उम्मीदें तो बहुत ज्यादा है, लेकिन बशर अल-असद की सरकार गिराने और उनसे लड़ने के लिए न तो हमारे पास धन है और न ही गोला-बारूद और जो कुछ बचा भी है तो वह एक महीने में खत्म हो जाएगा, क्योंकि ईरान, रूस और हिजबुल्लाह मिलकर हम पे बहुत हमले कर रहे है।

ये बात सुनते ही अमेरिका, इजरायल और सऊदी अरब ने सोचा की ये तो बहुत बढ़िया मौका है, कैसे भी करके फ्री सीरियन आर्मी को पैसा दिया जाय। हुआ भी यही, फ्री सीरियन आर्मी जिसको बगदादी मिल चुका था, उसे हर तरफ से पैसे मिलने लगे थे, यहाँ तक कहा जाता है कि इजरायल ने बगदादी को अपने यहाँ बुलाकर एक साल तक ट्रेनिंग भी दी थी।

इजरायल पर किसी का ध्यान न जाए, इसलिए अमेरिका ने सबका ध्यान मध्य-पूर्व क्षेत्र में केंद्रित करके रखा था। इस प्रकार से बगदादी को अब बहुत सारा पैसा मिलने लगा था, कहते है की एक समय उसकी इकोनॉमी ट्रिलियन में पहुँच गयी थी। बगदादी के दिन सुधर चुके थे।

बगदादी की नेतृत्व क्षमता की वजह से गुट के सदस्य उसे ज्यादा तवज्जों देते थे, इसलिए फ्री सीरियन आर्मी का वर्चस्व धीरे-धीरे कम हो रहा था अब बगदादी के मन में ये आया की अगर बशर अल-असद को हटाना है, तो सुन्नियों को सीरिया में भी एक करना पड़ेगा, तो एक बार और दिमाग लगाते हुए बगदादी ने इराक और सीरिया को ध्यान में रखते हुए आइसिस (ISIS- Islamic state of iraq And seria) की स्थापना की।

ISIS संगठन बनाने के पीछे बगदादी का मुख्य उद्देश्य था इराक और सीरिया के सुन्नियों को एकत्रित करके शिया समर्थित बशर अल-असद की सरकार को गिराना और सुन्नियों को आगे बढ़ाना। बगदादी के नेतृत्व में ISIS बहुत बड़ा संगठन बनके उभरा था, यहाँ तक की सुन्नियों ने बगदादी को ही अपना खलीफा घोषित कर दिया था। सुन्नियों द्वारा बगदादी अब सर्वमान्य नेता घोषित हो चुका था।

ये माहौल देख एक तरफ से ईरान जोकि शिया समर्थित देश है और दूसरी तरफ से लेबनान जहाँ शिया समर्थित संगठन हिजबुल्लाह है, ये दोनों बशर अल-असद का समर्थन करने लगे, यहाँ तक आपको ये बात समझ में आई होगी, मतलब शिया समर्थित एक तरफ हो गए और सुन्नी समर्थित एक तरफ।

बशर अल-असद को अमेरिका भी मारना चाहता था या फिर सरकार से हटाना चाहता था, क्योंकि बशर अल-असद ईरान के समर्थन से शासन कर रहा था। ईरान को रूस समर्थन दे रहा था, तो रूस, ईरान, लेबनान का हिजबुल्लाह संगठन और बशर अल-असद हो गए एक तरफ, वही बशर अल-असद को हटाने में ISIS, फ्री सीरियन आर्मी और अमेरिका हो गए दूसरी तरफ।

लेकिन कुछ दिनों बाद जब बशर अल-असद ने अमेरिका को समझाने की कोशिश की, की आपने मुझे हराने के लिए एक आतंकी को पनाह दे दी, जोकि कल आपके ऊपर भी हमला कर सकता है। ये बात जब अमेरिका को समझ में आई, उस समय तक बगदादी बहुत बड़ा हो चुका था। अब बगदादी को मारना अमेरिका के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन गयी थी, क्योंकि अब बगदादी सुन्नी मुसलमानों की रक्षा के लिए जहाँ-जहाँ उनके खिलाफ प्रताड़ना हो, वहां पर अमेरिका की सेना पर हमला करना शुरू कर दिया था।

यानी जिनके पैसे से पला बढ़ा उन्ही के खिलाफ गोली-बारी करना शुरू कर दिया था। बगदादी अपनी शाखाएँ धीरे-धीरे अन्य जगहों पर भी खोलने लगा। इसी कड़ी में उसने अपनी एक शाखा अफगानिस्तान में खोली, जिसका नाम था आईसिस खुरासान (ISIS-K)। ऐसी ही उसने अपनी एक शाखा अफ्रीका में खोली। इसी प्रकार आप सभी को बीच-बीच में सुनने को मिलता ही होगा की ISIS से जुड़ने के लिए लोग इराक और सीरिया पहुँचते रहते है।

अमेरिका की नींद खुली 2019 में और उसने बम गिराकर बगदादी को खत्म कर दिया। बगदादी के खत्म होते ही अमेरिका अब बशर अल-असद की मदद करना शुरू किया। मतलब इराक और सीरिया में ISIS को खत्म करने की अमेरिका की कोशिशें जारी है और फिलहाल शांति स्थापित करने में कामयाब है।

अमेरिका की रणनीति

कुलमिलाकर इसको ऐसे समझे की अमेरिका पहले दुश्मन बनाता है फिर उसे खत्म करता है, इस चक्कर में कई देश आपस में लड़ते-मरते रहते है। जैसे- पहले अल-कायदा को सऊदी अरब में पलने बढ़ने दिया, फिर उसके बाद अल-कायदा को खत्म करने के चक्कर में पूरे अफगानिस्तान को तबाह करके रख दिया। आज अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार है। ऐसे ही बगदादी को पहले बनाया, फिर उसको मिटाया।

आप सोच रहे होंगे की आखिर सीरिया के पीछे इतने लोग क्यों लगे हुए थे, जो आपस में लड़-भिड़ रहे थे, तो आपकी जानकारी के लिए बता दूँ की सीरिया लीबिया और इराक, इनमें तेल बहुत ज्यादा है। तो आप ये बात समझते होंगे कि जहाँ तेल है, वहां अमेरिका किसी न किसी बहाने से पहुँचता जरूर है।

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