निफ्टी क्या है और इसका कैलकुलेशन कैसे किया जाता है ? समझिए सरल शब्दों में

आज के इस लेख में हम Nifty – निफ्टी के बारे में जानेंगे कि निफ्टी क्या होता है और इसका कैलकुलेशन कैसे किया जाता है? साथ ही इसके महत्व के बारे में भी जानेंगे।

तो आइए जानते हैं……

जब हम न्यूज पेपर का बिजनेस वाला पेज पढ़ते हैं, तो हमें निफ्टी शब्द जरूर पढ़ने को मिलता है। किसी दिन हमें ये पढ़ने को मिलता है कि निफ्टी ने रिकॉर्ड स्तर को छू लिया और किसी दिन पढ़ने को मिलता है कि निफ्टी में भारी गिरावट दर्ज की गई, जिसकी वजह से निवेशकों को करोड़ो रूपए का नुकसान हुआ।

इस प्रकार की न्यूज पढ़ते ही मन में सवाल उठने लगते हैं कि आखिर ये निफ्टी है क्या? ये किस प्रकार से घट-बढ़ जाता है और इसका घटना-बढ़ना किन बातों पर निर्भर करता है। इसके लिए हम इधर-उधर से जानकारियां निकालने लगते हैं, लेकिन जानकारियों से संतुष्ट नहीं हो पाते। तो आइए आज हम निफ्टी को सरल भाषा में समझते हैं। इसके अलावा अगर आप शेयर बाजार में निवेश या ट्रेडिंग करने के बारे में सोच रहे हैं, तो ये जानकारियां आपके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होने वालीं हैं।

निफ्टी 50 क्या है – What Is Nifty 50 ?

आमतौर पर जब कोई निफ्टी कहता है, तो उसका मतलब निफ्टी 50 होता है। निफ्टी 50 नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का बेंचमार्क मार्केट इंडिकेटर यानी सूचकांक है। निफ्टी शब्द नेशनल और फिफ्टी को मिलाने से बना है। नाम के अनुरूप इस इंडेक्स में 14 सेक्टर्स की 50 भारतीय कंपनियां शामिल हैं। इस प्रकार से यह सेंसेक्स की तुलना में अधिक डाइवर्सिफाइड (विविध) है।

सेंसेक्स की तरह ही यह लार्ज कैप कंपनियों के मार्केट परफॉर्मेंस को ट्रैक करता है। इसे 1996 में लांच किया गया था और इसकी गणना फ्री फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन के आधार पर की जाती है।

निफ्टी 50 का कैलकुलेशन कैसे होता है – How is Nifty 50 Calculated ?

  • निफ्टी की गणना लगभग सेंसेक्स की तरह ही फ्री फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन के आधार पर होती है, लेकिन कुछ अंतर भी है।
  • निफ्टी की गणना के लिए सबसे पहले सभी 50 कंपनियों का बाजार पूंजीकरण यानी मार्केट कैपिटलाइजेशन निकाला जाता है। इसके लिए फ्री फ्लोट शेयरों की संख्या को वर्तमान भाव से गुणा करते हैं।
  • इसके बाद मार्केट कैप को इंवेस्टेबल वेट फैक्टर (IWFs) से गुणा किया जाता है। IWFs पब्लिक ट्रेडिंग के लिए उपलब्ध शेयरों का हिस्सा है।
  • इसके बाद मार्केट कैप को इंडिविजुअल स्टॉक को एसाइन किए हुए वेटेज से गुणा किया जाता है।
  • निफ्टी को कैलकुलेट करने के लिए सभी कंपनियों के वर्तमान मार्केट वैल्यू को बेस मार्केट कैपिटल से डिवाइड कर बेस वैल्यू से गुणा किया जाता है। बेस मार्केट कैपिटल 2.06 लाख करोड़ रुपए तय किया गया है और बेस वैल्यू इंडेक्स 1000 है।

नोट:- निफ्टी, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का बेंचमार्क इंडेक्स (सूचकांक) है, साथ ही आपने ये भी जाना कि इसकी गणना करने में NSE में पंजीकृत 50 कंपनियों का आंकड़ा लिया जाता है। यहाँ पर मैं ये स्पष्ट करना चाहता हूँ कि आप इसका मतलब ये कतई न समझें कि NSE में केवल 50 ही कंपनियां पंजीकृत हैं। NSE में बहुत कंपनियां पंजीकृत हैं और ये आंकड़ा घटता-बढ़ता भी रहता है, लेकिन निफ्टी की गणना करते समय NSE में पंजीकृत कंपनियों को उनके अच्छे प्रदर्शन (Performance) के आधार टॉप-50 कंपनियों का ही चयन किया जाता है।

इतने ख़ास क्यों हैं सेंसेक्स और निफ्टी – Why are Sensex and Nifty so special?

भारतीय शेयर बाजार में होने वाले उतार-चढ़ाव का संकेत देने वाले सिर्फ यही दो इंडेक्स नहीं हैं। इसके अलावा भी कई इंडेक्स मौजूद हैं, जिनका इस्तेमाल शेयरों की चाल समझने के लिए किया जाता है, इनमें ज्यादातर इंडेक्स किसी खास सेक्टर या कंपनियों के किसी खास वर्गीकरण से जुड़े हुए हैं। मिसाल के तौर पर किसी दिन के कारोबार के दौरान 12 प्रमुख बैंकों के शेयरों की औसत चाल का संकेत देने वाला Bank Index या सिर्फ सरकारी बैंकों के शेयरों का हाल बताने वाला PSU Bank Index, स्टील, एल्यूमीनियम और माइनिंग सेक्टर की कंपनियों के शेयरों के चाल का संकेत देने वाला मेटल इंडेक्स या फार्मा कंपनियों के शेयरों का फार्मा इंडेक्स…इत्यादि।

ये सभी इंडेक्स बाजार में पैसे लगाने वाले निवेशकों या उन्हें सलाह/मशविरा देने वाले ब्रोकर्स या सलाहकारों के लिए बेहद काम के होते हैं, लेकिन एक नजर में बाजार का ओवरऑल रुझान समझना हो या उसके भविष्य की दशा-दिशा का अंदाजा लगाना हो, तो उसके लिए सबसे ज्यादा सेंसेक्स और निफ्टी जैसे बेंचमार्क इंडेक्स पर ही गौर किया जाता है। इन्हे मोटे तौर पर मार्केट सेंटीमेंट का सबसे आसान इंडिकेटर माना जाता है।

अगर ये इंडेक्स न हों तो

अगर ये इंडेक्स न हों तो कारोबारियों द्वारा दिन के किसी भी समय एक नजर डालकर शेयर बाजार के रुझान का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाए, इसके अलावा सबसे बड़ा नुकसान ये होगा कि इन दोनों इंडेक्स के पिछले ऐतिहासिक आंकड़ों को देखकर कारोबारी जो बड़े आसानी से पिछले एक महीने, पिछले एक साल, पिछले 5 साल या उससे अधिक समय के दौरान भारतीय शेयर बाजार की चाल यानी लिस्टेड कंपनियों के कारोबार की दशा-दिशा कैसे रही? उसका निष्कर्ष नहीं निकाल पाएंगे।

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